Menu bar

New Releasing soon...my new novel कंपू 007..a topper's tale कंपू 007...a topper's tale
New इस ब्लॉग के पोस्ट को मीडिया में देखने के लिये MORE menu के Milestone पर क्लिक करें..

Tuesday, September 15, 2015

लघुकथा - "कलयुग"

कलयुग


बहू बिस्तर पर लेटी अपनी बीमार सास को बेतहाशा पीटने में लगी थी | इतने से भी जी न भरा तो चारपाई से खींचकर फ़र्श पर पटक दिया | हर न्यूज़ चैनल पर यही ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी | विमला अपनी पड़ोसन से बोल पड़ी “क्या बताएं अब तो घोर कलयुग है बहन | आजकल की मॉडर्न बहुएं हम जैसी सासों को तो अपने पैरों की जूती समझती हैं | पति को तो अपनी उँगलियों पे नचाती ही हैं साथ ही इस फ़िराक में भी रहती हैं कि कितनी जल्दी बुड्ढों को घर से बाहर किया जाये |” पड़ोसन ने तुरंत हां में हां मिलाई |

अरे सुधा जरा दो कप चाय तो बना देना सुशीला चाची आयी हैं | अपनी बहू को आवाज देते हुए विमला ने कहा | बातों बातों में दस पंद्रह मिनट गुजर गये लेकिन चाय नहीं आयी | “अरे कलमुंही चाय बना रही है या पूरा खाना | एक बार में तो सुनती ही नहीं | ठहर आज ही मैं सूरज को बताती हूँ | जब तक तेरे पेंच नहीं कसे जाते अकल ढिकाने नहीं आती | बेढंगी कहीं की | दो दिन पहले ही सूरज ने कमरे में बंद करके पीटा था फिर भी सुधरी नहीं तू |” अपनी बहू को फटकारते और पड़ोसन को गर्व से सुनाते हुए विमला चीखीं |

बहू ने सुशीला चाची के पैर छुए और चाय देकर अन्दर चली गयी | इधर दोनों बुढ़िया चाय की चुस्कियां लेकर गप्पे मार रही थी वहीँ दूसरी ओर न्यूज़ चैनल पर वही ब्रेकिंग न्यूज़ अब भी जारी थी |



Short Story by: Nitendra Verma
                                                                              Date: Sept 14, 2015 Monday


No comments:

Post a Comment