अंकुर पटेल |
अंकुर पटेल की लिखी कविता "कल्पना"...पढ़ें और खूब शेयर करें...
'कल्पना'
एक शाम
मैं छत पर बैठा
ढ़लते सूरज
को निहार रहा था
कितना सुन्दर था वह दृश्य
कुछ पीलें
नीले रंग मानों
कुछ कहना चाह रहे थे।
उन रंगों
के आस-पास
मंडराते पक्षी ऐसे लग रहे थे
मानो
सतरंगी चूनर में
बिखरें हो प्यारे फूल
कितना
मनोरम और हृदयग्राही था वही दृश्य।
तभी मेरे दिल में एक ख्याल आया
काश! मेरे
भी पर होते तो
मैं भी दूर गगन में उड़ जाता
और आसमान
की बुलंदियो को छूता
दूर गगन
में उड़ता ऊँचे-ऊँचे और ऊँचे।
दूर देश की सैर कर आता
कभी यहाँ
तो कभी वहाँ
सभी जगह सभी देशों में
न ईर्ष्या
न द्वेष न घृणा
सब,सबसें
प्रेम और भाईचारा
एकता ,अखण्डता और भाईचारा
मैं अपनें इन ख्यालों में खोया था
न जानें
कब सूरज ढल गया
और शाम हो गयी।
और मैं
इसी उधेड़ बुन में
यह भूल गया मैं क्या हूँ
जब मैंने
देखा शाम ढ़ल चुकी
तो उठकर
अपने रोज के
कार्य में
व्यस्त हो गया
और कल्पना मात्र कल्पना ही रह गयी।
- "अंकुर पटेल"
Student, B.Sc. (H),
Physics,
Deen Dayal
Upadhyaya Colege, Delhi
शब्दों में पिरोई गयी सुन्दर कल्पना...बधाई...
ReplyDeleteबहुत खूब
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