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Wednesday, July 16, 2014

Sunday at Behta – PART II जुलाई 07 2014

पिछला ब्लॉग(पोस्ट) लिखे हुए काफी समय हो गया है | अभी भी लिखने को बहुत कुछ रह गया है | शायद अब तक मैं काफी कुछ लिख चुका होता लेकिन कमबख्त लैपटॉप का चार्जर दगा दे गया | हुआ यूँ कि एक दिन यहीं बेहटा में मैंने सुबह – सुबह लैपटॉप चार्जिंग में लगा दिया थोड़ी देर बाद देखा तो वो चार्ज नही हो रहा था | मुझे लगा कुछ गड़बड़ हो गया है | मैंने चार्जर को दूसरे पॉइंट में लगा कर देखा लेकिन कोई फायदा नही हुआ | मुझे लगा कि हो न हो इसका चार्जर ख़राब हो गया है | अब ये सीतापुर में तो सही होने से रहा | करीब 1 महीने के बाद मैं इसे कानपुर ले गया जहाँ इसे लालबंगला मार्केट में कम्पुटर हेल्प में बनने के लिए दे दिया | चार्जर के ख़राब होने का कारण शायद हाई वोल्टेज का आना रहा होगा | ये समस्या यहाँ पर कॉमन है | चार्जर तो बन गया और दस दिन बाद मैं इसे ले भी आया लेकिन बैठे बिठाये 350 रूपये जेब से ढीले करने पड़ गए | हां एक संतोष मन को जरुर हुआ कि कहीं अगर ये चार्जर न बन पता तो नए चार्जर को खरीदने में कम से कम ३००० रूपये लग जाते | गनीमत है कि ये पैसे बच गए वरना शायद चार्जर आने में दो-चार महीने और लग जाते | खैर चार्जर बन गया और अब इस ब्लॉग को मैं आगे बढा रहा हूँ |
अब तक आपको इस गाँव का काफी अंदाजा लग गया होगा | मैंने पिछले पोस्ट के आखिर में लिखा था कि इस गाँव में सुनार की कुल 12 दुकानें हैं | इनमे से कई दुकाने तो एक दूसरे से सटी हुई हैं | गर्मियों के दिनों में अक्सर ये दुकानें सुबह सात बजे तक खुल जाया करती हैं लेकिन बाजार के दिनों में यानी मंगलवार और शनिवार को तो और भी जल्दी खुलती हैं | अगर आप सोच रहे हैं कि इस गाँव में सुनार कि दुकानों में कौन आता होगा  तो आप बिल्कुल गलत हैं | सुबह से ही यहाँ लोगों का ताँता लग जाता है | कई बार तो दुकानें छोटी पड़ जाती हैं और लोगों को बाहर खड़े रहकर इन्तजार करना पड़ता है | हालाँकि जहाँ तक मुझे पता चला है इस दुकानों में लोग आभूषण ख़रीदने कम और गिरवी रखने ज्यादा आते हैं | लेकिन इसका ये मतलब बिल्कुल ना निकालें कि बिक्री में किसी तरह की कोई कमी रहती है | सुनार कि दुकानों के अलावा यहाँ पर परचून की भी खूब दुकानें हैं | परचून की पक्की दुकानों के अलावा चलतू दुकानें भी खूब हैं | तमाम लोग घर के बाहर चबूतरे पर ही दुकान लगा लेते हैं इसमें अक्सर बुढ़िया या बच्चे बैठते हैं | इन दुकानों में आपको पान मसाला , बीड़ी – सिगरेट , बिस्किट ,साबुन इत्यादि सामान मिल जायेगा | मोबाइल की दुकानें भी खूब सजी हुई है | यहाँ आपको रिचार्ज से लेकर नए हैंडसेट तक मिल जायेंगे | डाउनलोडिंग भी खूब होती है | वैसे हम लोगों को कभी इन दुकानों की जरुरत नहीं पड़ी क्यूंकि हम लोगों के मोबाइल्स को रिचार्ज करने की जिम्मेदारी उठा रखी थी हमारे परमप्रिय आशु जी ने | इनका जिक्र तो मैं आगे करूँगा ही हां अभी इनके बारे में इतना जान लें कि कभी भी कहीं भी आपको मोबाइल रिचार्ज की जरुरत पड़े तो आशू जी को सिर्फ एक कॉल करने की देर है | यानि इधर आपने कॉल की और उधर फ़ोन रिचार्ज | हां एक रोचक बात और मोबाइल रिचार्ज करवाने के अगले ही दिन आशू जी आपसे मुलाकात करने जरुर पहुचेंगे | ऐसा क्यों ये मैं आपको बाद में बताऊंगा |
इसके अलावा कुछ दुकानें एलपीजी गैस सिलिंडर की भी हैं |  अवैध तरीके से गैस रिफीलिंग का धंधा यहाँ खुलेआम चलता है | यहाँ छोटे से लेकर बड़े सिलिंडर में गैस भरवाई जा सकती है | गाँव के पास ही इंडेन कि गैस एजेंसी भी है | गर्मियों के दिनों में कोल्डड्रिंक की दुकानें भी खुल जाती हैं | बैंक के पास चौराहे पर कोल्डड्रिंक की दुकान लगती है | यहीं पर पान मसाला , पकौड़ी , अंडे जैसी कई दुकानें लगती हैं | बैंक में होने वाली भीड़ के कारण इन दुकानों की अच्छी खासी बिक्री हो जाती है | हां बाजार के दिनों में (जैसा मैंने पहले बताया कि यहाँ हफ्ते में दो दिन मंगल और शनिवार को बाजार लगती है ) ये दुकानें भी वहीँ शिफ्ट हो जाती हैं | गाँव के कुछ लोग बाजार में खाने पीने जैसे समोसा, पकौड़ी , नमक पारा, की दुकानें लगाते हैं | उनके घर में आपको बाजार के पहली वाली रात में ही सारा सामान तैयार मिल जायेगा | बस देर रहती है उसे पकाने की | इन चीजों को खाने की हिम्मत तो आज तक मैं नहीं जुटा पाया |
अब बात इस गाँव की कुछ खास परम्पराओं की |  सबसे रोचक और मुझे अपने बचपन के दिन याद दिलाने वाली जो बात है वो है यहाँ पर हर दूसरी रात प्रोजेक्टर पर फिल्म चलना | प्रोजेक्टर पर फिल्म चलने को यहाँ लोग पर्दा चलना कहते हैं | यहाँ चलने वाला पर्दा भी कोई साधारण पर्दा नही है बल्कि ये है डिजिटल पर्दा | परदे का साइज़ भी अच्छा खासा है | इसके साथ होते हैं दो बड़े स्पीकर्स | फिल्म देखते समय बिलकुल ऐसा एहसास होता है जैसे वाकई किसी अच्छे सिनेमाहाल में फिल्म चल रही हो | 80 – 90 के दशक की फिल्मों का क्रेज यहाँ कुछ ज्यादा ही है | इसे देखने वालों की भीड़ भी खूब जमा होती है | जब मैं यहाँ पिछले साल यानि नवम्बर 2013 में आया था तब यहाँ लगभग रोज ही पर्दा चलता था | लेकिन पिछले कुछ दिनों में इसमें कुछ कमी आयी है | इसका एक कारण तो ये है की परदे की वजह से कुछ सुकून पसंद लोगों के सुकून में ख़लल पड़ता है | दूसरा इधर गाँव में चोरी की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं | तो थोड़ा दबाव पुलिस का भी है | सर्दियों की रातों में भी लोग चद्दर, कम्बल ओढ़कर खुले आसमान के नीचे बैठकर पर्दा देखते थे | हर पंद्रह बीस दिन के बाद यहाँ किसी न किसी का प्रवचन या पाठ अवश्य होता है | इस गाँव में मुझे जो चीज नदारद दिखी वो है आपसी सोहार्द | यह गाँव खुद में कई हिस्सों में बंटा हुआ है | इसमें कई रौबदार परिवार हैं जैसे कभी गाँव के सरपंच रहे भटनागर का परिवार , आजकल प्रधान रस्तोगी जी का परिवार – इस परिवार का लगभग हर सदस्य सुनारी के व्यवसाय से जुड़ा है, दिवेदी परिवार | इसी गाँव में रहते हुए भी आपको कई बार पता भी नही चलेगा की इसी गाँव के किसी कोने में किसी की मृत्यु हो गई है | क्यूंकि सभी कामकाज पहले की तरह ही चलते रहते हैं | सभी दुकानें भी खुली रहती हैं | जब तक किसी बड़े घर में चोरी न हो जाये पता भी नही चलेगा की गाँव में चोरी भी हुई है | कई बार खुद मुझे न्यूज़ पेपर में छपी खबर से ये बातें पता चलीं |

आप आसपास के किसी भी गाँव में यदि शादी में शिरकत करने गये है तो बड़े ही दुखदायी अनुभव से गुजरना पड़ेगा | किसी बाहरी व्यक्ति के शादी में जाने का खास मकसद होता है लजीज भोजन | भोजन यहाँ भी आपको मिलेगा लेकिन यदि मैं आपको समय बता दूँ तो या तो आप शादी से बिना खाना खाए ही रुखसत हो लेंगे या फिर शादी में जायेंगे ही नही | 12 बजे तक भी आपको खाना मिल गया तो आप अपने आपको खुशनसीब मानिये वरना कहीं कहीं रात के 2 भी बज जाते हैं |
...to be continued

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