शैलेन्द्र मुहाले |
शैलेन्द्र मुहाले की लिखी कविता "बचपन की यादें" पढ़ें...और शेयर करें...
बचपन की यादें
पत्थरों के शहर में आज
बचपन के निशान खोजता हूँ
लौट आओं मेरे बचपन
यादों में तुमको सोचता हूँ
क्रंकीट के इन जंगलों में
वो मैदान कहाँ खो गया
क्रिकेट की गेंदों के पीछे
भागते बचपन कब सो गया
छोटी छोटी तितलियाँ वो
भौंरें नजर अब नहीं आते है
पंतगो के पीछे दौड़ते
बच्चे अब नजर नहीं आते है
बेर और आम के पेड़ों पर
बच्चे पत्थर नहीं चलाते है
गिरते पानी में वो भीगना
छुपा छुपी में दोस्तों को
ढूँढना लगता है अब वो
दोस्त और वो दिन
एक ख़्वाब हो गए
वो किस्से और कहानी की बातें
वो ठंडी व सर्द रातें
वो होली के सुनहरे रंग
दोस्तों की मस्ती के संग
न जाने कितनी ही बातें
न जाने कितनी ही यादें
मै उन्हें सोचता हूँ
मै उन्हें खोजता हूँ
लौट आओ मेरे बचपन
यादों में तुमको सोचता हूँ
शैलेन्द्र
मुहाले, अधिकारी Scale I(बैंक –सार्वजनिक क्षेत्र)
इंद्रा
कालोनी, मेन रोड, बनपुरा, मध्य प्रदेश
अपनी रचना ब्लॉग पर शेयर करने के लिये धन्यवाद...बचपन की यादें दोहराती सुन्दर रचना...
ReplyDeleteवाह वाह
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