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Tuesday, October 2, 2018

कहानी - समय


साहित्य में गहरी रूचि रखने वाले शैलेन्द्र राठौर की एक और कहानी आप
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Sahilendra Rathaur
सब के सामने है | पढ़िए और पसंद आये तो like, comment और share करिये...
 








कहानी - समय 

एकता time कितना हुआ है? लंच में अभी और कितनी देर है? जया ने पूछा था।
एकता ने घड़ी देखने के लिए जैसे ही अपनी आंखें कलाई की ओर मोड़ी कि एकता की आंखे फटी की फटी रह गई। एकदम स्तब्ध, अवाक सी खड़ी एकता को याद आया कि आज तो वह घड़ी बांधना ही भूल गई। उसके माथे पर पसीने की बूंदे उभर आई थी, उसे ऐसा लग रहा था जैसे आज वह बहुत बड़ी भूल कर गई हो और ऐसा लगे भी क्यों ना आखिर आठ साल में आज ऐसा पहली बार हुआ जब एकता ने अपने हाथ मे वह घड़ी ना बाँधी हो। 

एकता को ऐसे सुन्न सी अवस्था मे देख जया ने उसके काँधे पर हाथ रखते हुए पूछा- क्या हुआ एकता? 
एकता ने माथे का पसीना पोछते हुए कहा- शायद आज घड़ी बांधना भूल गई, बस थोड़ी ही देर में लंच होने वाला है। बच्चो को होमवर्क देकर मिलते है अपन लंच में ।


इतना कहकर एकता फिर से बच्चों को पढाने में लग गई, लेकिन एकता का मन किताब में कम और अपनी सुनी कलाई पर ज्यादा जा रहा था। आंखे बार बार वहीं जा रही थी। उसे याद आ रहा था कि सुबह नहाने के बाद जब वह तैयार हो रही थी और घड़ी बांधने ही वाली थी कि उसकी 2 साल की बिटिया मिष्ठी खेलते खेलते गिर गई, एकदम से उसके रोने की आवाज आई और वह भागकर उसे सम्भालने में लग गई, इसी बीच उसे स्कूल आने में देर होने लगी और जल्दी से काम निपटाकर वह स्कूल आ गई।


टन टन टन... इस घंटी की आवाज सुन एकता को याद आया स्कूल का half time हो गया।


लंच टाइम में एकता अपना टिफिन बॉक्स लेकर  बैठी लेकिन उसका मन खाने में नही लग रहा था। उसने अपना टिफिन पैक किया और वहां से उठकर बगीचे की ओर चल दी। बगीचे में एक लंबी सी बेंच है जिस पर एकता रोजाना अपनी उंगलियां फेरती है, उसे ऐसा लगता है जैसे वहा कोई और भी है जो उसकी हथेलियों को सहलाता है। एकता आंखे बंद कर के उस बेंच पर बैठी और अतीत की यादों में खो गई।


उसे याद आ रहा था जब आठ साल पहले इस स्कूल में वह गेस्ट टीचर बनकर आई थी। यही पर उसकी मुलाकात मोहित से हुई थी। मोहित स्पोर्ट्स टीचर था। धीरे धीरे उनमे दोस्ती हुई और फिर प्यार हो गया। उसे याद आ रहा था कि मोहित हमेशा लंच टाइम में एकता का ही टिफिन पहले खोलता और फिर खाने बैठ जाता था, जब एकता बोलती कि मै क्या खाऊँगी तो बोलता था - खूबसूरत लड़कियों को खाने की क्या जरूरत है?
ऐसे ही वह उसे बहुत तंग करता रहता था। खेल के पीरियड में भी वह स्टूडेंट के साथ साथ एकता को भी ग्राउंड पर ले जाता था। यही पर उसने खो - खो का खेल भी खूब खेला । दोनो एक दूसरे के साथ बहुत खुश थे। 
एक दिन जब एकता का जन्मदिन था तो दोनो इसी बेंच पर बैठे थे। मोहित ने पूछा - एकता बताओ तुम्हे जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहिए? 


एकता- तुम्हारा प्यार ही मेरे लिए सबकुछ है। घर आकर मेरे पापा से अपनी शादी की बात करो।
मोहित- हां, कल ही तुम्हारे घर आकर मै तुम्हारे पापा से तुम्हारा हाथ मांगता हूं, और अभी तुम्हारे हाथ मे यह घड़ी बांधता हूँ। तुम्हारा बर्थ डे गिफ्ट है यह। ये सिर्फ एक घड़ी नही है, यह मेरा प्यार है। मैं चाहता हूँ जब जब तुम अपनी कलाई पर इसे बांधो तुम मुझे याद करो, मुझे महसूस करो। समय कितना ही तेज़ बढ़ता जाएगा पर हमारा प्यार ओर एक दूसरे का साथ और भी ज्यादा गहरा होता जाएगा । इसे हमेशा अपनी कलाई पर बांधे रखना एकता।  


एकता- हाँ मोहित यह तुम्हारा प्यार हमेशा मेरी कलाई पर बंधा रहेगा। 
मोहित- ठीक है फिर मै कल आता हूं तुम्हारे घर, आज रात को मुझे इंदौर जाना है। माँ को भी यह खुश खबरी देना है।


इतना कह कर मोहित वहां से चला गया, लेकिन दूसरे दिन मोहित एकता के घर उसका हाथ मांगने नही जा पाया। एकता उसकी राह देख रही थी लेकिन मोहित नही पहुँचा। 


कुछ देर बाद एकता को खबर लगी कि मोहित का एक्सीडेंट हो गया और अब वह इस दुनिया मे नही रहा। 
गुजरी हुई ज़िन्दगी की इस घटना को याद कर के एकता की आंखों में आंसू आ गए। यू तो इस हादसे को आठ बरस हो गए थे लेकिन मोहित की यादें आज भी एकता के दिल मे बसी है। उसे याद आ रहा था कि वह इस हादसे के बाद टूट गई थी और किसी दूसरे शख्स से शादी करने का सोच भी नही सकती थी , लेकिन माता पिता की समझाइश के आगे उसकी एक न चली।  मोहित से मिला जन्मदिन का वह तोहफा अपनी कलाई पर वह हमेशा बांधे रखती है। इतने साल गुजर गए पर वह गुजरे हुए समय से बाहर निकल ही नही पाई।


यह सब सोचते सोचते एकता का मन बहुत भारी हो गया, उसने अपनी स्कूटी उठाई और घर की ओर चल दी। घर पहुचते ही एकता ने वह घड़ी बाँधी। कलाई पर घड़ी बांधते ही एकता की आंखों में फिर से आंसू छलक पड़े। वह मोहित को याद कर के सोचने लगी..
तू जो अचानक से हाथ छोड़कर
वहुत दूर चला गया है,
उन्ही ज़ख्मो को भरने की कोशिश में हूँ मै। 
वक़्त आज वहुत आगे निकल गया है,
पर आज भी तेरे साथ बिताए हुए समय के धागों से बंधी हूँ मैं......



Written by...

शैलेन्द्र राठौर                       
S.W.O., Allahabad Bank
B.A., M.A. (Economics), PGDCA



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15 comments:

  1. शैलेन्द्र जी बधाई स्वीकार करें | कहानी छोटी लेकिन सार बड़ा है | आप से एक ही निवेदन है कि आप लिखने की निरन्तरता बढ़ाएं | पाठकों को ज्यादा इंतजार कराना अच्छी बात नहीं | अगली कहानी का इंतजार रहेगा...

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. भावनाओं का मार्मिक चित्रण..बहुत सुंदर रचना शैलेन्द्र जी👍👍

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  4. Khubsurati se prem rus or viyog rus prastut krr man koo mohh liya .... asha krtee hee or bhi kalakratiyoo see aap man ko anandit krte rahege humare bade bhaishab

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  5. Very emotional story with a nice little poetry in the end����

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  6. BAHOT BEHTAREEN SHAILENDRA SIR, JALDI NAZI ME MAINE PADHNA SHURU KIYA K THODA MAZMA LE LUN KAHANI KA, PAR KAHANI KI GRIP BAHOT KHOOB THI OR POORA PADHTA CHALA GAYA, MAIN KOSHISH KARUNGA ISKA AUDIO BANA K AAPKO BHENT KARU

    Himanshu Singh

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  7. बहुत उम्दा शैलेन्द्र भाई !!!!

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  8. क्या बात है बड़े भैया बहुत ही सुंदर चित्रण कभी-कभी किसी निर्जीव वस्तुओं से भी इतना प्रेम हो जाता है कि उसके बिना व्यक्ति 1 मिनट में रह सकता ठीक उसी पर आपने एकता के जीवन में घड़ी का क्या महत्व है इस बारे में बहुत ही बढ़िया वर्णन करें

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