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Sunday, October 4, 2020

धोनी - सोच और शैली ने बिगाड़ा खेल

 सोच और शैली ने बिगाड़ा खेल


एक समय हुआ करता था जब महेंद्र सिंह धोनी धाकड़ और धुआंधार बल्लेबाज के तौर पर जाने जाते थे । वह बल्लेबाजी करने मैदान पर उतरते थे और अपनी मर्जी से गेंद को जब तब मैदान पार पहुंचाते थे । लंबे लंबे छक्के लगाने में उनका कोई सानी न था ।

समय बदला उनकी सोच और शैली बदली । जब वह मैदान पर उतरते तो बेहद सम्भल कर खेलते । वह गेम को धीरे धीरे आखिर तक ले जाने की कोशिश करते और फिर आखिरी के ओवरों में ताबड़तोड़ चौके छक्के लगाकर टीम को जीत दिला दिया करते ।

उन्होंने ऐसा किया और बाखूब किया, बार बार किया । उन्हें दुनिया का सबसे बेहतरीन फिनिशर कहा जाने लगा । आखिरी ओवरों में धोनी का क्रीज पर होना जीत की गारंटी माना जाने लगा । लेकिन इस क्रम में धोनी के माइंडसेट में भी परिवर्तन होता रहा । वह बल्लेबाजी क्रम में बहुत नीचे आने लगे शायद उनका खुद की बल्लेबाजी पर विश्वास कम होने लगा था । आखिरी ओवरों को छोड़ दें तो उनकी बैटिंग टुक टुक वाली ही रहने लगी । और तमाम बार ऐसा भी हुआ कि जब तक आखिरी ओवर आते धोनी चलते बनते । या आखिरी ओवरों में खुद पर और टीम पर इतना दबाव बना लेते कि हर गेंद पर छक्कों की बरसात के बाद भी जीत नामुमकिन हो जाती ।

इसमें कोई दोराय नहीं कि धोनी ने भारत को तमाम मैच जिताये लेकिन यह भी उतना ही सच है कि उनकी बदलती सोच और शैली ने कई मैच हराए भी ।

उनकी सोच और शैली कुछ इस कदर बदली कि जब तक 48वां या 49वां ओवर नहीं आ जाता था वह चौका या छक्का मारने का प्रयास तक नहीं करते थे । उनके प्रशंसक और क्रिकेट के जानकार कभी इस बात को समझ ही नहीं पाए कि कभी धाकड़ बल्लेबाज रहे धोनी इतने दब्बू कैसे और कब बन गए । दरअसल ये सब माइंडसेट है । हर व्यक्ति/खिलाड़ी की सोच और शैली वक्त के साथ बदलती है और धीरे धीरे वह इसमें इस कदर ढल जाता है कि उससे इतर सोच ही नहीं पाता । उसे लगने लगता है कि वह जो कर रहा है वही सही है । 

धोनी जब अपने पीक पर थे तब अपनी मर्जी से चौके छक्के मार लिया करते थे लेकिन समय के साथ उनकी इस क्षमता में स्वाभाविक कमी आती गई लेकिन धोनी ये मानने को कतई तैयार न हुए । वह सोचते रहे कि आखिरी ओवर आएंगे और वो छक्के मार कर टीम को जीता देंगे । शुरुआत में तो ये चलता रहा बाद के समय में वह अपनी सोच के चलते अपने और टीम के हाथ ही जलाते रहे ।

याद कीजिये पिछले विश्व कप के सेमीफाइनल और उनके आखिरी अंतराष्ट्रीय मैच में भी यही हुआ । 

इस IPL में भी यही देखने को मिल रहा है । वह तब हाथ खोलते हैं जब मैच हाथ से निकल चुका होता है । पिछले मैच में तो वह करीब 15 ओवर बैटिंग करते रहे लेकिन टीम को जीत न दिला सके ।

हर व्यक्ति/खिलाड़ी को अपनी सोच और शैली का निरन्तर पुनरावलोकन करते रहना चाहिए वरना आपके प्रशंसक ही आपके आलोचक भी बन जाया करते हैं ।


--- धोनी का एक प्रशंसक


by Nitendra Verma

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