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Friday, July 11, 2014

निराशाजनक रेल बजट

निराशाजनक रेल बजट
दो दिन पहले ही मोदी सरकार का पहला रेल बजट रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने पेश किया | तमाम घोषड़ाओं के बावजूद यह बजट कोई खास आशा पैदा करता नहीं दिखता | भले ही भाजपा नेता इसे बहुत अच्छा और भविष्य का बजट बता रहे हों लेकिन वास्तविकता यही है कि भविष्य के प्रति यह बजट एकदम शून्य है | आम आदमी जो टुक टुकी लगाये बजट की तरफ देख रहा था उसे हमेशा की तरह निराशा ही हाथ लगी है |
अभी पंद्रह दिन पहले ही रेल मंत्री जी ने कुछ यह कहते हुए रेल यात्री किराया और माल भाड़ा बढाया था कि रेलवे कि माली हालत बहुत ही ज्यादा ख़राब है और इसका घाटा लगातार बढता जा रहा है | ऐसा लगा कि यदि तुरंत ही किराया नहीं बढाया गया तो रेलवे डूब ही जायेगा | बजट का भी इन्तजार नही किया जा सका | उस समय ऐसा लगा कि रेल मंत्री वाकई रेलवे की ख़राब आर्थिक  हालत को लेकर गंभीर हैं और इस बार के बजट में इससे उबरने के लिए कुछ सार्थक उपाय जरुर ही करेंगे | लेकिन यह क्या बजट आते ही नतीजा ढाक के तीन पात | मंत्री जी के सारे उपाय केवल किराया बढाने तक ही सीमित रह गई | वास्तव में बजट में एक भी ऐसा प्रस्ताव पेश नहीं किया जा सका जिससे यह लगे की सरकार वाकई में रेलवे के आर्थिक हालात को सुधारने के लिए गंभीर है | या फिर सरकार यह मान बैठी है कि केवल किराया बढाना ही एकमात्र तरीका है जिससे सब कुछ ढीक हो जायेगा | असल में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किराया बढाना सबसे आसान लेकिन बेहद घटिया उपाय है |
हमारे देश में रेल पटरी का दायरा 65000 किलोमीटर से भी ज्यादा का है इस आधार पर पूरे विश्व  में रेलवे की हैसियत तीसरी है लेकिन आज भी हम 25000 किलोमीटर से भी कम का विधूतीकरण कर सके हैं | जबकि बिजली मार्ग पर परिचालन का खर्च गैर बिजली मार्ग कि अपेझा एक तिहाई ही  पड़ता है | इस तथ्य के बावजूद बजट में एक भी इंच पटरी के विधूतीकरण का प्रस्ताव नही है | तमाम नयी ट्रेनों का प्रस्ताव अवश्य है लेकिन नयी पटरियां बिछाने की कोई भी योजना नहीं है | इसका मतलब हुआ कि नयी ट्रेनें भी मौजूदा पटरियों पर ही दौड़ेंगी | जिन पटरियों की हालत पहले से ही चरमराई हुई है , जो अभी ही ट्रेनें का बोझ नहीं संभाल पा रही वो इन नयी ट्रेनों को ठोएंगी ? मोदी ने अटल बिहारी वाजपयी की स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना की तर्ज पर हीरक चतुर्भुज परियोजना का सपना दिखाया है जिसके तहत चार महानगरों दिल्ली – मुंबई –कोलकाता – चेन्नई को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव है | लेकिन बजट में इसके लिए केवल 100 करोड़ रूपये का प्रावधान किया गया है | इतने में तो 1 किलोमीटर पटरी भी न बिछ पायेगी |
मोदी ने चुनावी रैलियों के दौरान देश की जनता जो बुलेट ट्रेन का सपना दिखाया था | उसी के अनुरूप बजट में मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन का  प्रस्ताव किया गया है | खुद गौड़ा जी के शब्दों में इस के लिए 60 हजार करोड़ रूपये की जरुरत होगी | अब पहला सवाल यह उठता है कि क्या वाकई हमारे देश को इस ट्रेन की कोई आवश्यकता है | दूसरा प्रश्न है कि क्या हमारा रेलवे इसे चला पाने में समर्थ है | जहाँ एक तरफ रेलवे जबरदस्त आर्थिक संकट से जूझ रहा है वहीँ दूसरी तरफ हम केवल एक ट्रेन पर 60 हजार करोड़ कैसे खर्च कर सकते हैं | इतने पैसे से तो रेलवे का पूरा आधारभूत ढांचा मजबूत किया जा सकता है | आखिर इस बुलेट ट्रेन के चलने से किसे फायदा होगा | गरीब आदमी को , मध्य वर्ग को या अमीर तबके को ?  जिन देशों में ये ट्रेन चलती हैं वहां इसका किराया विमान के किराये के बराबर या उससे भी ज्यादा होती हैं | तो जो अमीर है वो ट्रेन से क्यूँ चलेगा वो विमान में सफ़र करना पसंद करेगा | और जो गरीब है वो चाह के भी इसमें सफ़र नही कर पायेगा | तो फिर किसके काम आयेगी ये ट्रेन | लगता है मोदी जी बुलेट को भारत इसलिये लाना चाहते हैं क्योंकि पड़ोस के कुछ देशों में भी ये है | बुलेट रखने वाले ऐसे ही एक बड़े देश चीन में इस ट्रेन की आधी से ज्यादा सीटें खाली रहती हैं | ध्वनि प्रदूषण भी बेहद ज्यादा करती हैं ये ट्रेनें | खुद चीन के तमाम अर्थशास्त्री इसे अर्थव्यवस्था के हित में सही नही मानते | और हम हैं कि लगातार बढते घाटे के बावजूद इसे लाने पर आमादा हैं | ये तो कुछ वही बात हो गई कि घर में रौशनी के लिए दीयों में तेल नहीं और मेन गेट पे हैलोजन लगा है |
रेलवे के 150 साल से भी ज्यादा पूरे हो जाने के बाद भी आज भी हमारी ट्रेन की अधिकतम रफ़्तार 150 किमी प्रति घंटे ही है | वह भी मात्र एक ट्रेन दिल्ली - भोपाल शताब्दी की जो शायद ही उक्त रफ़्तार कभी पकड़ पाती हो | आज भी ट्रेनों में लोग भूसे की तरह भरे रहते हैं | रिजेर्वेसन मिलना एक चुनौती है | डिब्बों की हालत तो ना ही पूछिये | गर्मियों में एसी काम करना बंद कर देते हैं | पानी के नाम पर मिलता है खौलता हुआ पानी | ट्रेन में बैठने के बाद यात्री गंतव्य तक कब पहुचेगा ये कोई नही बता सकता | यात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे रहती है | ट्रेनों की दुर्घटना , लूट डकैती की ख़बरें जब तब आती रहती हैं | यदि हम अपने मौजूदा ढांचे को ही बेहतर बना ले तो शायद समस्याएं काफी हद तक कम हो जायेंगी | 
रेल मंत्री जी को चाहिए था कि वह कुछ ऐसे उपाय करते जिससे रेलवे की लागत कम होती | गैर जरुरी और अत्यंत खर्चीली अत्याधुनिक सुविधाएँ देने के बजाये यदि मौजूदा सुविधाओं को बेहतर करने के उपाय करते तो बेहतर होता | यदि ऐसा कुछ हो सकता तो आम आदमी भी कह सकता था  कि अब रेलवे के अच्छे दिन आ ही गये हैं |
   

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