ये स्थिति कमोबेश हर विभाग में है । हमारे देश में हालात विरोधाभासी और विचित्र हैं । एक तरफ विभागों में पद खाली पड़े हैं तो दूसरी तरफ बेरोजगारी सुरसा की तरह मुंह खोले खड़ी है । सरकारी अस्पताल जाएँ तो डॉक्टर नहीं, स्कूल में मास्टर नहीं, बैंक में बैंकर नहीं ।
यकीन जानिए आप बड़े शहरों को छोड़ दें तो छोटे शहरों/जिलों के अस्पतालों में आधे से ज्यादा पद खाली मिलेंगे । स्कूलों की हालत ये है कि तमाम स्कूल एक ही मास्टर के भरोसे चल रहे हैं । बैंकों में आप पाएंगे कि आधे से ज्यादा काउंटर खाली पड़े हैं । एक ज़माने में जहां तीन तीन चार चार कैश काउंटर चलते थे आज वहां इकलौता काउंटर बचा है ।
ये स्थिति बढ़ते दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ती मरीजों, छात्रों और ग्राहकों की संख्या के बावजूद है । यानि सेवा लेने वालों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन देने वालों की घट रही है । अब ऐसे में भला ग्राहक सेवा की गुड़वत्ता कैसे बनी रह सकती है ये यक्ष प्रश्न है । फिर ढिंढोरा पीटा जाता है कि सरकारी सेवाएं, विभाग, कर्मचारी बेकार हैं । इनका निजीकरण करो । हकीकत से अंजान आम जनता भी इसका समर्थन करती है ।
हकीकत यही है आज तक सरकारों ने सरकारी विभागों को खुद और जान बूझकर बर्बाद किया है । क्योंकि जब सरकारी बर्बाद होगा तभी तो निजी आबाद होगा । अख़बार में छपी ये खबर आँखें हमें आईना दिखाती है ।
--By NITENDRA VERMA
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