उम्मीद से कम
पड़ोस की छत पर टहलते
हुए रिंकू को देख रीतेश को अचानक याद आया कि आज उसका हाई स्कूल का रिजल्ट आने वाला
था | यूँ तो रीतेश को हाई स्कूल पास हुए करीब बीस साल हो चुके थे लेकिन रिजल्ट को
लेकर आज भी वही कौतूहल है | जितना रीतेश जानता था उस हिसाब से रिंकू पढाई में बेहद
कमजोर था | सेकंड डिवीज़न से बेहतर की उम्मीद उसे नही ही थी | हकीक़त भी यही थी |
रीतेश ने रिंकू को आवाज लगाते हुए पुछा “कैसा रहा रिजल्ट? कौन सी डिवीज़न आयी ?”
रिंकू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया “फर्स्ट डिवीज़न है भैया” | रीतेश को थोडा
आश्चर्य हुआ फिर पूछ पड़े “अच्छा कितने परसेंट हैं ?” रिंकू ने मुस्कराहट की लकीरें
लम्बी खींचते हुए बताया “बयासी परसेंट आये हैं |” “कितने ?” रीतेश को लगा उसने कुछ
गलत सुन लिया इसलिये दुबारा पूछ ही लिया | इस बार रिंकू ने थोडा तेज आवाज में
बताया “बयासी परसेंट हैं भैया यानि एट्टी टू परसेंट |” बीस साल पहले खुद सेकंड
डिवीज़न पास हुए रीतेश को कुछ झेंप सी लगी | फिर भी रीतेश बोला “काफी अच्छे नंबर
आये हैं |” रिंकू ने कुछ उदास से लहजे में
कहा “हां नंबर तो ठीक हैं लेकिन मेरी उम्मीद से काफी कम |”
इतना सुनते ही रीतेश
चुप हो गया | अब उसके पास और कुछ पूछने की ताकत नहीं बची थी | उसे आज भी याद है कि
कितनी मेहनत के बाद वो सेकंड डिवीज़न ला पाया था जिसे उन दिनों बड़ा सम्मानजनक माना
जाता था | छत से नीचे उतरते हुए उसके दिमाग में एक ही सवाल बार बार आ रहा था “बयासी
यानी एट्टी टू परसेंट फिर भी उम्मीद से कम ?”
Short Story
by: Nitendra Kumar
In dino ke 90 % apne samay ke 55% ke barabar he
ReplyDeleteनितेंद्र साहेब, कहानी के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर कटाक्ष-व्यग्य किया है ....वो दिन भी शायद दूर नहीं जब पैरवी-चोरी या किसी और ढंग कोई १०० प्रतिशत मार्क्स ले आये और पूछने पर कल के किसी जहीन-मेहनती व होशियार बन्दे से कहे......उम्मीद से कम आया है जी .......यही है आज की शिक्षा नीति| टोकरी भर भर के मार्क्स दो ......सुन्दर व्यंग्य के लिए साधुवाद आपको
ReplyDeleteAcchi kahani
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