Menu bar

New Releasing soon...my new novel कंपू 007..a topper's tale कंपू 007...a topper's tale
New इस ब्लॉग के पोस्ट को मीडिया में देखने के लिये MORE menu के Milestone पर क्लिक करें..

Sunday, September 28, 2014

"नमन" - बड़े वाले सरजी

बड़े वाले सरजी
शिक्षक दिवस ( सितम्बर 5 पर मेरे पहले गुरु को समर्पित )

      कक्षा 1 से लेकर 8 तक मेरी पढ़ाई एक ही स्कूल में हुई | उन आठ सालों की यादें आज भी एकदम ताजा हैं | इन यादों की अमिट छाप ताउम्र मिट नहीं सकतीं | इसका कारण पढ़ाई न होकर उस स्कूल के एक अध्यापक हैं जिन्हें हम लोग बड़े वाले सर जी कहते थे | आज का ये लेख उन्ही बड़े वाले सर जी को समर्पित है |
nitendra,speaks,hindi stories,articles



      स्कूल मेरे घर से मात्र 10 मिनट की दूरी पर था | यहाँ पर आसपास के काफी बच्चे पढ़ते थे | यह स्कूल अपने अनुशासन एवं अच्छी पढ़ाई के लिए जाना जाता था | बड़े वाले सर जी के मकान में ही स्कूल चलता था | ऊपर वाले तल पर वह सपरिवार रहते थे जबकि निचले तल पर स्कूल चलता था | स्कूल के सर्वेसर्वा यही सर थे | प्रिंसिपल भी वही थे | रौबदार व्यक्तित्व , दुबली पतली काया , दमदार आवाज , चेचक के दागों से भरा चेहरा , ऊपर से नीचे तक सफ़ेद लिबास, घूरती ऑंखें | बाप रे | उस दौर की फिल्मों के विलेन से कम तो नहीं ही थे | पूरे अमरीश पुरी समझिये आप | हाँ उनका नाम तो बताना भूल ही गया | नाम है सी पी सिंह यादव पूरा नाम चन्द्रपाल सिंह यादव |


nitendra,speaks,hindi stories,articlesहमारा स्कूल दो शिफ्ट में चलता था | कक्षा 5 तक सुबह 8 से 12 जबकि कक्षा 6 से 8 दोपहर 1 से 5 बजे तक | हम लोग अक्सर ही समय से पहले स्कूल पहुँच जाया करते थे | सर हम लोगों को गणित और संस्कृत पढ़ाया करते थे | इमला खूब लिखाते थे | साथ ही पहाड़े भी रटवाया करते थे | तब हम लोगों को 30 तक के पहाड़े मुंहजबानी याद हुआ करते थे | उनका गणित पढ़ाने का अंदाज भी जरा हटके था | वह सवालों को ब्लैक बोर्ड पर लिखाकर हल कराने के बजाये बोल बोल कर हल कराया करते थे | चूँकि इसलिये वाले सवाल आज भी याद हैं | संस्कृत में पाठ का हिंदी अनुवाद वो बेहतरीन करते थे | हम सभी बड़े चाव से संस्कृत पढ़ते थे क्यूंकि इसमें मार खाने की गुंजाईश जरा कम रहती थी | इमला की क्लास पूरे स्कूल की एक साथ लगती थी | जब उनकी डॉल्बी डिजिटल से लैस आवाज पूरे स्कूल में गूंजती थी तो स्कूल का एक एक बच्चा अपनी कलम दवात से साफ़ साफ़ अक्षरों में इमला लिखता दिखाई देता था | इस स्कूल की यह एक ख़ासियत थी कि कक्षा 5 के ऊपर हर छात्र कलम दवात से ही लिखता था | पेन से लिखने की सख्त मनाही थी | इमला लिखाते समय सर जी स्कूल का राउंड लेते रहते थे | बड़ा सावधान रहना पड़ता था | क्या पता आपसे इधर जरा सी गलती हुई और पीछे से लठ्ठ चलना शुरू हो जाये | इमला लिखाने के बाद एक एक की कापी चेक होती थी और गलतियाँ मिलने पर हाथ में प्रसाद मिलता था | प्रसाद की मात्रा गलती की संख्या के अनुपात में हुआ करती थी | उनके खौफ़ के मारे कितनों की तो पैंटें गीली हुआ करती थी |
      अक्सर आखिरी घंटे में पहाडा रटाया जाता था | पूरा स्कूल खड़ा हो जाता था | उसमें से किसी एक को बारी बारी से सर बाहर बुलाते थे और और किसी एक का पहाड़ा सुनाने को कहते थे | वो पहाड़ा पढ़ता था बाकि उसे दोहराते थे | अगर ठीक से सुना दिया तो ठीक वरना पिछवाड़ा मजबूत रखो | क्यूंकि डंडे चलाने के लिये ये सर जी की पसंदीदा जगह थी | उनका मानना था कि पुट्ठे में लठ्ठ चलाने से काम भी हो जायेगा और ये घाव कोई किसी को दिखा भी नहीं पायेगा | मारते समय वो अक्सर एक गाना गाते थे ‘बड़ा दुःख दीन्हा तेरे लखन ने...’| यहाँ लखन का मतलब उनके डंडे से था | शनिवार को पी टी करवाई जाती थी | स्कूल के अंदर तो जगह थी नहीं | हाँ बाहर काफी जगह पड़ी थी वहीँ पर आकर हम लोग पी टी करते थे | कई लाइनों में हम लोग खड़े हो जाते थे | सर एक एक को बाहर बुलाते थे और वह सबको पी टी कराता था |
        थे तो वो भी बड़े शौक़ीन | हमेशा चमचमाते झक सफ़ेद कपड़े ही पहनते थे | सफ़ेद के अलावा कोई और रंग के कपड़े पहने मैंने उन्हें आज तक नहीं देखा | चलते साईकिल से ही थे लेकिन हर साल पुरानी बेचकर नयी लेते थे | अक्सर वो हम लोगों के घरों में छापेमारी करते थे | सनकी तो थे ही तड़के 4 बजे ही आ धमकते थे | धीरे से गेट खटखटाते थे अगर आप बाहर निकले मतलब पढ़ रहे थे और अगर नहीं निकले मतलब सो रहे थे | सर का आदेश साफ़ था चार बजे हर बच्चा पढ़ते हुए मिलना चाहिए | जो भी सोते हुये मिलते थे उनकी शामत आनी तय होती थी | जब हम लोग 12 बजे स्कूल पहुचते थे प्रेयर होते ही एक एक का नाम बुलाया जाता था जो सोते मिले थे | उन्हें बरामदे में एक लाइन में खड़ा कर दिया जाता था | इसके बाद एक तरफ से जो लठ चलनी शुरू होती थी वो लाइन ख़त्म होने के साथ ही रूकती थी थी | गज़ब की एनर्जी थी उनमें | लाइन में खड़े पहले बच्चे से लेकर आखिरी तक उसी ताकत, जूनून , और गुस्से का प्रदर्शन अविश्वश्नीय है | इस सजा के लिए मारते समय वो अक्सर गाना गाते थे ‘कंकरिया मार के जगाये दियो रे...’ मार खा रहे लोग मार खाने के पहले ही कांपने लगते थे | कुछ तो ओवर एक्टिंग भी कर लेते थे | सर सर गलती हो गई सर...अहह नहीं सर...अब पढ़ेंगे सर ...रोज पढ़ेंगे सर ....कुछ लोग मार खाने के साथ डांस भी करते थे | गोया ऋतिक रोशन ने इन्ही से डांस सीखा हो | जो मार से बचे रह जाते थे वो सहमे से बैठे मन ही मन आनंद लेते रहते थे |
      उस ज़माने के अभिभावक भी बहुत अनुशासनप्रिय हुआ करते थे | हम बच्चों की जान तो दोनों तरफ से आफत में रहती थी | यदि गलती से भी किसी के घर से शिकायत पहुँच गयी तो हफ्ते भर की ख़ुराक मिलनी तय है | कुछ के अभिभावक तो स्कूल ही पहुँच जाते थे और अपने बच्चे की शिकायतों की झड़ी लगा देते थे | बस फिर देखिये सर जी का शक्ति प्रदर्शन अभिभावक के ठीक सामने लाइव |  उसके पेंच वहीं कस दिए जाते थे | हाँ उनको अपने डंडे से बड़ा प्यार था | प्यार से उसे ‘समझावान लाल’ कहा करते थे | वो अपने इलाके में बहुत विख्यात (पढ़ें कुख्यात) थे | कोई उन्हें मरकहा बैल तो कोई जंगली कहता था | लेकिन वो कहते थे कि मुझे जितनी गालियां मिलेंगी उतनी ही मेरी उम्र बढ़ेगी |
      सिर्फ वो मारते ही थे ऐसा नहीं है | पढ़ाते भी पूरे मन से थे | पढ़ाने का इतना शौक था उन्हें कि सन्डे हो कोई और छुट्टी एक्स्ट्रा क्लास हमेशा लगती थी | इसी वजह से हम लोग कभी अपने पसंदीदा प्रोग्राम नहीं देख पाते थे | आज भी मुझे याद है हर सन्डे  सुबह ९ से 10 तक हम लोगों की एक्स्ट्रा क्लास लगती थी और उसी समय आता था अपने ज़माने का मशहूर धारावाहिक चंद्रकांता | क्लास ख़त्म होते ही हम सब दौड़ लगाते थे अपने अपने घर की तरफ कि शायद थोड़ा बहुत बचा हो तो देखने को मिल जाये | लेकिन शायद ही कभी ये मुमकिन हुआ हो | सर गणित का हर एक सवाल बड़े कायदे से लगवाते थे | छोटी कक्षाओं से ही इतने बड़े बड़े जोड़ घटाना गुणा भाग करवाते थे कि आज भी हम लोग कैल्कुलेटर का यूज़ कम ही करते हैं | संस्कृत तो इतने मन से पढ़ाते थे या कहें कि समझाते थे की आनंद आ जाता था | अक्सर वो पढ़ाते पढ़ाते अपनी यादों में खो जाते थे | अपने ज़माने के किस्से खूब सुनाते थे लेकिन उनमें भी प्रेरणा होती थी | इसके अलावा भी हम लोगों का बड़ा फायदा ये होता था कि किस्से सुनाने में इतने मगन हो जाते थे कि समय का कोई ख्याल नहीं रहता था | घंटे दो घंटे तो आराम से निकल जाते थे | कई बार तो किस्से सुनाते सुनाते छुट्टी का समय हो जाता था | हम लोग भी बड़े चाव से मन लगा के उनको एकटक देखते हुए किस्से सुनते रहते थे | बड़ा मजा आता था क्यूंकि शायद यही इकलौता समय होता था जब हम स्कूल में बिना किसी खौफ़ के बैठे होते थे |
      भले ही हमारे बड़े वाले सर जी मारने के लिए जाने जाते रहे हों लेकिन बिना वजह उन्होंने कभी किसी को नहीं मारा | इसके पीछे उनका मकसद अनुशासन सिखाना ही था | आज मेरे अन्दर जो भी अनुशासन है वो उनकी ही देन है | वो हर छात्र को विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए प्रेरित करते रहते थे | उनकी प्रेरणा की वजह से ही मैंने भी कई स्कूली नाटकों में भाग लिया | आज भी मेरे घर में पुरस्कार स्वरुप मिली कई प्लेटें, गिलास रखें हैं जिन पर स्कूल का नाम भी गुदा है | ये शिक्षा एवं हम छात्रों के सुनहरे भविष्य के प्रति उनका जूनून और समर्पण ही था कि गर्मी हो या कड़कड़ाती  सर्दी तड़के हमारे घरों में राउंड लेते थे | तमाम आलोचनाओं को तारीफ की तरह स्वीकार कर लेना आम इन्सान के बस का नहीं | क्या अनुशासन की इतनी इन्तहा ठीक है कि वह खौफ़ बन जाये – ये जरूर विवाद का विषय हो सकता है | इन सबके बावजूद दुबली पतली काया वाले इस इन्सान में ऐसे तमाम गुण मौजूद हैं जो उन्हें एक अलग ही श्रेणी में ला खड़ा करता है |
      आज इतने दिनों बाद मेरे पहले स्कूल की जगह बदल गई है | स्कूल पहले से छोटा हो गया है | स्कूल के बड़े से बोर्ड की जगह कोने में लगे छोटे से बोर्ड ने ले ली है | छात्र संख्या नाम मात्र हो चुकी है | उनकी काया और दुबली हो गयी है | मगर मेरे बड़े वाले सर के तेज और अनुशासन में कोई कमी नहीं आई है | वही सिर उठा कर चलना , झक सफ़ेद कपड़े और नयी साइकिल | मुझे आज भी उनसे डर लगता है | कई बार रास्ते में उनके दिखते ही रास्ता बदल देता हूँ | मगर उनके लिए दिल में सम्मान आज भी उतना ही है | बड़े वाले सर जी आपका ये शिष्य हमेशा आपका ऋणी रहेगा | मेरे पहले गुरु, पहले शिक्षक, मार्गदर्शक , भविष्य निर्माता आपको शत-शत नमन – चरण वंदन |    

“जीवन में सबसे आवश्यक है मजबूत चरित्र |”    - चन्द्रपाल सिंह यादव (बड़े वाले सर जी )
           
शिक्षक दिवस ( सितम्बर 5 पर मेरे पहले गुरु को समर्पित )            
By: Nitendra Verma                                                                        


Date: Sept 27, 2014 Saturday

2 comments: