कलयुग
बहू बिस्तर पर लेटी
अपनी बीमार सास को बेतहाशा पीटने में लगी थी | इतने से भी जी न भरा तो चारपाई से
खींचकर फ़र्श पर पटक दिया | हर न्यूज़ चैनल पर यही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी | विमला
अपनी पड़ोसन से बोल पड़ी “क्या बताएं अब तो घोर कलयुग है बहन | आजकल की मॉडर्न बहुएं
हम जैसी सासों को तो अपने पैरों की जूती समझती हैं | पति को तो अपनी उँगलियों पे
नचाती ही हैं साथ ही इस फ़िराक में भी रहती हैं कि कितनी जल्दी बुड्ढों को घर से
बाहर किया जाये |” पड़ोसन ने तुरंत हां में हां मिलाई |
अरे सुधा जरा दो कप
चाय तो बना देना सुशीला चाची आयी हैं | अपनी बहू को आवाज देते हुए विमला ने कहा |
बातों बातों में दस पंद्रह मिनट गुजर गये लेकिन चाय नहीं आयी | “अरे कलमुंही चाय
बना रही है या पूरा खाना | एक बार में तो सुनती ही नहीं | ठहर आज ही मैं सूरज को
बताती हूँ | जब तक तेरे पेंच नहीं कसे जाते अकल ढिकाने नहीं आती | बेढंगी कहीं की
| दो दिन पहले ही सूरज ने कमरे में बंद करके पीटा था फिर भी सुधरी नहीं तू |” अपनी
बहू को फटकारते और पड़ोसन को गर्व से सुनाते हुए विमला चीखीं |
बहू ने सुशीला चाची
के पैर छुए और चाय देकर अन्दर चली गयी | इधर दोनों बुढ़िया चाय की चुस्कियां लेकर
गप्पे मार रही थी वहीँ दूसरी ओर न्यूज़ चैनल पर वही ब्रेकिंग न्यूज़ अब भी जारी थी |
Short Story
by: Nitendra Verma
Date: Sept 14, 2015
Monday
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