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Friday, September 2, 2016

ग़ज़ल - गुलमोहर

  पेश है शैलेन्द्र राठौर जी लिखी ग़ज़ल 'गुलमोहर'....



   गुलमोहर
       
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शैलन्द्र राठौर 

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मेरी ज़िन्दगी की धूप में,

एक गुलमोहर से हो तुम

मेरी बन्जर सी ज़िन्दगी में,

बरसात की तरह हो तुम

  ख़ामोश तन्हा इस सफ़र में


 एक हमसफ़र से हो तुम

जुगनू की चमक, तितली सी रंगत,

फूलों की महक से हो तुम

बेरंग, अँधेरी ज़िन्दगी में,

चाँद की रोशनी से हो तुम

मेरी ज़िन्दगी की धूप में,

           एक गुलमोहर से हो तुम |      ●●●
    
  



**यह ग़ज़ल पत्रिका 'कलम कभी नहीं थकती' में प्रकाशित हुई | इसे पत्रिका में देखने के लिए क्लिक करें...Milestone

(यह ग़ज़ल e-mail द्वारा प्राप्त | यदि आपके पास भी है कोई ऐसी ही ग़ज़ल, शायरी, कविता या लेखन से जुड़ा कुछ भी अच्छा तो हमें भेज दें nitendraverma@gmail.com पर  )

 

5 comments:

  1. शैलेन्द्र जी आपकी लेखन प्रतिभा बेहतरीन है | अपनी success story और लघु कथा में आप इसकी झलक दे ही चुके है | इस ग़ज़ल से यह बात और पुख्ता हो जाती है | ग़ज़ल इस ब्लॉग पर शेयर करने के लिये धन्यवाद | ख़ूबसूरत ग़ज़ल....

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  2. मेरी ज़िन्दगी की धूप में,

    एक गुलमोहर से हो तुम |

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  3. मेरी ज़िन्दगी की धूप में,

    एक गुलमोहर से हो तुम |

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 01 फरवरी 2020 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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