बौरा गये चाचा
मेरे गाँव में पड़ोस वाले घर में रहने
वाले एक व्यक्ति जिन्हें मैं चाचा कहता हूँ , बहुत ही सज्जन हैं | गाँव के इक्का
दुक्का पढ़े लिखे लोगों में से हैं | देश दुनिया की अच्छी जानकारी है | चौपाल में
सबको रोज समाचार पत्र से नई ताजा ख़बरें पढ़ कर सुनाते हैं | लेकिन जबसे दिल्ली में
नई सरकार बन कर आई है कुछ बौराये से हैं | पिछले दो एक महीने से तो बड़े व्यस्त
रहते हैं | घर में उनके कदम ठहरते ही नहीं | सुबह हुई नहीं कि नहा धोकर झक सफ़ेद
कुर्ता पायजामा पहन तैयार दिखते हैं | खाना खाए और अपनी लूना में बैठ न जाने किस
रास्ते निकल लेते हैं | फिर जो निकलते हैं तो शाम के पहले सवारी वापस नहीं आती |
चाची मेरी बड़ी परेशान रहती हैं | उन्हें लगने लगा है कि राजू के बापू कहीं सौतन के
चक्कर में तो नहीं पड़ गये | सोचा होगा कि शायद हालात सुधार जायेंगे लेकिन जब बात
हद से बाहर जाने लगी तो बेचारी एक दिन मेरे पास आयीं और सारा दुखड़ा कह सुनाया | मैंने
उन्हें समझाया कि अपने चाचा ऐसे नहीं हैं | मेरे पास भी कोई काम धाम था नहीं सोचा
चलो बैठे ठाड़े चाचा की ही ख़ुफ़ियागिरी की जाये |
बस लग लिया अगले दिन से चच्चू के
पीछे | मैंने लगातार एक हफ्ते तक उनका पीछा किया लेकिन अपने चच्चू तो केवल एक ही
जगह जाते थे | वहां भी घुसने के दो तीन घंटे बाद ही बाहर निकलते थे | घुसते समय तो
उनके चेहरे पे चमक होती थी लेकिन बाहर निकलते समय वही चेहरा मुरझाया होता था | गलत
न सोचें क्यूंकि वो जगह थी बैंक | मैंने सोचा कि आखिर चाचा के हाथ कौन सा खज़ाना लग
गया कि रोज बैंक के चक्कर लगाते हैं | बहुत जानने की कोशिश की लेकिन कोई सुराग हाथ
नहीं लगा | मैंने सोचा कि बेकार में मेहनत करने का कोई फायदा नहीं है क्यूँ न सीधे
चाचा को ही पकड़ा जाये | बस एक दिन गाँव के बाहर चाचा को दबोच लिया | मैंने कहा
चाचा सीधे सीधे बता दो माजरा क्या है वरना चाची तो मायके जाने वाली हैं | चाचा की
सिट्टी पिट्टी गुम थी | बोले क्या बताऊँ छोटू यार ये मोदी सरकार भी ना हम लोगों को
बेवकूफ बना रही है | मैं हैरान , पुछा क्यूँ? बोले – चुनाव के समय मोदी खुद कहे
रहे कि सौ दिन के अन्दर काला धन वापस लायेंगे और हर खाते में एक एक लाख रुपया
डालेंगे | जिस दिन से सरकार के सौ दिन पूरे हुए हैं उसी दिन से बैंक के चक्कर लगा
रहे हैं कि शायद आज खाते में पैसे आ गये होंगे | ई ससुरे बैंक वाले भी ठीक से बात
ही नहीं करते, कहते हैं घर जाओ | यहाँ हमारे लाख रूपये फंसे पड़े हैं और ये कहते
हैं घर जाओ |
चाचा की बात सुन के मुझे भी याद आया
कि ये वादा तो मोदी ने पास के कस्बे में अपनी रैली में खुद ही किया था | तब उनके
इस वादे पे ठोकम ठोक तालियाँ बजीं थी | लेकिन ये सब ठहरे चुनावी वादे | चाचा को ये
बात कौन समझाए | मैं कुछ बोलता इससे पहले ही चाचा बोल पड़े कि बड़ी उम्मीद से तेरी
चाची का मोदी वाला खाता खुलवाया था कि एक लाख रूपये का बीमा मिलेगा | हफ़्तों दौड़
लगाई तब जाकर खाता खुला | बैंक वालों ने ए टी एम कार्ड भी पकड़ा दिया | अब सरकार कह
रही है कि बीमे का लाभ तभी मिलेगा जब हर 45 दिन में कार्ड का उपयोग किया जायेगा |
कहाँ रखा है इस गाँव में एटीएम पेटीएम | अब
तुम ही बताओ लल्ला कि तुम्हारी चाची को 50 किमी दूर शहर लेके हर 45 दिन बाद कौन
जायेगा | पूरा दिन तो ख़राब होगा ही और 50 रुपये अलग से ढीले होंगे |
चाचा बेरोकटोक अपने मन की भड़ास
निकाले जा रहे थे | बोले जब से मोदी जी प्रधानमंत्री बने हैं बस अपने ही “मन की बात” कहे जा रहे
हैं , हम गरीबों के मन की बात कोई करता ही नहीं | कहे थे अच्छे दिन लायेंगे लेकिन हम
गरीबों की हालात आज भी जस की तस ही है | अगर यही अच्छे दिन हैं तो पहले के दिन
क्या बुरे थे ? आसमान की ओर निहारते चाचा का गला रुंध गया | मैं सोच में पड़ गया कि
आखिर ग़लत कौन है - अपनी रोटियां सेंकने वाले हमारे राजनेता या एक बदलाव की उम्मीद
लगाये बैठे ये गरीब, बेबस लोग या फिर चाचा जैसे लोग कभी कभी ऐसे ही बौरा जाया करते
हैं |
Khayali Pulao By : Nitendra Verma Date: December 18, 2014 Thursday
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