Menu bar

New Releasing soon...my new novel कंपू 007..a topper's tale कंपू 007...a topper's tale
New इस ब्लॉग के पोस्ट को मीडिया में देखने के लिये MORE menu के Milestone पर क्लिक करें..

Friday, August 24, 2018

Sample 1 - कंपू 007



मेरी जल्द ही प्रकाशित हो रही नई किताब "कंपू 007..a topper's tale" के कुछ चुनिन्दा अंश आप सब के लिये | उम्मीद है आप सबको पंसद आयेंगे | अगर आपको पसन्द आये तो कमेंट और लाइक में कंजूसी न करें....  





Sample 1:

हुडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन, गुरुग्राम, शाम 8:20 बजे

‘कौन है बे ?’ मैंने ट्रेन में घुसने के लिये लगी लाइन में पीछे तक झाँका लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा | पिछले दो मिनट में दूसरी बार किसी ने मेरे कंधे पर हाथ मारा था | ट्रेन स्टेशन में घुस चुकी थी | तभी फिर किसी ने हाथ मारा... इस बार और जोर से | लेकिन इस बार पीछे देखने का समय नहीं था |

दरवाजे खुल चुके थे | मैंने पीठ पर लदे अपने बैग को कसकर खींचा और अंदर घुसने की तैयारी करने लगा | तभी पीछे से आये जोरदार धक्के से मैं बिना किसी मेहनत के आगे बढ़ गया | लगातार आ रहे धक्कों ने मुझे अन्दर तक पहुंचा कर ही दम लिया | बीच बीच में अन्दर घुस रही और बाहर निकल रही भीड़ में गुत्थम गुत्था भी हो रही थी |

मैं अंदर घुसा ही था कि लगा जैसे कोई मुझे पीछे की ओर घसीट रहा है | मैंने मुड़ कर देखा | मेरा बैग बाहर जा रही भीड़ में फँस चुका था | मैंने बहुत कोशिश की उसे अंदर लाने की लेकिन वह लोगों में इस कदर फँस गया था कि छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था |

मैंने फुर्ती से बैग को पीठ से उतारा और दोनों हाथों से पूरा दम लगा कर अपनी ओर खींचा | बैग एक से छूटता तो दूसरे से जा उलझता | आखिर में कोई रास्ता न देख मैंने अपने बफ़र स्टॉक में जमा एनर्जी बाहर निकाली और पूरी ताकत से बैग को खींचा | इस बार बैग तो अंदर आ गया लेकिन मैं भरभरा कर मेरे ठीक पीछे खड़ी आंटी जी की गोद में समा गया |

I’m soory aunty ji’ उनकी गोद से उठते हुए मैं बोला |
You bastered ! Don’t you have eyes?’ उन आंटी जी ने अपनी आँखों में भड़क रही गुस्से की ज्वाला मुँह से उगल दी |
जितनी भारी भरकम वो थीं उतनी ही उनकी आवाज | मैं दोबारा गिरते गिरते बचा | ऐसा कौन सा इन्सान है जिसके पीछे भी आँखें होती हैं |

I am just going to call the security’ उन्होंने अपने साइज़ से मिलता जुलता फोन बाहर निकालते हुए कहा |
मैं कांपने लगा | मैं फिर से हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ा हो गया |
‘कोई नहीं आंटी जी...धोखे से गिर गया है | वो तो बेचारा बैग खींच रहा था | जाने दीजिये |’ आंटी जी के बगल में खड़ी सुन्दर और समझदार दिख रही लड़की बोली |

‘हुँह...ठीक है लेकिन मैं इन जैसे लफंगों को अच्छे से जानती हूँ | पहले सुन्दर लड़कियों को बहाने बाजी से टच करते हैं फिर अपने जाल में फँसा लेते हैं...|’ उन्होंने रहम दिली दिखाते हुए अपना फोन वापस रख लिया |     

सच में यार बुढ़िया को अपने बारे में कितनी गलत फहमियां हैं | आज इस लड़की ने मुझे बचा लिया वरना... | मैंने आँखों ही आँखों में उसे थैंक्स बोला जिसे उसने भी मुस्कुराते हुए लपक लिया | मन तो यहीं खड़े रहने का था लेकिन उस खूसट आंटी के सामने और कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था |

बैग उठाया तो पता चला कि खींचा तानी में दोनों बद्धियाँ सिरे से उखड़ गई हैं एक ऊपर से तो दूसरी नीचे से | ऊपर वाले इकलौते बचे हैंडल से खींच कर कुछ दूर लाया | राहत की दो चार सांस ही ले पाया था कि पीछे से फिर किसी ने कंधे पर हाथ मारा | इस बार मेरा गुस्सा धड़ाधड़ सीढ़ियों के पायदान चढ़ता हुआ सातवें आसमान पर जा पहुंचा |

मैं फुर्ती से पीछे मुड़ा और जोरदार घूँसा दे मारा | निशाना सटीक था | वो अपना पेट पकड़े फ़र्श पर फैला पड़ा था | मैंने अभी तक बंद अपनी मुट्ठी पर अविश्वसनीय द्रष्टि डाली | मेरा घूँसा वो भी इतना असरदार ? मेरा कॉन्फिडेंस भी गुस्से की तरह सातवें आसमान पर चढ़ गया |

लेकिन कॉन्फिडेंस ज्यादा देर तक वहां टिक नहीं सका | वो अगले ही पल उठा, अपने कपड़े झाड़े और जेब से चाकूनुमा चीज या शायद चाकू ही बाहर निकाला और मुझे बिना कोई वार्निंग दिये मेरे पेट में घोंप दिया | मैं दर्द से चीख पड़ा | मैंने दोनों हाथों से चाकू पकड़ लिया लेकिन उसने गुस्से से चाकू चारों ओर घुमाते हुए अंदर ही अंदर मेरे पेट में एक छोटा सा सर्किल बना डाला |

उसका थरथराता चेहरा और फुंफकारती साँसे मुझे मेरे अंतिम समय पास होने का आभास दे रही थीं | वो बिना कुछ बोले बस चाकू मेरे फेफड़ों से होते हुए पीठ के पार कर देना चाहता था | वो मेरे ऊपर चढ़ा जा रहा था | आज जिन्दगी में मैंने पहली बार ही पंगा लिया था वो भी ग़लत आदमी से | स्साला दिन ही खराब था | पहले बैग फँसा फिर मैं खुद उस खूसट बुढ़िया की गोद में और अब इधर |

कहाँ गई बुढ़िया ? मैंने कातर नजरों से उधर देखा | कुछ देर पहले जरा सी बात पर सिक्योरिटी बुलाने की धमकी दे रही पागल बुढ़िया अब दूर से खड़े नज़ारे देख रही थी | सहारे की तलाश में मेरी नजरों ने उस सुन्दर लड़की को भी ढूँढने की कोशिश की | लगा शायद वो किसी फ़िल्मी हीरोइन की तरह विलेन से लड़ने की ताकत दूर से ही अपने हीरो यानी मुझमे भर देगी | लेकिन मेरी बची खुची ताकत भी जाती रही जब उसे किसी और हीरो से चिपके देखा |

अभी तक लोगों से खचाखच भरा कोच अचानक खाली खाली लगने लगा था | दरअसल लोगों ने हमारे लड़ने के लिये पर्याप्त जगह छोड़ दी थी | जैसे अखाड़े में दो पहलवान लड़ रहे हों आर बाहर से दर्शक मजे लूट रहे हों |

मदद की कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी | अचानक उस आदमी ने मुझे छोड़ दिया | उसके सहारे लटका मैं धड़ाम से फ़र्श पर जा लुढ़का | वो बाहुबली की तरह मेरे सामने आ खड़ा हुआ | मेरी धड़कनें उबाल मारने लगीं | मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं |

जारी...

कंपू 007..a topper's tale
a novel by Nitendra Verma

No comments:

Post a Comment