सस्ता होता
संगीत
भारतीय फिल्मों में संगीत का बहुत बड़ा महत्व है |
बिना गीत संगीत के हम अपने यहाँ फिल्मों की कल्पना भी नहीं कर सकते | यदि हम
शुरुआती दौर की बात करें तो फिल्म की कहानी से ज्यादा महत्व रखता था संगीत | या
यूँ कहें पूरी कहानी ही गीतों के माध्यम से कह दी जाती थी | ऐसी फ़िल्में भी आयीं
जिनमे 60 से भी ज्यादा गाने थे | धीरे धीरे गानों की संख्या कम हुई लेकिन उनका
महत्व बढ़ता गया | चाहे पचास का शुरुआती दशक हो या फिर साठ सत्तर का सुनहरा दशक,
अस्सी का बदलता दशक हो या नब्बे का मेलोडी से भरा दशक | संगीत का महत्व बढ़ता ही
गया | उस ज़माने में संगीतकारों , गीतकारों और गायकों का अलग रुतबा हुआ करता था |
ये अपनी शर्तों पर काम किया करते थे | इन्हें अपनी फिल्मों में साइन करने के लिए
निर्माता लाइन लगाया करते थे | इनका
मेहनताना भी दौर के हिसाब से अच्छा खासा हुआ करता था |
लकिन
यदि हम पिछले डेढ़ दशक के संगीत परिद्रश्य पर गौर फरमाएं तो पाएंगे की आज का संगीत
बहुत सस्ता हो चुका है | आज अपनी शर्तों पे काम करने वाले संगीतकार, गीतकार या
गायक नहीं रहे | ये आज फिल्म निर्माताओं या म्यूजिक कम्पनियों के हाथों की कठपुतली
बन चुके हैं | इन्हें किस फिल्म में काम करना है इसका निर्णय ये खुद नहीं ले सकते
बल्कि ये तो म्यूजिक कम्पनियां ही तय करती हैं | कोई भी कलाकार यहाँ सिर्फ चंद
फिल्मों का मेहमान है | चाहे जितने अच्छे गायक हों लेकिन साल दो साल में ही उसकी
आवाज सुनाई देनी बंद हो जाती है | फीस का तो सोचिये भी मत | जब तक ये फीस मांगने
के लायक होते हैं तब तक मार्केट से बाहर हो चुके होते हैं | या यूँ कहें कि बाहर
कर दिए जाते हैं | पुराने धुरंधर गायकों को तो आज कोई पूछता भी नहीं | वजह ये नहीं
कि अब वो अच्छा गाते नहीं बल्कि ये है कि इन्हें साइन करना आज के निर्माताओं के बस
की बात नहीं रही | जब मुफ्त में या लगभग मुफ्त में काम बन रहा है तो कोई पागल ही पैसे खर्च करेगा | वैसे भी आजकल तकनीक इनती
विकसित हो चुकी है कि कोई भी आसानी से गायक बन सकता है | शाहरुख़, आमिर, सलमान, माधुरी इसके जीवंत उदहारण हैं |
अब
वो दौर गया जब गायक सालों साल श्रोताओं के दिलों में राज किया करते थे | अब तो बस
आयाराम गयाराम वाली कहानी है | असल में आज के गायकों का करियर बहुत छोटा हो चुका
है | अभिजीत सावंत, विनीत , के के , कुनाल गांजावाला, शान ये कुछ नाम हैं जो संगीत परिद्रश्य में आये ,
छाए और चले गये | सावंत और विनीत तो अब बस स्टेज शो में ही दीखते हैं | जबकि के
के, गंजावाला, शान की आवाजें यदा कदा सुनायी दे जाती है | यहाँ तक कि युवा गायकों
में सबसे प्रतिभाशाली माने जाने वाले सोनू निगम के पास भी आज कोई काम नहीं है |
साल में उनका एक आध गाना भी आ जाये तो बड़ी बात है | हालांकि संगीतकारों की हालात
गायकों से बेहतर है | इन्हें लगातार मौके मिल रहे हैं और करियर भी लम्बा चल चल रहा
है | पुराने गायकों में बात करें तो कुमार शानू , उदित नारायण , अलका याग्निक ,
साधना सरगम को तो इण्डस्ट्री भुला चुकी है | पहले के ज़माने में गाने सुनकर गायक को
पहचाना जा सकता था लेकिन धीरे धीरे ये असंभव सा होता जा रहा है क्योंकि हर फिल्म
के हर गाने में कोई नया गायक हैं|
आखिर संगीत के
इस पतन का कारण क्या है ? इसके पीछे फिल्म निर्माताओं की सोच जिम्मेदार है |
प्रतिभावान नए गायकों की लम्बी चौड़ी फ़ौज भी इसका बड़ा कारण है | तकनीकी विकास भी एक
वजह है | तो वहीं म्यूजिक कम्पनियों की लॉबिंग भी बड़ी समस्या है | अब जरा इन
कारणों पर एक एक करके गौर फरमाते हैं |
कारण 1: फिल्म
निर्माताओं की सोच
फिल्म निर्माता
हमेशा ही फिल्मों का बजट कम रखना चाहते हैं | हीरो- हिरोइन का बजट तो घटा नहीं
सकते क्योंकि वही फिल्म की जान होते हैं | हाँ अब संगीत का महत्व घट जाने के कारण
इस बजट को जरुर कम किया जा सकता है | पुराने स्थापित गायक तो अपने मेहनताने में
कटौती बर्दाश्त करने से रहे | अगर नए गायक और संगीत निर्देशक को लिया जाये तो बजट
अवश्य ही घट जायेगा | नए कलाकारों को तो बस मौका चाहिए | इसके लिए वो मुफ्त में भी
काम करने के लिए तैयार रहते हैं | हाँ यदि आप जम चुके हैं तो भी ज्यादा आरामतलब
होने की जरुरत नहीं है क्योंकि जैसे ही आप फिल्म निर्माता पर अपनी शर्तें लगाने की
कोशिश करेंगे आपको बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा |
नब्बे
के पूरे दशक में एकछत्र राज करने वाले गायक कुमार शानू से कुछ एक साल पहले एक
इंटरव्यू में जब आजकल कम गाने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बड़ी बेबाकी से
जवाब दिया कि वो गाने कम नहीं गा रहे हैं बल्कि उन्हें ऑफर ही नहीं मिल रहे हैं |
उन्होंने बताया कि आज के निर्माताओं के पास हम जैसे गायकों को देने के लिए पैसे
नहीं हैं |
कारण 2: प्रतिभावान नए गायकों की फ़ौज
इस समय
इण्डस्ट्री में नए गायकों की फ़ौज मौजूद है | जब भी बाजार में उत्पादों की संख्या
जरुरत से ज्यादा होती है उत्पाद की कीमत घट जाती है | ऐसा ही हाल इण्डस्ट्री का है
| इतने विकल्प मौजूद होने पर फिल्म निर्माता इन्हें अपनी शर्तों पे साइन करते हैं
|
कारण 3: तकनीकी विकास
पुराने
समय में इस बात का ध्यान रखा जाता था कि गायकों के बोल साफ़ समझ में आयें | लेकिन
आजकल संगीत इतना लाऊड होता है कि गायक की आवाज ही दब जाती है | यानि गायक की आवाज
में कोई कमी भी है तो भी आसानी से छुप जाती है | तकनीक ने इतना विकास कर लिया है
कि आजकल हर कोई गायक बन सकता है | बुरी से बुरी आवाज को भी मखमली बनाया जा सकता है
| देखिये ना हर हीरो हिरोइन गायक बना घूम रहा है | ऐसे में काबिल गायकों की जरुरत ही
कहाँ रह जाती है | किसी भी नये गायक(बुरी आवाज वाले भी) से गाना गवाया और तकनीक के
सहारे उसमें रंग रोगन कर बेहतर रूप दे दिया | इतना सब होने पर महंगे गायकों की
जरुरत ही ख़त्म हो जाती है |
कारण 4: म्यूजिक
कम्पनियों की लॉबिंग
किस
फिल्म में कौन संगीत देगा कौन गाने गायेगा ये सब तय करती हैं म्यूजिक कम्पनियां |
ये गायकों को कॉन्ट्रैक्ट में बंधने के लिए मजबूर कर देती हैं | ऐसे में यदि गायक
ने एक कम्पनी का कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया तो वो दूसरी कम्पनी के लिए नहीं गा सकता
| इसे कॉन्ट्रैक्ट अक्सर एक निश्चित अवधि के लिये होते हैं | इस टाइम में इन्हें
मिलने वाली फीस भी तय कर दी जाती है | यानी गायक उस अवधि में चाहे जितने गाने गा
ले उसे पैसे उतने ही मिलने हैं जितने कॉन्ट्रैक्ट में तय हुए हैं | कम्पनियां
अक्सर नयी प्रतिभाओं को मौका देती हैं जो अवसर तलाश रहे होते हैं | मजे की बात तो
ये है शुरू में तो इन कलाकारों को काम के पैसे भी नहीं मिलते | तो क्या ये मुफ्त
में काम करते हैं ? जी नहीं बल्कि उलटे इन्हें कम्पनियों को पैसे देने पड़ते हैं |
जी हाँ ये सच है | इसे कहा जाता है लान्चिंग फी |
अगर
कलाकार चल गया तो उसके साथ सस्ते में कॉन्ट्रैक्ट साइन कर लिया जाता है | हालांकि
कलाकारों को इससे कोई खास समस्या नहीं होती | क्योंकि उन्हें जिस मौके की तलाश थी
वो उन्हें मिल जाता है | कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म होने बाद जैसे ही कलाकार अपनी फीस बढ़ाता
है उसे इण्डस्ट्री से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है | इस तरह एक नए
प्रतिभाशाली कलाकार का कैरियर उड़ान भरने से पहले ही समाप्त हो जाता है | कुछ दिनों
पहले ही सोनू निगम जैसे गायक ने इसी लॉबिंग से परेशान होकर बॉलीवुड छोड़ने की धमकी
दी थी | सुनिधि चौहान सहित कई गायकों ने उनका समर्थन भी किया था | अब जब दिग्गजों
का ये हाल है तो नए नवेलों की क्या बिसात |
खैर यहाँ पर
हमने सस्ते होते संगीत के कुछ कारणों पर ही गौर फरमाया पर इसमें कोई दोराय नहीं कि
इसके पीछे और भी कई कारण होंगे | चाहे जो कुछ हो लेकिन इसका सबसे ज्यादा नुकसान
कलाकारों को ही उठाना पड़ता है | लेकिन ये दौर लम्बा चला तो नुकसान संगीत को होना
निश्चित है | ऐसा न हो की युवा इसे कैरियर के तौर पे लेना ही छोड़ दें | ऐसा न ही
कि ज्यादा प्रयोग के चक्कर में संगीत का स्तर ही गिर जाये | फिल्म निर्माताओं और
संगीत निर्देशकों को चाहिए कि वो नये कलाकारों को तो अवश्य ही मौका दें लेकिन
उन्हें अपने पंख फैलाकर उड़ने का भी मौका दें | न कि उड़ना सीखते ही उनके पंख काट
दें | तभी हमारा संगीत आज के सस्तेपन से उबर कर अपना स्वर्णिम युग वापस ला पायेगा
|
Khayali Pulao By
: Nitendra Verma
Date:
August 6, 2014 Wednesday
No comments:
Post a Comment