नितेन्द्र वर्मा |
"लत..the addiction"
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addiction
‘
|
मम्मा
मैं थोड़ा लेट हो जाऊंगा अट्ठाइसवां नंबर मिला है | ओके ?’ उधर से ओके बेटा की आवाज
आते ही हर्ष ने फोन काट दिया | पीसीओ वाले को दो का सिक्का दिया और वापस क्लिनिक
में पड़ी खाली बेंच पर बैठ गया | मोबाइल फोन के इस जमाने में पीसीओ से कॉल करना उसे
थोड़ा अजीब जरूर लगा लेकिन बड़ा सुकून भी मिला | इसी मोबाइल ने तो उसे इस क्लिनिक तक
पहुँचाया था | ठीक चार महीने पहले वह डॉक्टर मनीष बत्रा की इस क्लिनिक में आया था
| उस दिन और आज के दिन में कितना फर्क था | बदहवास, बेसुध, बेतरतीब छितराये लम्बे
बाल, पिचके गालों को घेरे मोटी दाढ़ी...अन्दर धंसा पेट...इतना निरीह था कि अगर डैडी
ने उसे पकड़ न रखा होता तो एक भी कदम न रख पाता |
‘क्या मम्मा अब तो मैं अच्छे मार्क्स से पास भी हो गया,
अब तो मुझे मोबाइल दिला दो ना’ आज ही हाईस्कूल पास हुए हर्ष ने मम्मा के सामने
अपनी पुरानी फ़रमाइश दोहरा दी | ‘बेटा तुम तो जानते हो डैड को बच्चों का मोबाइल फोन
चलाना बिलकुल पसंद नहीं...’ सौम्या ने हर्ष को समझाने की कोशिश की | ‘मम्मा मेरे
सारे दोस्तों के पास बड़े बड़े स्मार्ट फोन हैं एक मैं ही हूँ बिना फोन वाला...सारे
दोस्त मेरा मजाक उड़ाते हैं...वैसे भी अब मैं बच्चा नहीं हूँ...जाओ मैं आपसे बात
नहीं करता’ रुआंसा हर्ष अपने कमरे में घुस गया | सौम्या ने रजत को फोन कर हर्ष के
रिजल्ट और साथ ही उसकी ज़िद की जानकारी दे दी थी | शाम को रजत आये तो सबसे पहले
हर्ष को ही आवाज लगायी | हर्ष अपने डैड से बहुत डरता था | ऐसा नहीं कि वह उसे
मारते पीटते या डांटते रहते हों...बस उन्हें अनुशासन पसंद था | आवाज लगाते ही हर्ष
बाहर निकल आया और गुमसुम सा रजत के सामने खड़ा हो गया | ‘कांग्रेचुलेशन बेटा...मुझे
मालूम था मेरा बेटा अच्छे मार्क्स जरूर लायेगा...देखो मैं आपके लिये क्या लाया
हूँ...’ बेटे की नाराजगी भांप रजत ने केक का डिब्बा उसके आगे कर दिया | हर्ष को
केक बहुत पसंद है लेकिन आज उसने मुँह घुमा लिया |
‘क्यों नहीं दिला देते उसे एक फोन ? बेचारा सुबह से
गुमसुम है |’ सौम्या ने रात में हर्ष का पक्ष लेते हुए रजत से कहा | ‘देखो सौम्या
ये उम्र पढ़ने लिखने की है न कि मोबाइल में टाइम ख़राब करने की’ जब सही समय आएगा तब
मोबाइल भी दिला दूंगा |’ रजत ने बेरुखी से जवाब दिया | ‘लेकिन मोबाइल आजकल स्टेटस
सिंबल भी तो है | उसके सारे दोस्तों के पास मोबाइल है | लोग क्या कहते होंगे इतने
बड़े बिज़नेस मैन हैं और बच्चे को एक फोन तक नहीं दिला सकते | सोचो हर्ष को कैसा फ़ील
होता होगा..कहीं इन्फिरियोरिटी कॉम्प्लेक्स का शिकार हो गया तो...मैं घर में रहती
हूँ ना मैं ध्यान रखूंगी उसका..वैसे भी अपना हर्ष खासा समझदार है वो मोबाइल का
मिसयूज नहीं करेगा...’ सौम्या ने रजत को समझाने की कोशिश की | रजत की कोई
प्रतिक्रिया न देख उसे माहौल सकारात्मक लगा | ‘दिला दो न उसे मोबाइल प्लीज...’ मादक
अंदाज में सौम्या ने रजत के चेहरे पर अपनी जुल्फों की घटा बिखेर दी | कोई चारा न
देख रजत ने भी हामी भर दी |
हर्ष जल्दी जल्दी अपनी डायरी के पन्ने पलटने में लगा था
| उसने लगभग अपने सभी दोस्तों के नंबर अपने नये मोबाइल में सेव कर लिये थे | आज ही
सौम्या ने उसे फोन दिला दिया था | हर्ष ने अपनी पसंद का लेटेस्ट स्मार्ट फोन खरीदा
था | उसने फटाफट फोन पर फेसबुक और व्हाट्सएप डाउनलोड कर लिये | अभी तक उसने अपने
किसी दोस्त को इसके बारे में नहीं बताया था | सरप्राइज देना चाहता था | ओह्ह माय
गॉड...व्हाट्सएप पर तो उसके लगभग सारे ही दोस्त थे | वही नहीं था अभी तक...कितना
पीछे रह गया था वो | एप पर नजर डालते हुए उसने सोचा | अब वो व्हाट्सएप पर अपना
पहला मैसेज लिखने के लिये एकदम तैयार था...पंद्रह बीस मिनट सोचने के बाद उसकी
उँगलियाँ कीपैड पर थिरकीं ’हे...नाउ आई एम आल्सो अवेलेबल ऑन व्हाट्सएप – हर्ष’ |
रिएक्शन जानने को बेताब था हर्ष | उसने ऑंखें स्क्रीन पर गड़ा दीं | थोड़ी ही देर
में रिंग बजी | उसने मैसेज देखने के लिये टैप किया लेकिन इससे पहले की वह मैसेज
देख पाता धड़ाधड़ मैसेज आने लगे | बड़ा सुखद एहसास हो रहा था उसे | घंटों यूँ ही
दोस्तों से चैटिंग में लगा रहा | फेसबुक पर तो वह पहले से ही था | घर के लैपटॉप
में उसने अकाउंट तो बना रखा था लेकिन यदा कदा ही इस्तेमाल कर पाता था | सौम्या
निगरानी जो रखती थीं | उसने फेसबुक एप पर भी लॉग इन कर लिया |
कमरे में घुसते ही हर्ष ने अपना स्कूल बैग मेज पर पटका
और फोन उठा लिया | होम स्क्रीन मैसेजेस से भरी पड़ी थी | उसने जल्दी जल्दी सारे
मैसेज पढ़ डाले | फिर किसी से चैटिंग में जुट गया | ‘तुम फिर मोबाइल में लग गये...न
कपड़े चेंज किये...न फ़्रेश हुआ...इस मोबाइल ने बर्बाद कर दिया है तुझे...चुपचाप रख
और नाश्ते के लिये आजा वरना आज ही डैड से बताती हूँ...’ सौम्या की रोज की इस डांट
का आदी हो चुका है हर्ष | उसने फोन चार्जिंग में लगाया और बाहर नाश्ते के लिये आ
गया | ‘अभी महीना भर ही हुआ है लेकिन देख रही हूँ तू मोबाइल का दीवाना हो गया
है...दिन भर मैसेज की रिंग बजती रहती है...न जाने क्या करता रहता है...और किसी चीज
में ध्यान ही नहीं है...देखो अभी भी स्कूल यूनिफार्म में बैठा है...’ नाश्तेके साथ
मम्मा की डांट भी खा रहे हर्ष को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता...वह तो बस एफबी पर नये
पोस्ट के बारे में सोच रहा था |
वक्त ने हर्ष का पागलपन और बढ़ा दिया | सुबह उठते ही या
स्कूल से आने के बाद हाथ सीधे फोन पर ही जाता | कई बार तो रात में नींद से जगकर मैसेज
चेक करने लगता | कभी कभी तो उसे यूँ ही लगता जैसे फोन वाइब्रेट कर रहा हो | मम्मा
के डर से फोन साइलेंट वाइब्रेट मोड में लगा रखा था | अब तो उसने एफबी और व्हाट्सएप
पर कई ग्रुप भी बना लिये थे | उसका एडमिन होने के नाते उसकी जिम्मेदारी भी बढ़ गयी
थी | ग्रुप से ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना उसका जुनून बन गया | एफबी में तो उसने
बिना जाने ही तमाम लोगों को जोड़ लिया | ग्रुप में रोज नये नये पोस्ट करने के लिये
घंटों गूगल में घुसा रहता | गेम का तो कीड़ा हो गया था | सोशल मीडिया की मायावी
दुनिया से फुर्सत पाता तो गेम में जुट जाता | ज्यादा से ज्यादा स्कोर करना और फिर
सोशल मीडिया पर उसे पोस्ट करना उसका रोज का काम था | छुट्टी के दिन तो दिन भर
मोबाइल में ही आँखें गड़ाये रहता |
इधर कुछ दिनों से उसे एक नया ही चस्का लग गया था....पोर्न
देखने का | अक्सर देर रात तक कानों में इयर फोन ठूंसे पोर्न देखता रहता | एक साल
के भीतर ही मोबाइल ने उसे अपनी गिरफ़्त में ले लिया था | इस आभासी दुनिया का ऐसा
भूत उसके दीमाग पर सवार हो चुका था कि इसके सामने वास्तविक दुनिया उसे फीकी और
बेमानी लगती थी | उसकी दुनिया बस मोबाइल के अंदर तक सीमित होकर रह गयी थी | न किसी
से मिलना न बातें करना...सबके साथ होने के बावजूद मोबाइल में ही आँखें घुसाये रखना...यह
सब बड़े खतरे के संकेत थे | सौम्या समझ रही थी लेकिन अब हर्ष इसकी सुनता ही नहीं
बल्कि कुछ कहने पर चिड़चिड़ा उठता |
‘आज तो सबसे ज्यादा स्कोर बना कर ही रहूँगा...फिर पोस्ट
डालता हूँ...हैरान रह जाएँगे सब....’ हर्ष की उँगलियाँ कीपैड पर थिरक ही रही थीं
कि अचानक उसके फोन ने हैंग हो गया | उसने झुंझलाहट में फोन को रीस्टार्ट किया
लेकिन यह क्या...अब तो फोन रीस्टार्ट भी नहीं हो रहा | उसका दिल बैठा जा रहा था |
कई बार कोशिश की लेकिन बेकार...उसने गुस्से से जकड़ आई मुट्ठी दीवार पर कस के दे
मारी | अब क्या होगा...आने वाले ढेरों मैसेजेस कैसे पढ़ेगा...अपने ग्रुप में आने
वाले मैसेजेस का जवाब कैसे देगा...गेम में कितने लेवल आगे तक निकल आया था...लेकिन
अब ??? कुछ पल को तो उसका दिमाग सुन्न सा पड़ गया | वह उठा अपनी पॉकेट मनी में से
पैसे निकाले और मोबाइल उठाकर बाहर निकल गया |
‘अरे भैया अभी बना दो ना...प्लीज़...चाहे तो थोड़े पैसे
ज्यादा ले लो...’ हर्ष ने मोबाइल रिपेयरिंग वाले से विनती की | ‘अरे भाई इसका जो
पार्ट खराब है वो मेरे पास नहीं है...बाहर से लाना पड़ेगा...परसों ही मिल
पायेगा...चाहो तो फोन वापिस ले लो...’ मोबाइल रिपेयरिंग वाले ने अपनी असमर्थता व्यक्त
कर दी | हर्ष के पास कोई चारा न था | उसके मोहल्ले में यही एक दुकान थी | वह
उदास...रेंगता हुआ सा वापस घर लौट आया | वह खुद को अपाहिज महसूस कर रहा था...जैसे
किसी ने उसकी दुनिया उजाड़ दी हो...रंगीन दुनिया अचानक ब्लैक एंड वाइट लगने लगी...उसके
दिमाग को जैसे लकवा मार गया | उस रात उसने खाना भी नहीं खाया | बस्स मोबाइल के
ख्यालों में ही खोया रहा | रात भर सो भी नहीं पाया | कभी झपकी भी आई तो सपनों में गिरता,
पड़ता ख़राब होता मोबाइल उसे चौंका देता | ‘सॉरी भाई आपका फोन बन नहीं पायेगा...’ मोबाइल
रिपेयरिंग वाले का इतना कहना था कि हर्ष का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया | वह
उसपे पिल पड़ा...उसका कॉलर पकड़ कर बाहर से ही खींच लिया...तभी किसी ने उसके गाल पर
जोरदार थप्पड़ जड़ दिया...वह गाल सहलाता हुआ उठ बैठा...ओह्ह सपना था |
सुबह से हर्ष को चक्कर आ रहे थे | सौम्या ने थर्मामीटर
लगा कर चेक किया | पारा 102 से भी थोड़ा ज्यादा था | रजत ने फ़ौरन गाड़ी निकाली और
उसे लेकर डॉक्टर के पास गये | ‘क्या बात है बेटा...खाना वाना सही से नहीं खाते..ऑंखें
बता रही हैं कि ठीक से सोते भी नहीं...’ हर्ष की जीभ और आँखें चेक करते डॉक्टर ने
पूछा | ‘खाता तो हूँ...’ हर्ष ने आँखें चुराते हुए जवाब दिया | घर पहुँचते ही
सौम्या ने मोर्चा खोल दिया ‘देख हर्ष बहुत हो गया तेरा...अब बच्चा नहीं रहा
तू...खाने पीने में कोताही बरती तो ठीक नहीं होगा...देख तो कैसा हो गया है...सूख
के काँटा हो गया है...और थोड़ा सोशल बन...कमरे से बाहर निकल सबसे मिल..बातें
कर...जब देखो कमरे में घुसा रहता है...’| सोशल...मम्मा के कहे इस शब्द पर हर्ष को
हँसी आ गयी | ‘उन्हें क्या पता कितना सोशल हूँ मैं...हजारों दोस्त हैं मेरे अरे
सोशल क्या कमरे से बाहर निकल के ही बनते हैं ? डिजिटल युग है इन्हें क्या पता..’ एक
झटके में हर्ष ने अपनी मम्मा की आशंकाओं को धुएँ में उड़ा दिया |
अगली सुबह वह जल्दी ही दुकान पहुँच गया | अभी दुकान
खुलने में काफी समय था लेकिन उससे और इंतजार नहीं हो रहा था | वह बेसब्री से इधर
उधर टहल रहा था | दोस्तों को क्या वजह बतायेगा दो दिन ऑफलाइन रहने की...ग्रुप के
लोगों ने भी तमाम मैसेज भेजे होंगे...आज का सारा दिन तो इसी में निकल जायेगा...वह
सब सोच ही रहा था कि दुकान खुल गयी | फोन हाथ में आते ही उसकी जान में जान आई | वह
तेजी से घर की ओर भागा | रास्ते भर मैसेज चेक करता रहा | कमरे में आकर ऐसा उलझा कि
दवा खाने तक का ध्यान न रहा |
आज रजत जल्दी ही घर आ गया | सीधे हर्ष के कमरे में घुसा |
सौम्या समझ गयी | वह भी पीछे पीछे आ गयी | ‘अच्छा तो ये चल रहा है | ये है सारे
समस्या की जड़ | चल छोड़ इसे...’ हर्ष का मोबाइल छीन रजत बाहर सोफे में आ बैठा |
उसने अपना माथा पकड़ लिया | ‘मेरी बात सुनिये...’ सौम्या ने कुछ समझाने की कोशिश की
| ‘क्या सुनूँ...देख रही हो फ़ेल होने के बावजूद चेहरे पर शिकन तक नहीं है...जनाब
मोबाइल में जुटे पड़े हैं | दो साल में कहाँ से कहाँ पहुँच गये | हाईस्कूल में
पचासी परसेंट लाया था और इस बार देखो...’ | सब हमारे ही लाड़ प्यार का नतीजा है | हुँह...दिला
दो न मोबाइल प्लीज...तुमने ही कहा था न...अब भुगतो | मुझे ही ध्यान देना चाहिये था...अब
कान खोल के सुन लो...उसे कोई मोबाइल नहीं मिलेगा | सहमा सा हर्ष कमरे में दुबका सब
सुन रहा था | सौम्या को इस दिन का पहले से ही आभास था |
अगले दो दिन हर्ष कमरे से बाहर नहीं निकला | उसकी
दुनिया में भूचाल आ गया था | मोबाइल के बिना एक पल भी रहना मुश्किल हो रहा था | वह
आपे से बाहर हो चुका था | कभी जोर जोर से चिल्लाता तो कभी दहाड़ मार रो पड़ता | कोने
में बैठ अपने ही सिर के न जाने बाल नोंच डाले | कमरे का तमाम सामान तोड़ फोड़ दिया |
उसकी हालत पागलों सी हो रही थी | सौम्या के समझाने का उस पर कोई असर न हुआ | ‘मैं
दरवाजा तभी खोलूँगा जब मुझे मेरा मोबाइल दोगी...’ गुस्से से चीखते हर्ष की इस माँग
से सौम्या का दिल काँप जाता | उसकी मोबाइल की लत इतना गंभीर रूप ले लेगी उसने कभी
नहीं सोचा था | क्यों मैंने उसे मोबाइल दिलाया...खुद को कोसती सौम्या रो पड़ी | बंद
रहने दो जब चार दिन भूखा प्यासा रहेगा तो अपने आप होश ठिकाने आ जायेंगे | लेकिन दरवाजा
खुलवाना भी तो जरूरी है कहीं कुछ उल्टा सीधा...सहसा सौम्या सिहर उठी | वह फिर
दरवाजा पीटने लगी | किसी तरह उसने दरवाजा तो खुलवा लिया लेकिन हर्ष ने तो खाना
खाने से भी मना कर दिया | बस एक ही ज़िद...पहले मुझे मेरा मोबाइल दिलवाओ | ममता की
मारी सौम्या को मजबूरी में रजत से बात करने का भरोसा देना ही पड़ा |
शाम को रजत के आते ही सौम्या बोल पड़ी ‘सुनिये..उसे उसका
फ़ोन लौटा दीजिये...प्लीज’ | ‘फिर उसकी तरफदारी...अंजाम देख रही हो फिर भी...अब इन
बातों का मेरे ऊपर कोई असर नहीं पड़ने वाला...नहीं मिलेगा मतलब नहीं मिलेगा...’ रजत
ने पूरी दृढता से कहा | ‘मुझे मेरा मोबाइल चाहिये...’ रजत ने चौंक कर सामने आ खड़े
हर्ष को देखा | उसे अपने कानों पर यकीन न हुआ | जिस लड़के ने आज तक हर चीज सौम्या
के जरिये मांगी हो उसकी इतनी हिम्मत कि मना की गयी चीज सामने खड़े होकर मांग रहा है
| ‘नहीं मिलेगा मोबाइल...’ रजत ने उसे घूरा | ‘वो मेरा मोबाइल है और वो मुझे किसी
भी कीमत पर चाहिये...’ हर्ष का ये अंदाज रजत को अंदर तक हिला गया | ‘मोबाइल
चाहिये?’ ‘हाँ’ ‘मोबाइल चाहिये?’ ‘हाँ’ इस बार जवाब में हर्ष चिल्ला उठा | ‘चटाक!!!’
हर्ष के गाल पर छप आयीं उँगलियों की गूँज से पूरा घर सन्नाटे में घिर गया |
‘बेटा...बेटा...हर्ष...मेरी बात सुनो बेटा..दरवाजा खोलो
बेटा...’ घबराई सी आवाज में सौम्या दरवाजा पीट रही थी | रजत को भी गलती का एहसास हो
चुका था | वह भी आवाज देने लगा ‘दरवाजा खोल दो बेटा...सॉरी बेटा...मुझे माफ़ कर
दो...अपना फोन लो बेटा...’ दोनों बदहवास से दरवाजा पीटे जा रहे थे | तभी सौम्या
चीख पड़ी...खून की धार दरवाजे के नीचे से निकल सौम्या के पैरों तले आ पहुंची थी |
उसका कलेजा मुँह को आ गया | ‘हाय रे मेरे कलेजे के टुकड़े..ये क्या कर लिया तूने...अगर
मेरे बेटे को कुछ भी हुआ तो मेरा मरा मुँह देखोगे...समझ लेना...तुम्हारे लिये मेरे
बेटे से बढ़कर मोबाइल है ना...देख लो नतीजा...’ फट पड़ी सौम्या | रजत को तो जैसे
काटो तो खून नहीं | वह पीछे हटा और पूरी ताकत से दौड़ लगाकर दरवाजे से भीड़ गया | ओह्ह
माय गॉड...खून से लथपथ पड़े हर्ष को देख एक पल को तो रजत की आँखों के सामने अँधेरा
छा गया | अगले ही पल वह संभला और जेब से रूमाल निकाल कर उसकी कटी कलाई पर बांध दी
| वह हर्ष को अपने हाथों में उठाकर कांपते पैरों से गाड़ी की ओर भागा |
‘आपका बेटा अब खतरे से बाहर है | चिंता की कोई बात नहीं
है | हाँ आप दो मिनट के लिये मेरे केबिन में आइये |’ आईसीयू से बाहर निकले डॉक्टर
की बात सुन रजत और सौम्या की आँखें डबडबा गयीं | आखिर ये सब क्या हो गया...सौम्या
रजत के सीने से लिपट कर रो पड़ी | उसे समझा कर रजत डॉक्टर के केबिन में गया | ‘आखिर
आपके बेटे ने ऐसा किया क्यों ?’ इस सवाल पर कुछ देर चुप्पी साधे रजत बोल पड़ा ‘मैंने
उसका मोबाइल रख लिया था | बस्स वो उसी को लेने की ज़िद कर रहा था |’ ‘ओह्ह मोबाइल
एडिक्शन...यह एक मेंटल डिसआर्डर है जो बड़ी तेजी से हर उम्र वर्ग को अपनी गिरफ्त
में कसता जा रहा है | खैर यहाँ से तो हम उसे दो तीन दिन में रिलीव कर देंगे लेकिन
अगर आप उसे बेहतर हालत में देखना चाहते हैं तो उसे किसी अच्छे साइकेट्रिस्ट को
दिखायें...’
बदहवास, बेसुध, बेतरतीब छितराये लम्बे बाल, पिचके गालों
को घेरे मोटी दाढ़ी...अन्दर धंसा पेट...इतना निरीह था कि अगर डैडी ने उसे पकड़ न रखा
होता तो एक भी कदम न रख पाता | यही हालत थी उसकी जब उसके डैड उसे शहर के सबसे
अच्छे साइकेट्रिस्ट डॉक्टर मनीष बत्रा के यहाँ पहली बार लाये | इलाज के चार महीने
बाद वह खुद को बेहतर महसूस कर रहा था | आज सालों बाद पहली बार हर्ष बिना मोबाइल के
ही घर से निकला था | बड़ा अच्छा लग रहा था उसे...जैसे किसी ने उसकी बेड़ियाँ खोल उसे
आजाद कर दिया हो...घुटन से निजात दिला दी हो | यादों के सफ़र से बाहर निकल उसने सुकून से भरी अपनी नजरें सामने के डिस्प्ले
पर डालीं..अगला नंबर उसका ही था | उसने अपनी फाइल उठाई और डॉक्टर के केबिन के बाहर
खड़ा हो गया |
Story
by: Nitendra Verma
28/11/2017
Very nice story 👌
ReplyDeleteGood story
ReplyDeleteआजकल की ज्वलंत समस्या को बहुत ही अछी तरह से उकेरा है आप बधाई के पात्र है सर
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