अमित शुक्ला |
कविता और ग़ज़ल लेखन के धनी अमित शुक्ला की कलम से निकली ग़ज़ल "इन्तहां"...पढ़ें..पसंद आये तो कमेंट व शेयर जरूर करें...
ग़ज़ल - इन्तहां
कब इन्तहां होगी आपकी मुझको सताने की
जहमत जरा उठा लीजिए मुझको बताने की ।
आप ही इल्जाम लगाते हैं बार बार
वरना है क्या मजाल इस जमाने की ।
कभी दिल माँगते हो और कभी जान
छोड़ी नहीं है कोई कसर आजमाने की ।
हजार गम भी हों तो छुपा लेते हैं दिल में
आदत बहुत बुरी है मेरी मुस्कुराने की ।
जलता रहा हूँ मैं सनम आपकी खातिर
ऐसा दीया जो फिराक में है खुद को बुझाने की ।
..........अमित .......
---अमित शुक्ला, अध्यापक, बरेली, उ प्र बेसिक शिक्षा परिषद्
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