धोनी का सफ़र
मि कूल कहे जाने वाले महेंद्र सिंह धोनी ने हमेशा की तरह अप्रत्याशित फैसला
लेकर सबको चौंका दिया | आस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज के बीच में ही उन्होंने सन्यास की
घोषणा कर दी | हालांकि ऐसा करके उन्होंने अपने लिए आलोचना की जमीन जरूर तैयार कर
ली | जो भी हो धोनी का अब तक का सफ़र अविश्वसनीय है | टी 20 से लेकर टेस्ट मैचों तक
इंडिया को विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीम बनाया | उनकी कप्तानी में हम लगातार वन डे
रैंकिंग में टॉप पर रहे |
यही नहीं हम टेस्ट में भी ऊपरी क्रम में रहे | धोनी की ही कप्तानी में हमने टी
20 और वन डे के विश्व ख़िताब पर कब्ज़ा किया | लेकिन कुछ समय से टीम इंडिया के
प्रदर्शन में लगातार गिरावट आई है | अब धोनी पर भी उँगलियाँ उठने लगी है | 2011 का
विश्व कप जीतने वाली टीम इंडिया 2015 विश्व कप आते आते हांफने लगी है | अब उसमें
पहले वाला जोश , जज्बा और जुनून नदारद है | विशेषज्ञ इसके पीछे धोनी को जिम्मेदार
मानते हैं | आईये एक क्रिकेट प्रशंसक की नजर से हम इस पर विश्लेषण करते हैं |
सबसे पहले बात 2011 विश्व कप और उसके पहले की | यदि उस समय के टीम संयोजन पर
नजर डालें तो टीम में सचिन तेंदुलकर के अलावा युवराज सिंह , जहीर खान , हरभजन सिंह
जैसे अनुभवी दिग्गज मौजूद थे | साथ ही कोच के रूप में गैरी क्रिस्टेन मौजूद थे |
इसमें कोई दो राय नहीं कि उनकी देखरेख में टीम निखर गई थी | हर खिलाड़ी को उसका रोल
पता होता था | हमारा गेंदबाजी आक्रमण कभी विपक्ष को डराने लायक नहीं रहा लेकिन फिर
भी विश्व कप में इन्ही अनुभवी व नए गेंदबाजों के साथ ने ऐसा रंग बिखेरा कि उनके
सामने धुरंधर भी पानी मांगते नजर आये | इन सबके पीछे कोच गैरी की जबर्दस्त रणनीति
और कप्तान धोनी का शातिर दिमाग शामिल था |
विश्व कप जीतने का बाद भी काफी समय तक हमारा शानदार प्रदर्शन जारी रहा | समय
के साथ कुछ खिलाडियों ने सन्यास लिया , कुछ बाहर हुए, कुछ नए खिलाडी अन्दर आये | सबसे
महत्वपूर्ण रहा कोच गैरी का टीम छोड़ने का फ़ैसला | इसके बाद टीम के प्रदर्शन में
गिरावट आती गयी | टीम का संयोजन लगातार बदलता रहा | खासकर गेंदबाज तो ताश के
पत्तों के तरह फेंटे जाते हैं | धोनी की सोच और व्यवहार में भी खासा अंतर आ चुका
है | उनके फैसले कई बार खीझ पैदा करते हैं | अब उनके फैसलों में साहस की जगह डर
दीखता है | यहाँ तक कि परिस्थितियों के अनुसार बल्लेबाजी क्रम में बदलाव भी अब उनसे
नहीं होता | एक सीरीज के दौरान जब हमारा मध्य क्रम लगातार असफल हो रहा था तब भी
धोनी ने अपने परम्परागत छठे नंबर से पहले आने की जरूरत उन्होंने नहीं समझी |
कई बार अपने पसंद के खिलाडियों को लेकर भी वो अड़ जाते हैं | लगातार फ्लॉप होने
के बावजूद रोहित शर्मा , शिखर धवन को टीम से हटाया नहीं जाता | टेस्ट मैचों में तो
कई बार लगता है कि धोनी को कोई रूचि ही नहीं है | डंकन फ्लेचर टीम में ऊर्जा का
स्तर बनाये रखने में नाकाम रहे हैं | रविशाश्त्री से काफ़ी उम्मीदें थीं लेकिन
सुधार नहीं दिखा |
कुछ भी हो धोनी ने अपनी कप्तानी में टीम को वो दशा और दिशा दी है जो शायद
कईयों के लिए केवल सपना है | आज के दौर में लगातार सालों तक टी 20 से लेकर टेस्ट
तक की कप्तानी संभाले रहना अविश्वनीय ही है | भले ही ऐसा लग रहा हो कि उनका सुनहरा
दौर समाप्त हो चुका है लेकिन उनका चुका हुआ मानना बड़ी भूल होगी | टेस्ट से सन्यास
लेकर धोनी ने समझदारी भरा फ़ैसला लिया है | ऐसा करके वो न सिर्फ क्रिकेट की अति से
बचेंगे बल्कि खुद को टी 20 व एक दिवसीय में ज्यादा बेहतर तरीके से खपा सकेंगे |
विश्व कप 2015 शुरू होने वाला है | हर क्रिकेट प्रेमी यही चाहता है कि धोनी
अपना जादू फिर दोहराएँ | अपनी टीम में नई स्फूर्ति का संचार करें | हम सब विश्व कप
फिर से टीम इंडिया के ही हाथों में देखना चाहते हैं |
Khayali Pulao By : Nitendra Verma Date: February 04, 2015
Wednesday
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