एक जमाना वो था जब गाने पैसे ले के गाये जाते थे
एक जमाना ये है जब गाने पैसे दे के गाये जाते हैं
एक जमाना वो था जब फिल्मों में कलाकार पैसे ले के काम करते थे
एक जमाना ये है जब फिल्मों में कलाकार पैसे दे के काम करते हैं
टैलेंट शोज़ और जज-----
इतने टैलेंट शोज़ हैं
टैलेंट है चहुँओर भरा पड़ा
वाहवाही लूट रहे जजों की
मनवा रहे अपनी काबिलियत का लोहा
इनके टैलेंट को कोई जज कर रहा नमन
तो है कोई पैरों पे गिरा पड़ा
दर्शक दाब रहे दांतों तले उँगलियाँ
सोचते इसके आगे तो फेल है स्टार बड़े से बड़ा
जब तक चलता शो तब तक होता इनका जलवा
फिर मुंह फेर लेते यही जज
जो कल तक कहते थे
लिख के ले लो तेरे आगे न हो पायेगा कोई खड़ा
अपनी पहचान बनाने को आतुर
ये करते लाखों जतन
कहीं जोड़ते हाथ तो कहीं करते दण्डवत नमन
पैसे लेने की बात क्या
काम के बदले दाम देने को भी तैयार
पर ये मायानगरी है इसको कोई समझ न पाया
टैलेंट ही सब कुछ नहीं यहां
गर दाँव पेंच नहीं आते
तो हाथों में आएगी सिर्फ रेत
और जीवन में अँधियारा
हो सकता है कुछ गर
टैलेंट और दाँव पेंच का कर संगम
जिद पे रह जाये तू अड़ा
बातों के जाल में ना फंस तू
ये तो भरमाया है
जब न थे ये शोज़ और ये जज
तब भी तो कितनों ने अपना लोहा मनवाया था
-- नितेन्द्र वर्मा
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