विषम परिस्थितियों से जूझना और विजेता बन कर उनसे बाहर निकलना आसान काम नहीं
है | जो ऐसा करते हैं वही होते हैं असली
हीरो | ऐसे लोग बन सकते हैं तमाम लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत | इनको कहीं ढूंढने
जाने की जरुरत नहीं होती | ये हमें हमारे आसपास ही मिल जाते हैं...हमारे दोस्त,
गुरु, पड़ोसी या किसी और रूप में | यहाँ पर हम ऐसे ही लोगों की सफलताओं की कहानी
रखेंगे आपके सामने |
इस सीरीज के पहले अंक में प्रस्तुत है एक ऐसी माँ की जिसने अपने जुझारूपन से तमाम विपरीत परिस्थितियों को दी मात | तो चलिए जानते हैं उनकी सफलता की कहानी...
सफलता की कहानी
सुमित्रा देवी |
रामगढ़ शहर
की सुमित्रा देवी ने जीवन में तमाम झंझावत झेले, तकलीफे सहीं लेकिन हार नहीं मानी
| मुश्किलों को मुंहतोड़ जवाब दिया, हाड़तोड़ मेहनत की और अपने बेटों को आइएएस,
डॉक्टर और इंजीनियर बनाया |
उनकी कहानी
भले ही बिलकुल फ़िल्मी लगती हो लेकिन ऐसा जज्बा बिरले ही दिखा पाते हैं | पति
नवादा(बिहार) निवासी रामलखन प्रसाद का 1991 में निधन हो गया | वह सीसीएल रजरप्पा
में फोरमैन पद पर कार्यरत थे | उनकी अचानक मृत्यु के बाद सुमित्रा देवी को कड़ा
संघर्ष करना पड़ा | उस समय उनका बड़ा पुत्र वीरेन्द्र कुमार तकरीबन आठ वर्ष का था | वहीँ
दूसरा पुत्र धीरेन्द्र छः वर्ष का जबकि सबसे छोटा पुत्र महेंद्र चार वर्ष का था |
सबके जीवन यापन से लेकर पढ़ाई लिखाई का जिम्मा अकेली सुमित्रा के सिर आ पड़ा था |
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी |
उन्हें
रजरप्पा प्रोजेक्ट के टाउनशिप एरिया के ऑफिस में साफ़ सफाई का काम मिल गया | काम
मिलने के बाद सुमित्रा अपने बच्चों का भविष्य बेहतर बनाने में जुट गयीं | बड़े
पुत्र को नवोदय, दूसरे को सांडी स्थित राज वल्लभ उच्च विद्यालय और तीसरे पुत्र को
सैनिक स्कूल में दाखिला दिलाया | यह सुमित्रा के त्याग और बच्चों की लगन व मेहनत का
ही परिणाम था कि बड़े पुत्र को ONGC में नौकरी मिल गयी हालाँकि उन्होंने ये नौकरी ठुकरा दी | प्रतियोगी परीक्षाओं
की तैयारी की और टाटा जंक्शन में इंजीनियर के पद पर बहाल हुए | दूसरे पुत्र
धीरेन्द्र भी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर पटना में सरकारी चिकित्सक बन गये | वहीँ सबसे
छोटे पुत्र महेंद्र NIT से पढ़कर रेलवे में इंजीनियर बने | उनका सपना आइएएस बनने का था इसलिये नौकरी
छोड़ दी और यूपीएससी की तैयारी में लग गये | पहले प्रयास में ही उन्होंने देश की
सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में हासिल कर ली | वर्तमान में वो
सिवान(बिहार) में डीएम के पड़ पर कार्यरत हैं |
सुमित्रा को
नाज है अपने बच्चों पर लेकिन घमंड उन्हें रत्ती भर भी नहीं छू पाया है | बेटे जब
कामयाब हो गये तो उन्होंने माँ से नौकरी छोड़ देने को कहा लेकिन वह नहीं मानी | उन्होंने
कहा कि इसी नौकरी की बदौलत उन्होंने अपने संघर्ष को मुकाम तक पहुँचाया है | ऐसी
जुझारू व कभी हार न मानने वाले व्यक्तित्व की धनी इस माँ की जितनी तारीफ की जाये
उतनी कम है |
(Reference: समाचार पत्र ‘दैनिक
जागरण’ अंक: अप्रैल 10, 2016)
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