तीर्थों में तीर्थ नैमिसारण्य तीर्थ
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे सीतापुर
जिले में स्थित है ऐतिहासिक पवित्र तीर्थ स्थल नैमिसारण्य | इसे नीमसार नाम से भी
जाना जाता है | ऐसा माना जाता है कि सारे धामों की यात्रा करने के बाद यदि इस धाम
की यात्रा न की गई तो आपकी यात्रा अपूर्ण है | इस धाम का वर्णन पुराणों में भी
पाया जाता है |
मेरी पोस्टिंग सीतापुर हुए करीब 11 महीने हो
रहे थे | मैंने अपने घनिष्ठ मित्र एवं कलीग नीरज जी के साथ नीमसार दर्शन का
प्रोग्राम कई बार बनाया लेकिन किसी न किसी वजह से ऐसा हो नहीं पाया | फिर अचानक
सितम्बर के आखिरी सप्ताह में हमें पता चला कि हम दोनों का ही ट्रांसफर अपने घर के पास
के जिलों में हो गया है | अक्टूबर के पहले हफ्ते में ही हमें इस ब्रांच से रिलीव
होना था | मैंने सोचा कि अगर अब भी वहां नहीं गये तो शायद फिर आना नहीं हो पायेगा
| हम दोनों ने ही वहां जाने के लिए एक छुट्टी का दिन तय कर लिया |
हमारा 4 लोगों का ग्रुप नीमसार गया जिसमें
मैं , नीरज जी, इलमचंद जी, ग्राम प्रधान के सुपुत्र व हम लोगों के प्रिय मित्र
सुरेन्द्र और उनका ड्राईवर बबलू थे | कार सुरेन्द्र की ही थी | सीतापुर सिटी से
करीब 35 किमी है नीमसार |
अब मैं आपको नीमसार के बारे में विस्तार से
बताता हूँ ....
नैमिषारण्य (नीमसार ) -
ऐसा कहा जाता है कि हिन्दुओं में सबसे पवित्र
माने जाने वाले पुराणों की रचना महर्षि व्यास ने इसी स्थान पर की थी | इसी स्थान
पर “सत्यनारायण कथा” का पाठ पहली बार किया गया | कथा के प्रारंभ में ही इस स्थान
का उल्लेख किया गया है : “एकदा नैमिशारंये ऋषयः शौनकादयः” |
ऐसा भी कहा जाता है कि नैमिषारण्य का यह नाम
नैमिष नामक वन(जंगल) की वजह से रखा गया | इस जंगल का भी बड़ा महत्व है | इसके पीछे
कहानी ये है कि महाभारत के युद्ध के बाद साधु एवं संत जो कलयुग के प्रारम्भ के
विषय में अत्यंत चिंतित थे , वे ब्रम्हा जी के पास पहुँचे | कलयुग के दुष्प्रभावों
से चिंतित साधु – संतों ने ब्रम्हा जी से किसी ऐसे स्थान के बारे में बताने के लिए
कहा जो कलयुग के प्रभाव से अछूता रहे | ब्रम्हा जी ने एक पवित्र चक्र निकाला और
उसे पृथ्वी की तरफ घुमाते हुए बोले कि जहाँ भी यह चक्र रुकेगा वही वह स्थान होगा
जो कलयुग के प्रभाव से मुक्त रहेगा | संत इस चक्र के पीछे पीछे आये जो कि नैमिष वन
में आकर रुका | इसीलिये साधु – संतों ने इसी स्थान को अपनी तपोभूमि बना लिया | ब्रम्हा
जी ने स्वयं इस स्थान को ध्यान योग के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान बताया था | प्राचीन
काल में 88000 ऋषि मुनियों ने इस स्थान पर तप किया था | वाल्मीकि रामायण में
उल्लेख मिलता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ पूरा किया था और
महर्षि वाल्मीकि, लव – कुश भी उन्हें यहीं मिले थे | महाभारत काल में यहाँ पर
युधिष्ठिर और अर्जुन भी आये थे | अबुल फ़जल लिखित आइने – अकबरी में भी इस स्थान का
जिक्र मिलता है |
इस स्थान का उल्लेख कूर्मपुराण में भी मिलता
है जिसमे लिखा है : “इदं त्रैलोक्य विखायातं तीर्थ नामिश्मुत्तम्म महादेव
प्रियाकरण महापताकनाशनम” | वहीँ गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस में नैमिषारण्य का
महत्व बताते हुए लिखते हैं “तीरथ वर नैमिष
विख्याता, अति पुनीत साधक सिधी दाता ”
आइये अब मैं आपको बताता हूँ नैमिषारण्य के
दर्शनीय स्थानों के बारे में ....
1.
चक्रतीर्थ –
यह एक गोलाकार पवित्र सरोवर है | लोग
इसमें स्नान करते हैं एवं परिक्रमा करते हैं | मुझे इसके शुद्ध पवित्र जल में
नहाकर असीम सुख एवं शांति की प्राप्ति हुई | एक बार आप इसमें उतर जाये फिर इसका
अदभुत जलप्रवाह आपको अपने आप परिक्रमा कराता है | आपको लगेगा एक चक्कर और लगाया
जाये | इसमें चक्रनुमा गोल घेरा है जिसके अन्दर एवं बाहर जल है | हालाँकि नहाने की
व्यवस्था चक्र के बाहर ही है |
इलमचंद जी पहले पानी में उतरने से घबरा रहे थे लेकिन बाद में हम लोगों ने उन्हें जबर्दस्ती चक्र के दो – तीन चक्कर लगवाए | यहाँ ये बता देना जरुरी है कि यहाँ पानी की गहराई ज्यादा नहीं है | मतलब आपको यहाँ स्नान करने के लिए तैरना आने की जरूरत नहीं है | सरोवर के चारों और छोटे छोटे पुराने कई मंदिर बने हुए हैं | यहाँ हर समय स्नान करने वालों की भीड़ जमा रहती है |
इलमचंद जी पहले पानी में उतरने से घबरा रहे थे लेकिन बाद में हम लोगों ने उन्हें जबर्दस्ती चक्र के दो – तीन चक्कर लगवाए | यहाँ ये बता देना जरुरी है कि यहाँ पानी की गहराई ज्यादा नहीं है | मतलब आपको यहाँ स्नान करने के लिए तैरना आने की जरूरत नहीं है | सरोवर के चारों और छोटे छोटे पुराने कई मंदिर बने हुए हैं | यहाँ हर समय स्नान करने वालों की भीड़ जमा रहती है |
2.
हनुमान गढ़ी –
चक्रतीर्थ के ही पास स्थित इस मंदिर में हनुमान जी का मुख दक्षिण की और है इसलिये इसे दक्षिणेश्वर हनुमान मंदिर भी कहते हैं | यह वृहद आकार की पत्थर की बनी हुई मूर्ति है | हनुमान जी के कन्धों पर राम और लछमण विराजमान हैं | पाताल लोक में अहिरावण को परास्त करने के बाद हनुमान जी सबसे पहले यहीं पर प्रकट हुए थे |
चक्रतीर्थ के ही पास स्थित इस मंदिर में हनुमान जी का मुख दक्षिण की और है इसलिये इसे दक्षिणेश्वर हनुमान मंदिर भी कहते हैं | यह वृहद आकार की पत्थर की बनी हुई मूर्ति है | हनुमान जी के कन्धों पर राम और लछमण विराजमान हैं | पाताल लोक में अहिरावण को परास्त करने के बाद हनुमान जी सबसे पहले यहीं पर प्रकट हुए थे |
3. पांडव किला – यह किला गोमती नदी के किनारे पर स्थित है किवंदती के अनुसार यह किला महाभारत के राजा विराट का था | बनवास के दौरान पांडव यहाँ रुके थे | कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन खिलजी के एक हिन्दू राजा ने इसे पुनर्स्थापित कराया था | हालाँकि अब यह किला केवल नाम मात्र का ही रह गया है | एक बड़े से हालनुमा कमरे में एक दीवार पर पांडवों की पत्थर की छोटी –छोटी मूर्तियाँ स्थापित हैं |
4.
ललिता देवी मंदिर –
यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है | कहते हैं कि भगवान शिव के आदेश से देवाषुर संग्राम में असुरों के विनाश के लिए ललिता देवी जी इसी स्थान पर प्रकट हुई थीं | पुराणों में भी ललिता देवी का वर्णन मिलता है | दर्शनार्थी चक्रतीर्थ में स्नान करने के बाद इसी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं |
यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है | कहते हैं कि भगवान शिव के आदेश से देवाषुर संग्राम में असुरों के विनाश के लिए ललिता देवी जी इसी स्थान पर प्रकट हुई थीं | पुराणों में भी ललिता देवी का वर्णन मिलता है | दर्शनार्थी चक्रतीर्थ में स्नान करने के बाद इसी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं |
5. व्यास गद्दी - मान्यता है कि इसी पावन स्थान पर महर्षि व्यास ने वेद पुराण रचे | इसी स्थान पर 84000 साधु संतों ने तप किया | इसके समीप ही अति प्राचीन वट वृक्ष है |
6.
दधिची कुंड (मिश्रिख) – नैमिषारण्य से लगभग 10 किमी दूर है
पवित्र तीर्थ मिश्रिख | कथाओं के अनुसार देवताओं ने ब्रम्हा जी से वत्रासुर के
विनाश के लिए मदद मांगी थी | तब महर्षि दधिची से अनुरोध किया गया कि वो वज्र बनाने
के लिए अपनी अस्थियाँ दान कर दें | अस्थियाँ दान करने से पहले महर्षि ने सरोवर में
स्नान किया था जिसमें पवित्र नदियों का जल था |
7.
सीताकुंड – कहा जाता है कि वनवास जाने से पहले
भगवान राम, लछमण और सीता जी यहाँ आये थे | सीताजी ने यहाँ स्नान किया था इसीलिये
इसे सीता कुंड कहा जाता है |
ये कुछ प्रमुख स्थान थे जहाँ के
दर्शन किये जा सकते हैं | यहाँ दर्शन के लिए पूरा एक दिन चाहिये | प्रमुख अवसरों
पर यहाँ बहुत ज्यादा भीड़ होती है | यहाँ होने वाली 84 कोसी की परिक्रमा में दूर
दूर से श्रद्धालु आते हैं | अक्सर यहाँ धार्मिक आयोजन होते रहते हैं | यहाँ दर्शन
करके असीम आनंद की अनुभूति होती है |
--- दर्शन :
सितम्बर 28, 2014 रविवार
bahut badhiya......nitendra ji apne ghar bhaithe he hame is thirth ke darshan kara diye....bahut bahut danyawad
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