मेरी जल्द ही प्रकाशित हो रही नई किताब "कंपू 007..a topper's tale" के कुछ चुनिन्दा अंश आप सब के लिये | उम्मीद है आप सबको पंसद आयेंगे | अगर आपको पसन्द आये तो कमेंट और लाइक में कंजूसी न करें....
Sample
3:
गीतिका
से अपने प्यार की फ़ाइल पर पासिंग मुहर लगवाने का मौका बहुत पास था | 11 मार्च...यानी
परसों...गीतिका के बर्थडे से अच्छा मौका क्या हो सकता है उससे हाँ करवाने का | मैंने तैयारी भी शुरू
कर दी थी |
10
मार्च --
‘यार बता ना...गीतिका को बर्थडे गिफ्ट देना है...’ मैंने अनूप से फोन पे
पूछा |
‘हम्म...भाई देख लड़की जवान है...ब्रा पैंटी कुछ भी दे दे...या कोई खिलौना दे
दे...’ अनूप
हमेशा की तरह बेफ़िक्री से बोला |
‘अबे हम सीरियस बात कर रहे हैं तुम मौज ले रहे हो | और खिलौने का क्या
करेगी वो ? बच्ची है ?’ मैं गुस्से से बोला |
‘अबे चूतिया...खिलौनों से तो आजकल वो काम हो जाते हैं जो हम तुम भी ना कर पायें
| कल
ही कॉलेज में वो वाली चिप लेके आता हूँ | दिखाता हूँ तुझे खिलौने
का कमाल |’ वो चहकते हुए बोला |
‘अबे छोड़ो...और सुनो ये ब्रा, पैंटी और वो खिलौने अपनी रेहाना को दे देना मेरी तरफ
से...हुँह बड़े आये...’ मैंने फोन रख दिया |
मुझे
खुद पर गुस्सा आने लगा था | शाम हो रही थी लेकिन अभी तक मैं बर्थडे गिफ्ट तय नहीं
कर पाया था | एक गिफ्ट तय करना कितना मुश्किल होता है आज पता चला
था | कभी
किसी को देने का मौका ही नहीं आया तो जानूंगा भी कैसे | लेकिन रात में एक
सरप्राइज तो तय कर ही लिया था | शाम से ही गीतिका को एक भी मैसेज नहीं किया था | शाम को बात तो वैसे भी
नहीं कर पाता था क्योंकि दो कमरे के मकान में कोई चूं भी करता तो आवाज दीवारों तक
को चीर देती थी | बस मैसेज का ही सहारा था |
आज
नींद मेरी आँखों से दूर थी | घड़ी पर नजर डाली | बारह बजने में बारह
मिनट ही बाकी थे | मेरी उँगलियाँ नोकिया 3310 के कीपैड पर और फुर्ती से
थिरकने लगीं | करीब दस मिनट बाद ही वह थमीं | मैंने लम्बी गहरी सांस
भरी और और घड़ी पर नजर डालते हुए कुर्सी पर ही फैल गया | सिर्फ एक मिनट ही रह
गया था..मैंने पूरी तैयारी कर ली थी..गीतिका का नंबर स्क्रीन पर चमक रहा
था..अँगूठा ओके बटन दबाने के लिये तैयार था |
दस..नौ..आठ..और
ये जीरो ये भेजा..बारह बजते ही अँगूठे ने ओके बटन दबा दिया | मेरा सरप्राइज गीतिका
के फोन पर दस्तक दे रहा था | मैंने अपना फोन उठाया और चादर तानकर बिस्तर पर लेट
गया | फोन
को साइलेंट मोड में लगा दिया और इंतजार करने लगा अपने सरप्राइज पर आने वाले
रिएक्शन का | बड़ी मेहनत से मैंने दिल बनाकर भेजा है गीतका को | जल्दी ही मेरा मोबाइल
काँपा | गीतू
का मैसेज था--
-ये
क्या है ?
-दिल
-किसका
?
-मेरा
-किसके
लिये ?
-तुम्हारे
लिये
-क्या
कह रहा है ये दिल ?
-हैप्पी
बर्थडे टू यू
गीतिका
की ओर से पूछे गये आखिरी सवाल पर मेरे हजारों अरमान कुर्बान हो गये | अब मेरा दिल क्या बल्कि
क्या क्या कहता है मैं क्या बताऊँ..बस्स बर्थडे ही विश कर पाया | कुछ और एसएमएस आये गये
मगर मेरी फाइल जहाँ की तहां रही |
11 मार्च --
अभी भी मैं तय नहीं कर पा
रहा था कि गीतिका को क्या गिफ्ट दूँ | दिमाग नहीं चला तो मैंने अपनी साइकिल लालबंगला मार्केट की ओर घुमा दी | मेरे घर से महज चार पांच किलोमीटर की ही दूरी पर
था मार्केट | मार्केट के सबसे बड़े गिफ्ट
स्टोर ‘राकेश स्टोर’ पर मेरी आँखें गीतिका के लिये गिफ्ट तलाशने में
जुट गयीं | एक तरफ से देखना शुरू
किया..नजर कहीं ठहरती भी तो यह सोचकर आगे बढ़ जाता कि शायद आगे इससे अच्छा गिफ्ट
मिल जाये |
पूरे आधे घंटे बाद मैंने
खुद को वहीं पाया जहाँ से शुरू किया था | मैं खुद को कोसने लगा | मेरी तैयारी अच्छी नहीं थी | होमवर्क पूरा न करने की बचपन की आदत आज भारी पड़ रही थी | हाँ तब होमवर्क पूरा न करने पर पिछवाड़े क्यों
काटे जाते थे आज पता चला |
तुमसे न हो पायेगा..मेरे मन
से आ रही आवाज ने मुझे धिक्कारा | तभी मेरी नजर स्टोर के बीचों बीच लगे स्टैंड पर पड़ी | मैंने झट से आगे बढ़कर एक किताब निकाल ली | मेरे पसंदीदा नवोदित लेखक नितेन्द्र वर्मा का
नया कहानी संग्रह ‘प्रेम समन्दर’ मेरे हाथों में था | मैंने ये किताब पढ़ रखी थी | प्रेम के सप्तरंगी रंगों में रंगी कहानियां शायद
मेरे दिल के मजमून को गीतिका के दिल में उतार दें | मैंने ये किताब लाल रंग से गिफ्ट पैक करायी और
एक अच्छा सा ग्रीटिंग भी ले लिया |
अभी भी मुझे कुछ अधूरा सा
महसूस हो रहा था | गिफ्ट में कोई कमी थी जो
मुझे खल रही थी | स्टोर से बाहर निकला तो
सामने लेडीज आइटम की दुकान पर नजर गयी | आं आं...अनूप का बताया गिफ्ट लेने के लिये बिलकुल नहीं |
‘क्या चाहिये?’ काउन्टर पर खड़े कंकालनुमा सेल्समैन की आवाज से
मैं होश में आया | भीड़ भाड़ भरी सड़क पार कर मैं
कब और कैसे दूसरे किनारे पर आ गया जान ही नहीं पाया |
‘कोई अच्छा सा लेडीज गिफ्ट
आइटम दिखाइये’ मैंने पूरे आत्मविश्वास से
रैक पर रखे सामानों पर नजर घुमाते हुए कहा |
‘किसे देना है?’ सेल्समैन की यह गुस्ताखी मुझे नाकाबिले बर्दाश्त
लगी |
‘ग्राहक भगवान होता है और
भगवान से ज्यादा सवाल नहीं करते मूर्ख मानव’ मैं ऐसा कुछ बोलना चाहता था लेकिन सेल्स मैन की
लपलपाती कमीज के अन्दर छिपी हड्डियों पर तरस आ गया |
‘मेरे एक दोस्त को अपनी गर्ल
फ्रेंड को देना है..’ मेरे बोलते ही उसने अपनी
आँखें मुझ पर गड़ा दीं जैसे उसकी अनुभवी आँखों ने मेरा झूठ पकड़ लिया हो |
इससे पहले कि वह और कुछ
पूछता मैं सड़क की ओर घूम गया | ‘A friend in need is a friend indeed’ इस कहावत का मतलब आज मुझे समझ आ गया था |
कंपू 007..a topper's tale
a novel by Nitendra Verma
शब्दो का बहुत ही अच्छा इस्तेमाल किया है, कहानी का नाट्य रुपांतरण हो सकता है.....बहुत बढिया #nitendra verma
ReplyDeleteआपके शब्द चित्र उकेर देते हैं ...
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ReplyDeleteसराहनीय
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