भारत के लिये मिला जुला रहा
रियो ओलम्पिक
सत्रह दिनों तक चला खेलों का महाकुम्भ
ओलम्पिक 2016 भारत के लिहाज से कुछ खास नहीं रहा | रियो ओलम्पिक में भारत ने 117
खिलाड़ियों का दल भेजा था जो भारत का अब तक का सबसे बड़ा दल था | जिस तरह से पिछले
दो ओलम्पिक में भारत के पदकों की संख्या में जोरदार इजाफ़ा हुआ था उसे देखते हुए इस
बार भारत से उम्मीदें खासी बढ़ गयी थीं | हालांकि नतीजे बहुत उत्साहित करने वाले
नहीं रहे | इस बार पदकों की संख्या लन्दन ओलम्पिक के पदकों की संख्या का बमुश्किल
एक तिहाई ही पहुँच सकी | शुरुआती तेरह दिन
तक पदकों का सूखा झेल रहे भारत के खाते में पहला पदक आया कांस्य के रूप में जिसे
दिलाया भारत की पहलवान बेटी साक्षी मालिक ने | अगले दिन भारत की झोली में रजत पदक
डाला नयी बैडमिंटन सनसनी पी वी सिंधू ने | इन दो दिनों को छोड़ दें तो भारत के हाथ
हर दिन निराशा ही लगी |
जितना भारी भरकम हमारा दल था उतनी ही
भारी देशवासियों की उम्मीदें थीं | हों भी क्यों न, जब हमारे खेल मंत्रालय की एक
रिपोर्ट में इस बार बारह से उन्नीस पदकों की सम्भावना जताई गयी थी तो ऐसे में सबकी
उम्मीदों को पंख लगना भी स्वाभाविक था | उम्मीद थी कि इस बार भारत पदकों में दहाई
का आंकड़ा तो पार कर ही लेगा | लेकिन हुआ ठीक उल्टा | दिन बीतने के साथ हमारे
धुरंधर खिलाड़ी भी एक के बाद एक धराशायी होते रहे | चाहे अभिनव बिंद्रा हों, सानिया
मिर्जा, गगन नारंग या साइना नेहवाल हों सब धड़ाम हो गये | सब के सब अपने विरोधियों
के सामने कोई चुनौती तक पेश नहीं कर पाये | जबकि ये पूर्व में पदक जीत चुके हैं |
इन्होने अपने प्रदर्शन से सबको बुरी तरह निराश किया | हां ये खिलाड़ी हार के बाद
बहाने बनाते नजर जरूर आये |
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पी वी सिंधू - भारत की शान |
लन्दन ओलम्पिक पदक विजेता बिंद्रा ने
अपनी हार के लिये सिस्टम को दोषी ठहराया वहीं साइना ने चोट की आड़ ली | गौरतलब है
कि किसी ने अपने ख़राब प्रदर्शन को हार का जिम्मेदार नहीं माना | सिस्टम में
निश्चित रूप से समस्यायें हैं लेकिन खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी मायने रखता है | टेनिस
में हार दिल तोड़ने वाली रही | लेंडर पेस, सानिया मिर्जा, रोहन बोपन्ना जैसे
खिलाड़ियों से कम से कम एक पदक की उम्मीद तो की ही जा सकती है | सबसे अनुभवी और
वरिष्ठ खिलाड़ी पेस पहले ही दौर में चलते बने तो सानिया और बोपन्ना भी खास आगे नहीं
बढ़ सके | बैडमिंटन डबल्स में खेल से ज्यादा अपने बड़बोलेपन और गुस्से के लिये
चर्चित ज्वाला गुट्टा अपनी जोड़ीदार अश्विनी चनप्पा के साथ अपने तीनों मैचों में एक
भी जीत हासिल नहीं कर पायीं | दोनों ने कोर्ट में ऐसा खेल दिखाया जैसे दोनों में
होड़ लगी हो कि कौन ज्यादा गलतियां करेगा |
साक्षी मालिक - रच दिया इतिहास |
यही हाल निशानेबाजी और तीरंदाजी में रहा | ऐसा लगा हमारे निशानेबाज रियो आकर निशाना लगाना ही भूल गये | इधर सबके निशाने चूकते रहे उधर पदकों की उम्मीद भी धूमिल होती रही | जीतू राई, बिंद्रा, नारंग, दीपिका सब ने निराश किया | हॉकी टीम भले ही पिछले ओलम्पिक के मुकाबले बेहतर खेली हो लेकिन पदक उनसे दूर ही दिखा | पिछले कई खेलों में बेहतर प्रदर्शन करते आ रहे मुक्केबाज भी इस बार विरोधियों के मुक्कों के आगे पस्त नजर आये |
ओलम्पिक
शुरू हुए तेरह दिन बीत चुके थे | भारतीय खिलाडियों के कंधे झुक गये थे | सवा अरब
उम्मीदें दम तोड़ती दिख रही थीं | ऐसे में रक्षाबंधन की अलसुबह ही रियो से भारतीयों
का सिर गर्व से ऊँचा करने वाली खबर आई | भारत की पहलवान बेटी साक्षी मलिक ने अपने
विरोधियों को चित्त करते हुए कांसा अपने नाम कर पदक तालिका में भारत का खाता खोल
दिया था | अभी जश्न मनाने की तैयारी ही हो रही थी कि शाम होते होते एक और खबर ने
सबका सीना चौड़ा कर दिया | देश की एक और बेटी पी वी सिंधू ने बैडमिन्टन के फाइनल
में पहुँच इतिहास तो रचा ही साथ ही भारत का एक और पदक भी पक्का कर दिया | भले ही
वह फाइनल न जीत पायीं हों लेकिन उनके रजत पदक की चमक भी सोने से कम नहीं |
आखिरी के
बचे दिनों में पहलवानों से बहुत उम्मीदें जरूर थीं क्योंकि पिछली बार के पदक
विजेता योगेश्वर दत्त का मुकाबला बाकी था | उम्मीद थी की पदकों की संख्या दो से
आगे बढ़ेगी | लेकिन दत्त पहले ही मुकाबले में हारकर बाहर हो गये | इस तरह भारत रियो
ओलम्पिक में सिर्फ दो पदक तक ही सीमित रह गया |
काबिलेगौर
प्रदर्शन
हमारे कुछ
खिलाड़ी ऐसे रहे जो भले ही पदक न जीत पाए हों लेकिन अपने प्रदर्शन से पूरी दुनिया का
दिल जीत लिया | इसमें अव्वल रहीं जिमनास्ट दीपा करमाकर | मुकाबले में चौथे स्थान
पर रहीं दीपा बहुत मामूली अंतर से कांसे से चूक गयीं | लेकिन भारत के लिये एकदम
नये खेल में दीपा ने जिस साहस और हौसले के साथ प्रदर्शन किया वह काबिले तारीफ है |
प्रोडुनोवा वाल्ट, जिसे सबसे खतरनाक वाल्ट माना जाता है, में उनके सटीक परफॉरमेंस ने
सबको हैरान कर दिया | वहीँ पहली बार ओलम्पिक में खेल रहे किदाम्बी श्रीकान्त ने
अपने शानदार खेल से सबका दिल जीत लिया | वह तो उनके सामने विश्व के नंबर एक खिलाड़ी
पड़ गये वरना वह भी पदक ला सकते थे | ललिता बाबर, अतानु दास ही कुछ और नाम हैं
जिनके प्रदर्शन को सराहा जा सकता है |
विदेशी कोच
व ट्रेनिंग रही बेकार
इस बार पदक
जीतने वाली दोनों खिलाडियों ने पूरी ट्रेनिंग भारत में ही ली और उनके कोच भी
भारतीय ही हैं | जबकि विदेशों में खूब पैसा खर्चकर ट्रेनिंग लेने वाले और विदेशी
कोच रखने वाले तमाम खिलाड़ी और टीमें औंधे मुंह गिर पड़ी | बैडमिन्टन को ही लें |
पूर्व खिलाड़ी और वर्तमान कोच पुलेला गोपीचंद ने अपने दोनों खिलाडियों किदाम्बी और
सिंधू को ऐसे गुर सिखाये कि दोनों ने अपने से अच्छी रैंकिंग वाले खिलाडियों को भी कोर्ट
में रुकने नहीं दिया | दीपा करमाकर ने भी देशी कोच बिशेश्वर नंदी के साथ पूरी
ट्रेनिंग देश में ही ली | ओलम्पिक के बाद भी इन्होने कहा कि वह आगे भी यहीं
ट्रेनिंग लेंगी | बाहर जाने की जरुरत उन्हें महसूस नहीं होती | निश्चित रूप से
खिलाडियों के अच्छे प्रदर्शन के लिये इनके कोच भी बधाई के पात्र हैं | इनके लगन व
समर्पण को कमतर नहीं आँका जा सकता | यहाँ एक अहम सवाल यह भी खड़ा होता है कि करोड़ों
रूपये खर्चकर विदेशी ट्रेनिंग व कोच से क्या हासिल हुआ ? खासतौर से मुक्केबाज जो
तमाम देशों में ट्रेनिंग के नाम पर जाते हैं | लेकिन इस बार एक भी मुक्केबाज पदक
तो छोड़िये ठीक ठाक प्रदर्शन तक न कर सका | इस पर अवश्य मंथन किया जाना चाहिये |
विवादों का
साया
रियो
ओलम्पिक भारत के लिये शुरुआत से ही विवादों के साये में रहा | नरसिंह यादव डोपिंग
में फंसने के चलते बमुश्किल ही रियो जा सके | वहीं रियो में हमारे खेल मंत्री विजय
गोयल को अनाधिकृत लोगों को प्रवेश दिलाने की कोशिश के चलते चेतावनी जारी की गई | किसी
तरह रियो पहुँच पाए नरसिंह का साया विवादों ने नहीं छोड़ा और उन्हें ओलम्पिक से
बाहर करते हुए चार साल का बैन भी लगा दिया गया | खिलाड़ियों के साथ मौजूद लम्बा
चौड़ा अतिरिक्त दल वहां क्या करने जाता है इसकी एक बानगी तब देखने को मिली जब
ओलम्पिक समाप्त होने के ठीक अगले ही दिन मैराथन धाविका ओ पी जैशा ने आरोप लगाया कि
पूरी दौड़ के दौरान वहां एक भी भारतीय उन्हें चीयर करने या पानी तक देने के लिये
मौजूद नहीं था | इसका नतीजा यह रहा कि जैसे तैसे उन्होंने दौड़ तो पूरी कर ली लेकिन
इसके तुरंत बाद बेहोश होकर गिर पड़ीं | इससे साबित होता है कि खिलाडियों के साथ गया
दल वहां खिलाडियों की हौसला अफजाई या मदद के लिये नहीं बल्कि घूमने फिरने और
मौज-मस्ती करने के लिये जाता है |
ओलम्पिक
समाप्त हो चुका है | सवा अरब उम्मीदों का परिणाम दो पदकों के रूप में सबके सामने
है | आवश्यकता है सभी पक्षो को विचार करने की कि आखिर चूक कहाँ हुई | आखिर सवा अरब
आबादी वाले देश को आज भी पदकों के लिये तरसना क्यूँ पड़ता है ? ऐसा नहीं कि हमारे
यहाँ योग्य खिलाड़ी या कोच नहीं हैं, फिर समस्या कहाँ हैं ? यदि सभी कड़ियाँ जुड़
जाएँ, बेहतर तालमेल बन जाये, समर्पण व इच्छा शक्ति दिखाई जाये तो चार साल बाद होने
वाले टोक्यो ओलम्पिक में हम कामयाबी की एक नयी इबारत लिख सकते हैं |
---- Article by: Nitendra Verma
Date: August 24, 2016
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ReplyDeleteबहुत ही सटीक विश्लेषण |
ReplyDeleteबहुत ही तार्किक और सटीक विश्लेषण -रीतेश पटेल
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