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Sunday, September 4, 2016

मेरे सामने - बस का सफ़र


मेरे सामने(संस्मरण)  –         बस का सफ़र

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रीतेश पटेल 
उम्र लगभग ५० साल आकर्षक ब्यक्तित्व, आँखों में चश्मा बालों में कालिख, गोरा रंग, लम्बी कद काठी के कंडक्टर साहब टिकट काटने में मशगूल थे | कम से कम शब्दों में अपनी बात बोलकर अपने काम को बखूबी अंजाम दे रहे थे | काम निपटाकर अपनी आरक्षित सीट में आकर चैन की साँस ली और मूड फ्रेश करते हुए परिहवन नीर की हरे रंग की बोतल की सील खोलकर मुंह में लगाया और कुल्ला करते हुए पान की पीक ठीक सामने की सीढ़ियों में जोरदार तरीके से मारी |
वैसे कंडक्टर साहब चाहते तो ९० डिग्री अपनी गर्दन घुमाकर ठीक बगल की आधी खुली खिड़की से बाहर भी थूक सकते थे, लेकिन ऐसा करना उन्होंने मुनासिब न समझा | ये उनका सौभाग्य था या उस उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस का दुर्भाग्य था जो इलाहाबाद से कानपुर जा रही थी और जिसका प्रत्यक्षदर्शी मैं भी था |


रीतेश पटेल                      
सहायक अध्यापक, उ प्र बेसिक शिक्षा परिषद्

(यह संस्मरण ई-मेल द्वारा प्राप्त | यदि आपके पास भी है ऐसा कोई संस्मरण, कहानी, लघुकथा या लेखन से जुड़ा कुछ भी तो हमें भेज दें nitendraverma@gmail.com पर)




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