विषम परिस्थितियों से जूझना और विजेता बन कर उनसे बाहर निकलना आसान काम नहीं
है | जो ऐसा करते हैं वही होते हैं असली
हीरो | ऐसे लोग बन सकते हैं तमाम लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत | इनको कहीं ढूंढने
जाने की जरुरत नहीं होती | ये हमें हमारे आसपास ही मिल जाते हैं...हमारे दोस्त,
गुरु, पड़ोसी या किसी और रूप में | यहाँ पर हम ऐसे ही लोगों की सफलताओं की कहानी
रखेंगे आपके सामने |
इस सीरीज के पहले अंक में प्रस्तुत है एक ऐसे ही विजेता PayTM संस्थापक विजय शेखर शर्मा की | तो चलिए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी...
सफलता की कहानी
विजय शेखर शर्मा |
एक इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला ले
लिया था |
स्कूल के दिनों में विजय टॉपर हुआ
करते थे | लेकिन कॉलेज में आते ही समस्याएं शुरू हो गयीं | अलीगढ़ जैसे शहर से
दिल्ली में आकर रहना उनके लिये आसान नहीं रहा | अव्वल तो अंग्रेजी में हाथ तंग और
दूसरा दिल्ली जैसा बड़ा शहर, शुरुआत में उन्होंने काफी समस्याओं का सामना किया |
कॉलेज ज्वाइन करते समय उनका कोई बड़ा सपना नहीं था | बस वह चाहते थे कि किसी तरह
कोर्स ख़त्म कर लें और दस हजार तक की कोई नौकरी कर लें | उस समय वह इससे ज्यादा कुछ
नहीं सोच रहे थे |
कॉलेज की शुरुआत में वो स्कूल की ही
तरह आगे की बेंच पर बैठे | लेकिन जल्दी वह सबसे पीछे की बेंच पर पहुँच गये | वजह
थी टीचर का अंग्रेजी में प्रश्न पूछना | टीचर हमेशा अंग्रेजी में प्रश्न पूछते और
हर बार प्रश्न उनके सिर के ऊपर से निकल जाता | अक्सर क्लास में सहपाठियों के उपहास
का भी पात्र बनना पड़ता | उस समय वह कॉलेज के हॉस्टल में रहा करते थे | हॉस्टल के
मित्रों ने उनकी बहुत मदद की | उन्होंने उनका आत्मविश्वास तो बढ़ाया ही, क्लास में
भी पिछड़ने नहीं दिया | अपनी अंग्रेजी सुधारने के लिये समाचार पत्र और तमाम
मैगजीनें पढ़ते रहते थे | उन्हीं दिनों उन्होंने एक मैगेजीन में सिलिकॉन वैली के
बारे में पढ़ा | वो इससे खासे प्रभावित हुए
| अब वह अपना खूब समय कॉलेज के कंप्यूटर सेंटर में बिताने लगे | वो एक और सबीर
भाटिया बनने के ख़्वाब देखने लगे | उस समय उन्हें महसूस हुआ कि कोई नौकरी करने के
बजाय खुद का कोई काम करना बेहतर होगा |
उन्हें भरोसा था कि वो इन्टरनेट की
सहायता से अपनी एक कंपनी बना सकते हैं | उस समय यानि 1990 के आसपास इन्टरनेट के
प्रयोग में खासी तेजी आ चुकी थी | थर्ड इयर में ही अपने एक सहपाठी हरिन्दर ताखर के
साथ मिलकर अपनी कम्पनी बना डाली | नाम रखा Xs! Corporation | यह एक वेब पोर्टल था जो वेब आधारित
सेवाएं तो उपलब्ध कराता था ही साथ ही सर्च इंजन भी था | अपना कॉलेज 1998 में ख़त्म
करने वाले विजय ने 1999 में अपनी कंपनी को LIVING Media India(वर्तमान में India Today Group) को बेच दिया | उस समय उनकी कंपनी का टर्न ओवर 50 लाख रु था |
इस सौदे से मिले पैसों से सबसे पहले
उन्होंने एक टीवी ख़रीदा | उस समय तक उनके घर में कोई टीवी नहीं था | माँ के लिये
कुछ साड़ियाँ खरीदीं | पिताजी ने बहनों की शादी के लिये जो कर्ज ले रखा था उसे
चुकाया | कुछ पैसा बचा भी लिया | उनके घर वाले नहीं समझते थे कि वो क्या करते हैं
लेकिन उन्हें विजय के ऊपर बड़ा गर्व था |
अपनी कंपनी बेचने के बाद उन्होंने कुछ
दिन नौकरी भी की लेकिन जल्दी ही बोर हो गये | उनके पास 2 लाख रु थे | अपने एक
सहकर्मी राजीव शुक्ला के साथ मिलकर मोबाइल की value added service प्रदाता कंपनी One97
Communications Ltd की स्थापना
की | लेकिन उसी समय 9/11 हादसा हो गया और उनका बिज़नेस तबाह हो गया | उनके पार्टनर साथ छोड़ गये
| सारे पैसे भी खर्च हो चुके थे | उन्होंने पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग करना
शुरू कर दिया | कई कई बार पूरा दिन दो कप चाय पर गुजारना पड़ा | पिताजी ने कोई
नौकरी करने को कहा | उस समय वो 25 वर्ष के थे तब उनका परिवार चाहता था कि वो अपना
घर बसा लें | ऐसे में उन्होंने एक कंसलटेंट की नौकरी कर ली | लगभग उसी समय देश में
स्मार्ट फोन खासे प्रयोग में आने लगे थे | उन्होंने सोचा क्यों न इसी के जरिये कुछ
ऐसा किया जाये जो लोगों की जिन्दगी को बदल डाले |
तब उन्होंने नींव रखी मोबाइल वॉलेट PayTM की | जिसे स्मार्टफोन के जरिये प्रयोग
किया जा सकता है | आज यह कंपनी सिर्फ मोबाइल वॉलेट की सुविधा ही प्रदान नहीं करती
बल्कि ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में उतर चुकी है | इतना ही नहीं हाल ही में इसे ‘पेमेंट
बैंक’ का लाइसेंस भी हासिल हुआ है | Bungee jumping,
sky diving, river rafting के दीवाने विजय शेखर को गति पसंद है | वह जीवन को तेज रफ़्तार में जीना पसंद
करते हैं | वह कहते हैं कि हर कोई अपना बेस्ट करना चाहता है और कुछ लोग करते भी
हैं लेकिन आखिर में गति ही वो चीज है जो अंतर पैदा करती है |
No comments:
Post a Comment