विषम
परिस्थितियों से जूझना और विजेता बन कर उनसे बाहर निकलना आसान काम नहीं है | जो
ऐसा करते हैं वही होते हैं असली हीरो | ऐसे
लोग बन सकते हैं तमाम लोगों के लिये प्रेरणा स्रोत | इनको कहीं ढूंढने जाने की
जरुरत नहीं होती | ये हमें हमारे आसपास ही मिल जाते हैं...हमारे दोस्त, गुरु, पड़ोसी
या किसी और रूप में | यहाँ पर हम ऐसे ही लोगों की सफलताओं की कहानी रखेंगे आपके
सामने |
सफलता की कहानी -1
शैलेन्द्र श्रीवास्तव
M.Sc,
B.Ed,TET
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प्रेरणा स्रोत
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माता जी, पिता जी, बहन
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हॉबी
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गाने सुनना, कॉमेडी सीरियल देखना
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पसंदीदा किताब
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अग्नि की उड़ान(ए पी जे अब्दुल कलाम)
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नमस्कार मित्रो ,मेरा नाम शैलेन्द्र
श्रीवास्तव है | आज मैं आपको अपनी अब
तक की जिंदगी के सफर पर ले जाना चाहता हूँ।
दोस्तों मै एक
मध्यमवर्गीय परिवार से आता हूँ या कहे तो उससे भी थोडा नीचे । जब
से मैंने होश संभाला या कहूँ तो जब मैं 4 या 5 में पढता था उस समय
मेरे पिता जी बल्ब फैक्ट्री में काम करते थे । मेरे
अलावा मेरे घर में मेरा 1 भाई और 2 बहने थी । मेरे
दादी और बाबा भी साथ
ही रहते थे । मेरे
पिता जी को फैक्ट्री में 1 घंटे काम करने के 10 रू मिलते थे । वो
हम लोगो के लिए 14 घंटे तक काम करते थे जब वो घर लौट के आते थे
तो उनके हाथो में छाले पड़ जाते थे घर में सभी लोगो को बहुत दुःख होता था । ये
मै आपको इसलिए बता रहा हूँ कि आपको ये पता चले कि मुझे मेहनत करने की प्रेरणा कहाँ
से मिली । हम लोग किराये के मकान में रहते थे । उसके बाद मेरा पिता ने बल्ब व
ट्यूबलाइट्स को दुकानों में फिटिंग्स का काम शुरू किया
। इन सब दिक्कतों के
बीच
धीरे धीरे
हम लोग बड़े हो रहे
थे । मुझे मन ही मन ये लगता था कि मैं जल्दी से बड़ा हो जाऊं और अपने पापा का हाथ
बाट सकूँ।
मेरे
पिता का कठिन परिश्रम हमेशा मुझे प्रेरित करता रहा । उनके हर विषम परिस्थितियों का
डट कर सामना करने और कभी न हार मानने वाले जज्बे के कारण ही मै बहुत कम आयु में ही
खुद को एक जिम्मेदार इंसान बनाने लगा । 14 वर्ष की आयु में
मैंने 10 वी की परीक्षा और 16 वर्ष में 12 वी की परीक्षा प्रथम
श्रेणी में उत्तीर्ण की । मेरी बड़ी बहन भी मेरी प्रेरणा का सदैव स्रोत रहीं । वो
मुझसे 1 वर्ष पहले ही 12 वी की परीक्षा उत्तीर्ण
कर चुकी थी और मेरी तरह ही घर की परिस्थितियों से भली
भाँति परिचित थी । उन्होंने
तुरंत ही एक Life insurance company में
जॉब कर ली और घर
खर्च में योगदान देने लगी । मैंने इंटर विज्ञान विषय से पास किया था | गणित और
विज्ञान विषय में मेरी कुछ अधिक रूचि थी । इसलिए मैंने कुछ प्राइवेट tuition
पकड़ लिए । पर
हम दोनों ने अपनी पढाई लगातार जारी रखी
। इसी
बीच 2002 में मेरे बाबा जी की
आकस्मिक मृत्यु के कारण सभी एकदम टूट गए । वे एक बहुत ही अच्छे व्यक्तित्व वाले
इंसान थे । और बहुत कुछ घर को बांधे रखते थे । उसके बाद तो हम दोनों भाई बहन
जैसे बहुत बड़े हो गए
। हम अपने दोनों छोटे भाई बहन के अभिवावक बन गए । उनके खर्चो खासकर उनकी पढाई की
जिम्मेदारी को पापा के साथ मिलकर उठाया । 2003 में बी एस सी पास
करने के बाद तो जैसे मुझ पर पैसे कमाने का भूत सवार हो गया । मैंने एक प्राइवेट
स्कूल में मात्र 500 रु में गणित विषय पढ़ाने लगा । उसके बाद खाली
बचे समय में tuition लेता था । 10 या 12 किमी तक साइकिल चला
कर ट्यूशन पढ़ाने जाता था । देर
रात तक ये प्रक्रिया चलती रहती थी । उस
समय मैं 3 या 4 हजार रु तक कमा लेता था । पिता
जी कुछ कारण से वो काम छोड़ कर ड्राइविंग करने लगे थे । पढ़ाने
से मेरे अंदर एक आत्मविश्वास का संचार हुआ
। उसके
बाद मैंने एक इंटर कॉलेज ज्वाइन कर लिया
। वहाँ
गणित और भौतिक विषय पढ़ाने लगा । साथ
ही घर के एक छोटे से कमरे में कुछ बेंचों के arregment से कोचिंग प्रारम्भ
की।
मेरे
और दीदी के घर की कुछ जिम्मेदारी सँभालने से पापा को कुछ राहत मिली । मेरी
माता जी ने भी घर को सँभालने में एक बहुत बड़ी भूमिका निभायी । वो
मेरा पापा का और दीदी का हमेशा हौसला बढाती रही । उन्होंने
हम बच्चों के लिए अपने सारे सुख त्याग रखे थे । मेरा
छोटा भाई पढ़ने में बहुत तेज था । उस
समय उसका इंटर था जब मैंने उसे भारतीय
वायुसेना का फॉर्म डलवाया और उसमे जाने के लिए उसे प्रेरित किया । थोड़ी न नुकुर के
बाद वह मान गया ।उसकी परीक्षा के लिए मैंने उसे थोडा गाइड किया और उसने भी मेरे
कहने पर थोड़ी मेहनत की । पहली बार में ही उसका चयन हो गया । वो दिन मेरी और मेरे
परिवार की जिंदगी का एक बहुत ही यादगार दिन था । 28 मार्च को आनंद
ट्रेनिग के लिए चला गया । उसके बाद मैंने दीदी की थोड़ी
मदद से एक जगह
कोचिंग सेण्टर
‘आनंद क्लासेज’ के नाम से खोला । उसमे
मैं भौतिक और गणित विषय इंटर के बच्चों को बढ़ाता था । शायद मेरे पढ़ाने के तरीके से
बच्चे बहुत प्रभावित हुए जिसके चलते कुछ ही दिनों में कोचिंग में बच्चों की संख्या
बढ़ गई । पहले ही सत्र में 50 बच्चों को मैंने पढ़ाया । वे सभी बहुत ही
अच्छे नंबरो से उत्तीर्ण हुए । अगले सत्र में मैंने कोचिंग का प्रसार किया । मैने
अन्य विषयो के लिए भी अध्यापको की व्यवस्था की । इस प्रकार उस जगह लोग मुझे जानने
लगे और मेरी भी एक पहचान बनने लगी । बीच बीच में मैं सरकारी नौकरी के लिए बैंक, रेलवे, एयरफोर्स आदि में प्रयास करता रहा परन्तु
सफलता नही मिली । इसके बाद मैंने क्षेत्र के एक प्रतिष्टित गर्ल्स इंटर कॉलेज में
भौतिक के प्रवक्ता पद पर पढ़ाना शुरू किया । इसी बीच मैने बी एड के entrance
exam को पास किया और एक साल
के लिए बी एड करने के लिए स्कूल बंद किया । बीएड में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण
करने के बाद मैं पुनः उसी कॉलेज में पढाने लगा । मैंने वही कॉलेज से कुछ दूर उसी
नाम यानि ‘आनंद क्लासेज’ से एक और ब्रांच डाल ली । इस समय मेरी दिनचर्या कुछ इस
प्रकार थी कि मै सुबह 5 बजे उठता था और फिर तैयार होकर कोचिंग के
लिये चला जाता था । उसके बाद फिर स्कूल पढाता था फिर स्कूल के बाद पुनः वहीँ पर 2 घंटे कोचिंग । फिर
आधे घंटे का विराम लेकर घर पर खाना खाने के लिये आता था और फिर दूसरी कोचिंग में
चला जाता था । वहाँ रात के 10 बजे तक पढ़ाता रहता था । डेली का यही रूटीन
था । अब मेरे छोटे भाई को भी ट्रेनिग के बाद joining मिल गयी थी । 2010 में हम दोनों ने
मिलकर दीदी की शादी एक अच्छे परिवार में की
। फरवरी
2011 में में UP
TGT की
परीक्षा पास की । जुलाई
2011 में उसका interview
हुआ । जिसमे
चयन समिति में बैठे लोगो द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नो का उत्तर मैंने दिया । फिर
भी मेरा नाम अंतिम चयन सूची में नहीं आया
। ये
आज तक मुझे समझ नहीं आया कि ऐसा क्यों हुआ । उसके बाद
नवंबर 2011 में UP
TET की
परीक्षा हुई । जिसमे मैंने 150 में से 120 अंक प्राप्त करे । चयन
इसी अंको के आधार पर होना था । मुझे
लगा कि अब तो जरूर मैं भी सरकारी नौकरी प्राप्त कर लूँगा । पर शायद अभी मेरी और
परीक्षा बाकी थी । चयन प्रक्रिया शुरू ही हुई थी कि सरकार बदल गयी और फिर नयी
सरकार ने चयन के तरीके को ही बदल दिया । और भर्ती कोर्ट में चली गयी । मैंने सोचा कि
लगता है मेरी किस्मत में ही सरकारी नौकरी नहीं है । पर मन के एक कोने
में थोड़ी सी उम्मीद जरूर थी । 2012 और 2013 में मैंने
भौतिक से M.Sc की
परीक्षा उत्तीर्ण की
। 2013 का साल मेरे जीवन
में एक नयी उमंग लाया । इसी साल मेरी छोटी बहन की शादी हुई । मेरे बहनोई भी भारतीय
वायुसेना में है । अक्टूबर 2013 में मेरी सगाई हुई
और 15 फरवरी 2014 को मेरी शादी हुई और
हमारे घर में एक नए सदस्य का आगमन हुआ। मेरी पत्नी बहुत ही सुन्दर ,सुशील और गुणवान हैं
। आते ही उन्होंने सबके दिल में अपनी जगह बना ली । मैं जब भी कभी निराश होता तो वो
और मेरी माता जी दोनों
मेरा हौसला बढ़ाते थे । ये शायद उन्ही की किस्मत थी कि 25 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट से
हम केस जीत गए । कोर्ट के आदेश से सरकार को पुरानी प्रक्रिया के तहत भर्ती करने को
कहा गया । 22 जनवरी
2015 को मेरा चयन जनपद
लखीमपुर में हुआ । ये दिन मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत बड़ी खुशी का दिन था |
मेरी खुशी तब दुगनी हो गयी जब 13 फरवरी 2015 को मुझे एक सुन्दर से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई । 18 november को मुझे सहायक अध्यापक के पद पर मूल नियुक्ति मिली । वर्तमान में मै वहीं कार्यरत हूँ । अभी परिवार साथ नहीं है पर कुछ महीनो में ले आऊँगा । ये सब लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे प्रिय मित्र नितेन्द्र ने दी । उसने मुझसे कहा कि मेरे संघर्ष की ये कहानी दूसरों के लिये प्रेरणा स्रोत साबित हो सकती है | मुझे ये नही पता कि उनकी सोच कितनी सही है । पर हां एक भी व्यक्ति यदि इससे प्रेरित होकर जीवन में सफल होता है तो मेरे लिए इसे लिखना सच्ची मायने में सफल होगा । अंत में एक बात जरूर कहना चाहूँगा कि आज के बच्चे बहुत जल्दी में रहते हैं | उन्हें हर चीज बहुत जल्दी जल्दी चाहिए । कुछ मायने में तो ये ठीक भी है । पर धैर्य और ठहराव भी बहुत जरूरी है जीवन में । जल्दी ही निराश नहीं होना चाहिये और यदि परिणाम आपके अनुरूप नहीं हो तो फिर से कोशिश करनी चाहिए । आज नहीं तो कल सफलता जरूर मिलेगी ।
धन्यवाद।
शैलेन्द्र
श्रीवास्तव
सहायक अध्यापक, उ
प्र बेसिक शिक्षा परिषद्
M.Sc( physics ), B.Ed, TET
M.Sc( physics ), B.Ed, TET
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