मौन मोहब्बत
यूँ कभी जताया भी तो नहीं
आई लव यू कभी कहा भी तो नहीं
सीने से कभी लगाया भी तो नहीं
उम्र के इस पड़ाव पर
संगम की रेती पर
महाकुम्भ की पावन बेला पर
डर है कि बिछड़ न जाऊं तुझसे कहीं
शिकायत थी तेरी कि
महफ़िल में प्यार कभी जताया क्यों नहीं
इजहार-ए-मोहब्बत को सरेआम लुटाया क्यों नहीं
वो इक शिकायत भी दूर कर दी तेरी
आज तक मौन थी मोहब्बत मेरी
लेकिन आज करोड़ों की इस भीड़ में
संगम के इस तट पर
उम्र के इस पड़ाव पर
मैं हूँ तुम हो
और मेरे हाथों में है हाथ तेरा
जुबाँ अब भी खामोश है
लेकिन मेरी उँगलियाँ तेरी उँगलियों से
कुछ कह रही हैं
मेरी मौन मोहब्बत को
जुबाँ दे रही है
मेरी मौन मोहब्बत को
जुबाँ दे रही है
✍️नितेंन्द्र वर्मा
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