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New Releasing soon...my new novel कंपू 007..a topper's tale कंपू 007...a topper's tale
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Sunday, October 7, 2018

Sample 5 - कंपू 007

मेरी जल्द ही प्रकाशित हो रही नई किताब "कंपू 007..a topper's tale" के कुछ चुनिन्दा अंश आप सब के लिये | उम्मीद है आप सबको पंसद आयेंगे | अगर आपको पसन्द आये तो कमेंट और लाइक में कंजूसी न करें.... 
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Sample 5:

‘ना ना..कोई टच नहीं करेगा..मेरे अलावा..इसका तो हम ऐसा प्रेजेंटेशन बनायेंगे कि खुद को प्रजेंट करने के भी काबिल नहीं बचेगा..’ मेरे ठीक सामने खड़े सींकिया पहलवान ने मुझे चारों ओर से घेरे करीब दस लोगों को आगे बढ़ने से रोक दिया |
सड़क किनारे हॉकी, डंडो से लैस मुझे घेरे खड़े इन लोगों का मकसद मैं समझ चुका था | कल ही तो फोन पर धमकाया था लेकिन तब सोचा कि ऐसे सड़क छाप गुण्डों से डरने की क्या जरूरत | लेकिन मैं गलत था | जरूरत थी..मुझे डरना चाहिये थे | अगर डरा होता तो आज यूँ जमीन पर फैला न पड़ा होता | चलती ऑटो से खींच लिया गया था मुझे | पता नहीं आगे क्या होने वाला था..जो भी हो बस्स कोई देख ना पाए..गीतिका या कोपल तो बिलकुल भी नहीं..

‘पहचाने हमको??’ सामने खड़े कमीने से लड़के ने अपनी लम्बी गन्दी सी जुल्फें झटककर ऐसे पूछा जैसे दाऊद के बाद इसी का नंबर आता हो |
मारना है तो मार ही लो इंट्रोडक्शन वाली फॉर्मेलिटी की क्या जरूरत है | मेरे ना में सिर हिलाते ही बोल पड़ा ‘अबे हम रूचि जी के बॉयफ्रेंड हैं और वो हैं हमारी गर्लफ्रेंड | समझे बबुवा??’ ऐसे लड़कों की भी गर्लफ्रेंड होती हैं ??? जमाना कितना बदल गया है? मुझे रूचि की रूचि पर तरस आने लगा | फँस गई बेचारी..

‘भाई पहले इसको कोपचे में डाल...फिर सब मिलके करेंगे इसका पेल पाल रामपाल’ मुझे घेरे खड़े गुण्डों में से एक को कुछ ज्यादा ही जल्दी थी |

‘ए चिरकुट...पहिले तुमको ना लप्पड़िया दें हम ? मूड तो बना लेनदे भोसड़ी के..’ रूचि का बॉयफ्रेंड उसे धकियाते हुए मेरी तरफ बढ़ा |      

‘चटाक्क्क...’ अगले ही पल मैं औंधें मुँह जमीन पर पड़ा था | झन्नाटेदार थप्पड़ की गूँज से उठी धूल मेरे मुँह में घुस गई | मेरे कान सनसनाने लगे जैसे किसी ने लोहे पर हथौड़े का जोरदार वार किया हो | आँखों के सामने तारे नाचने लगे |
‘स्साले...बहन की चोट..बोल रूचि को प्रजेंटेशन में वापस लेगा?’ सुनने लायक होते ही मेरे कानों में धमकीनुमा आवाज घुसी |
आज मेरे हाथों किसी का मर्डर हो जाता | थप्पड़ के साथ बहन की दी गई गाली ने मेरा खून खौला दिया होता लेकिन इन सालों को शुक्र मनाना चाहिये कि मेरी कोई बहन नहीं थी | खून तो खौला नहीं हाँ अंदर से आह जरूर निकली..भाई मारने से पहले ही पूछ लिया होता !!! अब तक ये तो साफ़ हो चुका था कि उसके सवाल के जवाब में ‘न’ का विकल्प नहीं था | उस ‘बेचारी’ रूचि ने मुझे बेचारा बना दिया था |

‘हे रोहन, व्हाट हैपेन?’ मेरे हाँ कहने से पहले ही देवदूत बनकर आया मेरा दोस्त अनूप | सुपरहीरो की तरह वो उन सब गुण्डों को चीरता हुआ मेरे पास आ गया | मैं इज्जत लूटी जा रही लड़की की तरह उसके सीने से चिपक गया |
‘भाई ये रूचि के भेजे गुंडे है | मैंने उसे प्रजेंटेशन से हटा दिया इसलिये गुंडे भेजे हैं..’ मैं बताते बताते रो पड़ा |

‘आई जियो...दोस्त आ गया | दोस्त को बचाने आया है ?’ वो गुंडा अनूप की ओर बढ़ा | अनूप ने किसी मंझे हुए जिम्मेदार योद्धा की तरह अपनी सेना के कमजोर और हारे हुए सिपाही को अपनी पीठ के पीछे छिपा लिया | अप्रत्याशित रूप से अनूप भी उसकी ओर बढ़ा | मैं हैरानी से सब देख रहा था |

दोनों आमने सामने खड़े थे | दुश्मन सेना की ओर से युद्धकला में पारंगत दस बारह सैनिकनुमा मुस्टंडे और इधर से केवल एक | मैं तो पहले ही हथियार डाल चुका था | मुट्ठियाँ बंध चुकी थी | किसी भी पल किसी भी पक्ष से हमला हो सकता था | मैं सांसे रोके उस पल का इंतजार कर ही रहा था कि अचानक मैं दंग रह गया | उस गुंडे ने अनूप के कंधे पर हाथ रखा और पान मसाले से पुती पड़ी अपनी बत्तीसी निपोर दी | दोनों में कुछ बात हुई...पूरी गर्मजोशी से हाथ मिलाया और फिर वो अपनी सेना लेकर मुझसे बिना कुछ कहे वापस चला गया |

मैं हैरानी से सब देख रहा था | जैसे कोई जादू कर दिया हो अनूप ने | बचने की ख़ुशी तो थी लेकिन...कुछ तो गड़बड़ था | कहीं इस हमले के पीछे इसी का हाथ तो...???

‘ठीक तो है??’ अनूप ने लौटते ही धूल से सने मेरे कपड़ों को झाड़ा |
‘हाँ..लेकिन वो चला कैसे गया?’ मुझे जवाब की जल्दी थी |
‘मैजिक मेरे दोस्त..इट्स मैजिक..’ उसका फ़िल्मी डायलाग मुझे कतई पसंद नहीं आया |
‘अच्छा..’ मेरी आँखों में तैर रहे शक के डोरों को वह भांप गया |
‘ए जग्गा जासूस..अपने जासूसी घोड़ों को लगाम दे | शुक्र मना कि बचा लिया वरना आज काम पैंतीस था तेरा | स्साला दुश्मन को बचा लो लेकिन दोस्त को कभी न बचाओ | हुँह..’ उसका गुस्सा भड़कने लगा |

‘सॉरी यार लेकिन तूने ऐसा क्या कहा कि वो दम दबाकर भाग लिये ?’ मैंने समर्पण करने में ही भलाई समझी |
‘जानना चाहता है तू कैसे बचा ?’ अनूप के इस सवाल के जवाब में मैंने अपने चेहरे पर मासूमियत की मात्रा थोड़ी और बढ़ाते हुए हाँ में सिर हिला दिया |
‘सोशल नेटवर्किंग..मेरे दोस्त | इसी ने आज तेरी जान बचायी |’ उसके चेहरे पर फैली रहस्यपूर्ण मुस्कान ने सस्पेंस और बढ़ा दिया |

जारी...

कंपू 007..a topper's tale
a novel by Nitendra Verma

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