मेरी जल्द ही प्रकाशित हो रही नई किताब "कंपू 007..a topper's tale" के कुछ चुनिन्दा अंश आप सब के लिये | उम्मीद है आप सबको पंसद आयेंगे | अगर आपको पसन्द आये तो कमेंट और लाइक में कंजूसी न करें....
Sample 1:
हुडा सिटी सेंटर मेट्रो
स्टेशन, गुरुग्राम, शाम 8:20 बजे
‘कौन है बे ?’ मैंने ट्रेन
में घुसने के लिये लगी लाइन में पीछे तक झाँका लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा | पिछले दो
मिनट में दूसरी बार किसी ने मेरे कंधे पर हाथ मारा था | ट्रेन स्टेशन में घुस चुकी
थी | तभी फिर किसी ने हाथ मारा... इस बार और जोर से | लेकिन इस बार पीछे देखने का
समय नहीं था |
दरवाजे खुल चुके थे | मैंने
पीठ पर लदे अपने बैग को कसकर खींचा और अंदर घुसने की तैयारी करने लगा | तभी पीछे
से आये जोरदार धक्के से मैं बिना किसी मेहनत के आगे बढ़ गया | लगातार आ रहे धक्कों
ने मुझे अन्दर तक पहुंचा कर ही दम लिया | बीच बीच में अन्दर घुस रही और बाहर निकल
रही भीड़ में गुत्थम गुत्था भी हो रही थी |
मैं अंदर घुसा ही था कि लगा
जैसे कोई मुझे पीछे की ओर घसीट रहा है | मैंने मुड़ कर देखा | मेरा बैग बाहर जा रही
भीड़ में फँस चुका था | मैंने बहुत कोशिश की उसे अंदर लाने की लेकिन वह लोगों में
इस कदर फँस गया था कि छूटने का नाम ही नहीं ले रहा था |
मैंने फुर्ती से बैग को पीठ
से उतारा और दोनों हाथों से पूरा दम लगा कर अपनी ओर खींचा | बैग एक से छूटता तो
दूसरे से जा उलझता | आखिर में कोई रास्ता न देख मैंने अपने बफ़र स्टॉक में जमा एनर्जी बाहर निकाली और
पूरी ताकत से बैग को खींचा | इस बार बैग तो अंदर आ गया लेकिन मैं भरभरा कर मेरे
ठीक पीछे खड़ी आंटी जी की गोद में समा गया |
‘I’m soory
aunty ji’
उनकी गोद से उठते हुए मैं बोला |
‘You
bastered ! Don’t you have eyes?’ उन आंटी जी ने अपनी आँखों में भड़क रही गुस्से की ज्वाला मुँह से उगल दी |
जितनी भारी भरकम वो थीं
उतनी ही उनकी आवाज | मैं दोबारा गिरते गिरते बचा | ऐसा कौन सा इन्सान है जिसके
पीछे भी आँखें होती हैं |
‘I am just
going to call the security’ उन्होंने अपने साइज़ से मिलता जुलता फोन बाहर निकालते
हुए कहा |
मैं
कांपने लगा | मैं फिर से हाथ जोड़कर उनके सामने खड़ा हो गया |
‘कोई
नहीं आंटी जी...धोखे से गिर गया है | वो तो बेचारा बैग खींच रहा था | जाने दीजिये
|’ आंटी जी के बगल में खड़ी सुन्दर और समझदार दिख रही लड़की बोली |
‘हुँह...ठीक
है लेकिन मैं इन जैसे लफंगों को अच्छे से जानती हूँ | पहले सुन्दर लड़कियों को
बहाने बाजी से टच करते हैं फिर अपने जाल में फँसा लेते हैं...|’ उन्होंने रहम दिली
दिखाते हुए अपना फोन वापस रख लिया |
सच में यार बुढ़िया को अपने
बारे में कितनी गलत फहमियां हैं | आज इस लड़की ने मुझे बचा लिया वरना... | मैंने
आँखों ही आँखों में उसे थैंक्स बोला जिसे उसने भी मुस्कुराते हुए लपक लिया | मन तो
यहीं खड़े रहने का था लेकिन उस खूसट आंटी के सामने और कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था
|
बैग उठाया तो पता चला कि
खींचा तानी में दोनों बद्धियाँ सिरे से उखड़ गई हैं एक ऊपर से तो दूसरी नीचे से |
ऊपर वाले इकलौते बचे हैंडल से खींच कर कुछ दूर लाया | राहत की दो चार सांस ही ले
पाया था कि पीछे से फिर किसी ने कंधे पर हाथ मारा | इस बार मेरा गुस्सा धड़ाधड़
सीढ़ियों के पायदान चढ़ता हुआ सातवें आसमान पर जा पहुंचा |
मैं फुर्ती से पीछे मुड़ा और
जोरदार घूँसा दे मारा | निशाना सटीक था | वो अपना पेट पकड़े फ़र्श पर फैला पड़ा था |
मैंने अभी तक बंद अपनी मुट्ठी पर अविश्वसनीय द्रष्टि डाली | मेरा घूँसा वो भी इतना
असरदार ? मेरा कॉन्फिडेंस भी गुस्से की तरह सातवें आसमान पर चढ़ गया |
लेकिन कॉन्फिडेंस ज्यादा
देर तक वहां टिक नहीं सका | वो अगले ही पल उठा, अपने कपड़े झाड़े और जेब से चाकूनुमा
चीज या शायद चाकू ही बाहर निकाला और मुझे बिना कोई वार्निंग दिये मेरे पेट में
घोंप दिया | मैं दर्द से चीख पड़ा | मैंने दोनों हाथों से चाकू पकड़ लिया लेकिन उसने
गुस्से से चाकू चारों ओर घुमाते हुए अंदर ही अंदर मेरे पेट में एक छोटा सा सर्किल
बना डाला |
उसका थरथराता चेहरा और
फुंफकारती साँसे मुझे मेरे अंतिम समय पास होने का आभास दे रही थीं | वो बिना कुछ
बोले बस चाकू मेरे फेफड़ों से होते हुए पीठ के पार कर देना चाहता था | वो मेरे ऊपर
चढ़ा जा रहा था | आज जिन्दगी में मैंने पहली बार ही पंगा लिया था वो भी ग़लत आदमी से
| स्साला दिन ही खराब था | पहले बैग फँसा फिर मैं खुद उस खूसट बुढ़िया की गोद में
और अब इधर |
कहाँ गई बुढ़िया ? मैंने
कातर नजरों से उधर देखा | कुछ देर पहले जरा सी बात पर सिक्योरिटी बुलाने की धमकी
दे रही पागल बुढ़िया अब दूर से खड़े नज़ारे देख रही थी | सहारे की तलाश में मेरी
नजरों ने उस सुन्दर लड़की को भी ढूँढने की कोशिश की | लगा शायद वो किसी फ़िल्मी
हीरोइन की तरह विलेन से लड़ने की ताकत दूर से ही अपने हीरो यानी मुझमे भर देगी |
लेकिन मेरी बची खुची ताकत भी जाती रही जब उसे किसी और हीरो से चिपके देखा |
अभी तक लोगों से खचाखच भरा
कोच अचानक खाली खाली लगने लगा था | दरअसल लोगों ने हमारे लड़ने के लिये पर्याप्त
जगह छोड़ दी थी | जैसे अखाड़े में दो पहलवान लड़ रहे हों आर बाहर से दर्शक मजे लूट
रहे हों |
मदद की कहीं से कोई उम्मीद
नहीं दिख रही थी | अचानक उस आदमी ने मुझे छोड़ दिया | उसके सहारे लटका मैं धड़ाम से
फ़र्श पर जा लुढ़का | वो बाहुबली की तरह मेरे सामने आ खड़ा हुआ | मेरी धड़कनें उबाल
मारने लगीं | मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं |
जारी...
कंपू 007..a topper's tale
a novel by Nitendra Verma
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