बैजनाथ शर्मा 'मिंटू' |
कविता - सरहद
वर्दी इक सिलवा दे माँ सरहद पे लड़ने जाना है |
हिम्मत कितने रखते हैं हम दुश्मन को बतलाना है |
सरहद के अन्दर आने की बात अगर भी सोची तो
सच कहता हूँ दुश्मन को माँ जिंदा ही दफनाना है |
चुन चुन कर है मार गिराना सूअर के औलादों को
भारत की ताकत का उनको लोहा भी मनवाना है
वर्षों से अब तक माँ देखो माफ़ ही माफ़ किये सबको
अब छठ्ठी का दूध भी माँ दुश्मन को याद दिलवाना है |
बाबू जी जैसे आये थे सरहद पर से लौट के माँ
वैसे ही ताबूत में सोकर हमको भी घर आना है |
देती हूँ आशीष मैं तुमको जा बेटा पर याद रहे
मातृभूमि का कर्ज चुका कर ही घर वापिस आना है |
सरहद की रखवाली करते शीश कटे तो कट जाए
पर दुश्मन को भूल से बेटे पीठ नहीं दिखलाना है |
---- बैजनाथ शर्मा ‘मिंटू’
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नितेंद्र साहेब ...बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी....
ReplyDeleteहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 06/02/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
पांच लिंकों का आनंद
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....