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Sunday, March 9, 2014

Sunday at Behta

आजकल  मेरी पोस्टिंग सीतापुर जिले में है  ।  मेरी पोस्टिंग सीतापुर से 60 KM अंदर बेहटा पकौड़ी नाम के एक छोटे से गांव में है ।   यह  मेरे गृह जनपद  कानपुर से लगभग 225 KM दूर  है ।  यहाँ से अपने घर तक जाने में मुझॆ 7 घण्टे के आसपास वक़्त लगता है ।  मुझे यहाँ आये हुए 6 महीने हो चुके हैं  । अक्सर मैं शनिवार को अपने घर निकल जाया करता हूँ इसकी वजह ये है कि शनिवार को मेरा हाफ डे रहता है । सोमवार को मैं वापस आ जाया करता हूँ । लेकिन इस शनिवार कुछ जरुरी काम से मुझे यहीं  रुकना पड़ा । रविवार(09 /03 /2014 ) को मुझे कोई खास काम नहीं था । सुबह न्यूज़ पेपर पढ़ते समय अचानक मन में  ख्याल आया कि क्यूँ ना आज ब्लॉग लिखा जाये जिसमे मैं यहाँ के  अपने अब तक के अनुभव को सबके साथ बाँटू  ।  मुझे विचार अच्छा लगा तो मैंने तय किया कि नहाने खाने के बाद दोपहर में ये काम कर ही लिया जाये । वैसे भी ब्लॉग लिखे हुए मुझे काफी समय हो गया था ।

मैंने पहले कमरे कि सफाई की जो शायद 15 - 20 दिन में एक बार ही होती है । इसके बाद मैंने अपनी बढ़ती हुई दाढ़ी कि सफाई की । अब बारी थी पेट पूजा की तो उसके लिए मैं और मेरे एक साथी ने तय किया कि तहरी बनाई जाये । हालाँकि मेरे साथी इलमचंद जी कपड़े कि धुलाई में व्यस्त थे । मैंने कुछ देर तो उनका इंतजार किया पर जब पेट में चूहे कूदने लगे तो मैं खुद भोजन कि तैयारी में लग गया । मैं बता दूँ कि घर से दूर किसी गांव में  रहने का एक फ़ायदा तो जरुर होता है कि आपको  खाना बनाना आ जाता है । शहर में तो हम जैसे नौसिखियों के लिए होटल हैं मगर गांव में तो दो ही विकल्प होते हैं, पहला - या तो खाना बनाना सीख लो और मस्त रहो दूसरा - भूखे रहो । हर हाल में पहला विकल्प ही बेहतर है । यहाँ आने से पहले मुझे भी केवल  खाना खाना ही आता था । घर में साल में एक आध बार खाना बनाता था लेकिन उसमे भी हर चीज पूछता था । खैर मैं जब तक घर में रहा  रोटी बेलने के अलावा कुछ नहीं सीख पाया । इन 6 महीनों में मैं सब्जी बनाना भी सीख गया हूँ । सब्जी बनाना सीखने के पीछे भी एक रोचक कहानी है । है कुछ ऐसा कि हम साथ में नौकरी करने वाले 6 लोग हैं जिनमे से 3 लोग ऑफिस के ऊपर बने कमरे में रहते हैं जबकि मैं 2 और लोगों के साथ वहां से 15 - 20 कदम की दूरी पर रहता हूँ । खाना हम लोग एक साथ ही बनाते हैं । खाना बनाने में सबकी ड्यूटी अलग - अलग बंटी हुई है । ये बात अलग है कि सबने वही काम ले रखा है जो उसे आता है । हममें से पंकज जी सब्जी बनाते हैं  । वो कभी किसी और  को ये काम करने नहीं देते । बनाते भी इतना बेहतरीन हैं कि एक दिन रोटी चावल ना भी मिले तो केवल सब्जी से पेट भर जाये । जबकि मेरे मित्र नीरज जी  जिनसे मेरी खूब जमती है अक्सर आटा तैयार करते हैं । बचा मैं तो मैं वही करता था जो मैंने घर में सीखा था - रोटियां बेलना । बाकी बचे लोग जरा अलहदा तरीके से सहयोग करते हैं  जैसे लैपटॉप में मूवी देखकर या फिर फोन पे लंबी - लंबी बातें कर के । एक बार पंकज जी लम्बी छुट्टी पे अपने घर पटना गए । अब हम सब के सामने एक करोड़ का सवाल था कि सब्जी कौन बनाएगा । हालाँकि अलहदा तरीके से सहयोग करने वाले लोगों का पूरा सहयोग जारी था । कुछ भी कहिये लेकिन जब किसी को कुछ न आता हो वहाँ अपना हुनर दिखाने का अलग ही मज़ा है । मैंने मौके को लपका ।  वैसे सब्जी बनाने का ओर छोर मुझे भी मालूम नहीं था । लेकिन मैंने सोचा यही तो मौका है सीखने का । अगर काम बना तो हीरो वरना कहा देंगे कि हमे कौन सा आता है खाना बनाना । खैर मैंने उस दिन आलू गोबी की सब्जी बनायी जो पता नहीं कैसे अच्छी भी बन गयी । उस दिन के बाद मैंने कई बार सब्जी बनायी और अब मुझे लगता है कि मैं रोटी बनाने के साथ सब्जी बनाना भी सीख गया हूँ ।  आज भी मैंने खुद तहरी बनायी । भोजन के बाद मैंने स्नान किया । तब तक दोपहर के 2 बज चुके थे । मैंने 2 बजे यह ब्लॉग लिखना शुरू किया । इतना लिखते लिखते 4 बज चुके हैं और मुझे नींद आने लगी है । मैंने सोचा कि थोड़ा सो लिया जाये बाकी डिनर के बाद लिखा जायेगा । इतना लिख कर मैं सो गया । 

डिनर के बाद मैंने फिर लिखना शुरू किया है । अब मैं कुछ और अनुभव साझा करता हूँ । बेहटा पकौड़ी का नाम रोचक है न जाने इस गांव का ये नाम कैसे पड़ा । वैसे ज्यादातर लोग इसे बेहटा के नाम से ही जानते हैं । यह एक ब्लॉक है जिस वजह से कुछ विशेष सुविधाएँ जैसे सरकारी प्राथमिक विद्यालय , सरकारी बैंक और एक अच्छी खासी बड़ी सी बाज़ार यहाँ पर हैं । बेहटा सीतापुर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है ।  सीतापुर से तम्बौर / काशीपुर तक की सड़क बेहतरीन है इसमें चलने पर ऐसा एहसास होता है जैसे किसी एक्सप्रेसवे जैसी रोड पर चल रहे हो ।  यह मार्ग लगभग 60 KM का है । बेहटा से तम्बौर मात्र 4 KM दूर है । सीतापुर से तम्बौर के लिए रोडवेज बस सेवा उपलब्ध है । सीतापुर से जाने के लिए पहली बस सुबह 8 बजे और दूसरी दोपहर 2 बजे है जबकि वापस आने के लिए पहली बस सुबह 10 बजे और दूसरी शाम 6 बजे है । रोडवेज बस से बेहटा आने में करीब 1 :30 घण्टे का समय लगता है । रोडवेज के अलावा प्राइवेट बस सेवा भी उपलब्ध है जो हर एक घंटे में चलती है । यहाँ की बाज़ार गांव के थोड़ा बाहर स्थित है जो काफी बड़े एरिया में है । यह सप्ताह में दो दिन लगती है - मंगलवार और शनिवार । इन दो दिनों में यहाँ आपको हर प्रकार कि दुकानें सजी मिल जाएंगी । चाहे वो सब्जी फल हो या गल्ला , कपड़े हों या  क्रीम पाउडर, परचून की दुकान हो या चायनीज आइटम की दुकान । बाज़ार में घुसते ही आपको तमाम मर्जों को चुटकी में जड़ से ग़ायब कर देने वाले चूरन बिकते जरुर दिख जायेंगे । चूरन बेचने वाले दुकानदार बाकायदा लाउड स्पीकर लगाकर इस बात का दावा करते हैं । यहाँ आपको 100 रुपये में चार साड़ियां भी मिल जाएँगी । यकीन नहीं होता कि इस मंहगाई के दौर में भी ये मुमकिन है । सच में यह बाज़ार कई मायनों में विशाल मेगा मार्ट, वी मार्ट  जैसे सस्ते स्टोर्स को मात देती नज़र आती है ।  हाँ एक चीज जो इस बाजार को ख़ास बना देती है वो है पशुओं की ख़रीद फ़रोख्त । यहाँ बकरी  से लेकर गाय , बैल, भैंस तक ख़रीदे व बेचे जाते हैं । बाज़ार में दुकानें सजाने के लिये सीतापुर तक के दुकानदार आते हैं । ख़रीददारी के लिये दूर दूर के गांव से लोग आते हैं ।


अब मैं बात करता हूँ इस गांव की कुछ और चीजों की ।   इस गांव की आबादी एक हज़ार के आसपास होगी । यहाँ हर तरफ ग़रीबी , बेरोजगारी , अशिक्षा दिखाई पड़ती है । इन समस्यायों पर हम लोग ग़ौर फ़रमायेंगे लेकिन थोड़ी देर के बाद । गांव में घुसते ही चाय - समोसे की दुकानें व पान मसाले की कई गुमटियां आपको दिख जाएंगी । थोड़ा और आगे बढ़ते ही कच्चे - पक्के बने तमाम घर , कंचे खेलते छोटे - छोटे बच्चे , गपशप लड़ाते या फिर किसी कोने में गांजा पीते अधेड़ उम्र के लोग , बच्चों को गोद में  टांगे महिलायें आपको आसानी से देखने को मिल जायेंगे । अब आपको आगे मिलेगा सरकारी प्राथमिक स्कूल । यह काफी बड़े एरिया में बना हुआ व अच्छे से रंगा पुता स्कूल जरुर है लेकिन बच्चों की संख्या यहाँ नगण्य है । दस कदम आगे है सरकारी बैंक । यह बैंक यहाँ पर सन 1979 में खुला था । आसपास के कई गाँव में  इकलौता बैंक  होने के कारण इसके आसपास अक्सर लोगों का हुजूम लगा रहता है । और इस हुजूम का भरपूर फ़ायदा उठाने के लिए इसके आसपास मौजूद हैं तमाम छोटी मोटी दुकानें । बैंक के बाहर चौराहे पर खड़े होकर जब आप चारों तरफ़ नज़रें दौड़ाते हैं तब आपको एहसास होता है कि इस गाँव में भी धन्नासेठ मौजूद हैं । चारों तरफ बने पक्के ऊँचे मकान इस बात की गवाही देते हैं । ये बात एकदम पुख़्ता हो जाएगी जब आपको चौराहे के दायीं ओर सुनार की 5 दुकानें एक लाइन से सजी दिखाई देंगी । जी हाँ पूरे गाँव में सुनार की कुल 12 दुकानें हैं । एक आध ज्यादा भी  हो सकती हैं । मेरी तरह आपको भी यह जानकर आश्चर्य जरूर हुआ होगा ।  इसके आगे फिर कभी लिखूंगा तब तक के लिए इजाज़त | 
                                                                                                           …to be continued

     

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