सुप्रभात
तो आखिरकार तीस लाख से ज्यादा केंद्रीय कर्मचारियों के लिए खुशखबरी आ ही गई । ये खुशखबरी भी इतनी बड़ी थी कि कर्मचारी से कहीं ज्यादा मंत्री जी खुश हो रहे हैं । अब कर्मचारियों को बोनस मिल सकेगा । बोनस का मुद्दा इतना बड़ा था कि खुद प्रधानमंत्री जी ने कैबिनेट की बैठक की । और इसमें बोनस दिए जाने का फैसला किया गया । फैसले से गदगद फैसले की जानकारी देने के लिए सरकार ने आनन फानन में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुला ली ।
सूचना व प्रसारण मंत्री कॉन्फ्रेंस में पहुंचे तो उनकी हँसी व ख़ुशी देखने लायक थी । ख़ुशी के मारे गृह मंत्री जी से भी न रहा गया । उन्होंने झट से मोदी जी को इस ऐतिहासिक फैसले के लिए बधाई भेज दी । कैबिनेट की तीव्रता व तत्परता देखिये कल बोनस पर फैसला किया गया है और दशहरे से पहले ही ये खाते में भी पहुँच जायेगा । मतलब महज दो या तीन दिन के भीतर ।
इसमें कोई दोराय नहीं कि सरकार का ये फैसला सराहनीय व कर्मचारियों के हित में है । इसके लिए सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए ।
अब बात आती है बैंकर्स की । जहाँ एक और सरकार केंद्र कर्मचारियों के बोनस के लिए इतनी सजग व तत्पर है वहीं दूसरी और बैंकर्स के वेतन समझौते को लेकर उतनी ही उदासीन प्रतीत होती है । आखिर क्या वजह है कि तीन साल बाद भी बैंकर्स को नहीं पता कि उसकी नवम्बर 2017 से लंबित वेतन बढ़ोत्तरी कब होगी । दशहरा दिवाली हम और हमारे परिवार भी मनाते हैं । बोनस न सही अपना उचित वेतन पाने का तो हक रखते ही हैं लेकिन अफ़सोस कि हम अपने ही हक के लिए नाक रगड़ते दिख रहे हैं ।
जितनी गम्भीरता इस बोनस के लिए सरकार न दिखाई वह अभूतपूर्व है । प्रधानमंत्री जी ने स्वयं बैठक की । सूचना प्रसारण मंत्री जी ने कॉन्फ्रेंस की । गृह मंत्री जी ने बधाई दी । इससे स्वतः ही समझा जा सकता है कि सरकार ने बोनस को कितनी गम्भीरता से लिया है । रेलवे यूनियन ने तो बोनस को लेकर बाकायदा हड़ताल तक की धमकी दी थी । वही रेलवे जिसकी रेल लॉक डाउन में महीनों खड़ी रहीं ।
यहां हम हैं जो लॉकडाउन में भी बिना डरे बिना थके अनवरत सेवाएं देते रहे, 2017 की लड़ाई आज तक लड़ ही रहे हैं । पिछले दिनों हमारे समझौते को लेकर जो ड्रामा हुआ उससे यूनियन को शर्म आये न आये लेकिन आम बैंकर्स को जरूर शर्म का एहसास हो रहा है । ये सरासर हम दस लाख बैंकर्स की बेइज्जती है । हमारे नेता साइन करने को तैयार खड़े थे लेकिन IBA ने मुंह फेर लिया कि अभी 22 तारीख तक उसका कोई इरादा ही नहीं है साइन करने का । 90 दिन की समय सीमा भी समाप्त हो चुकी है । इसलिए अब MOU भी निरर्थक व् बेमानी हो चुका है । कहना गलत न होगा कि आज के समय में IBA व् UFBU दोनों ही अपनी प्रासंगिकता व् प्रमाणिकता दोनों ही खो चुके हैं । हालिया घटनाक्रम इसकी पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं । IBA किसी भी तरह से संवैधानिक संस्था नहीं है ऐसा स्पष्टीकरण स्वयं IBA दे चुकी है । आम बैंकर शायद इसके पक्ष में भी नहीं है तभी कल शाम से देर रात तक #ScrapIBA ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा । अब वक्त आ चुका है कि बैंकर्स को bipertite सेटलमेंट का विकल्प खोज लेना चाहिए । IBA और UFBU की नूराकुश्ती में पिसता है तो सिर्फ आम बैंकर ।
मुस्कुराते हुए जावड़ेकर साहब बोनस पर तर्क देते हैं कि मध्य वर्ग के हाथ में पैसे आने से बाजार में मांग बढ़ेगी । तो साहब हम मध्य वर्ग न सही निम्न मध्य वर्ग ही सही लेकिन हमारे हाथ में पैसे आने से भी बाजार में कुछ मांग तो बढ़ेगी ही । लेकिन समस्या ये है कि हम अपना दुखड़ा रोएं तो किससे??? कौन सुनेगा हमारी???
खैर सरकार की अपनी प्राथमिकताएं हो सकती हैं । अगर उसने कोई फैसला लिया है तो सोच समझकर ही लिया होगा । लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं कि अपने लंबित पड़े समझौते को लेकर बैंकर्स में घोर निराशा व हताशा का माहौल है ।
हमसे का भूल हुई
जो ये सजा हमका मिली
अब तो चारों ही तरफ
बंद है दुनिया की गली
हमसे का भूल हुई....
By A Banker
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