आज सुप्रभात कहने का मन नहीं हो रहा है । आज के अख़बार में छपी दो खबरों ने मन व्यथित कर दिया । उत्तर प्रदेश पुलिस प्रशासन पर पिछले कुछ समय से रह रह कर लग रहे दागों में हाथरस कांड ने एक काला और अमिट दाग और जोड़ दिया । वहीं 28 साल बाद ढांचा विध्वंश मामले ने न्याय व्यवस्था पर बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लगा दिया ।
आज जिस पुलिस को लोग धिक्कार रहे हैं ये वही पुलिस है जिसके लिए लोगों ने तालियां पीटीं थीं, थालियां पिचकायी थीं । ज्यादा दिन नहीं बीते अभी । आखिर पुलिस का ये कौन सा चेहरा है??? कल हाथरस कांड में जो कुछ भी हुआ उसे देख कर किसी आम इंसान का चेहरा शर्म में झुक जाये । अगर उस बेटी के दुश्मन वो चार हैवान हैं तो पुलिस ने भी कोई कोर कसर न छोड़ी । आधी रात वो भी स्वजनों के विरोध और परंपराओं की दुहाई के बावजूद उस बेटी का अंतिम संस्कार कर दिया जाना आखिर कौन सी इंसानियत है ।
ऐसी घटनाएं जब तब घटती रहती हैं । कुछ सुर्खियां बटोर पाती हैं तो कुछ धुंध में छुपी रह जाती हैं । जो घटना जितनी सुर्खियां बटोरती है उसी के एवज में मुआवजा देकर कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है । आखिर क्या वजह है कि जिस पुलिस पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है हर घटना के बाद खुद उसी की जांच की नौबत आ रही है । तमाम सरकारें आईं गईं लेकिन हैरत है कि आजतक पुलिस सुधार के लिए कोई काम नहीं किया गया । पुलिस आज भी अंग्रेजों की बनाई और अपनायी कार्यशैली पर चल रही है । उस समय पुलिस का एकमेव उद्देश्य आम जनता का दमन हुआ करता था और कदाचित आज भी यही है । शायद सरकारें भी यही चाहती हों तभी पुलिस सुधार के तमाम प्रस्ताव आज तक ठंडे बस्ते में ठंडा रहे हैं ।
वहीं कल 28 साल आया एक फैसला न्याय व्यवस्था को ही मुंह चिढ़ाता है । 28 साल फैसला आया और विडम्बना देखिये कि मामले में आरोपित 49 लोगों में से 17 की मौत हो चुकी है । और अभी फैसला CBI कोर्ट से आया है अभी तो हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट बाकी हैं । तो आखिरी फैसला कब आएगा शायद भगवान भी न जानता होगा ।ऐसे में एक भयमुक्त समाज की कल्पना कैसे की जाये??? अब हर बार गाड़ी तो नहीं पलट सकती!!! देश की बहन, बेटियां किसके भरोसे खुद को सेफ महसूस करें । कम से कम ऐसी कानून व न्याय व्यवस्था के रहते तो यह सम्भव प्रतीत नहीं होता ।
--- Nitendra Verma
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