सोशल मीडिया का तड़का
आजकल टीवी
पर एक विज्ञापन खूब दिख रहा है जिसमें एक महिला अपने पडोसी की बहू के कामों को तिल
का ताड़ बनाकर आलोचना करती है और फिर विद्या बालन आकर बताती हैं कि असली तड़का तो
लगता है फलां मसाले से | लेकिन क्या छोटी – छोटी बातों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करना
मानव स्वभाव नहीं है ? फिर भले ही उससे किसी व्यक्ति का कितना ही नुकसान क्यों न
हो जाये | फ़र्ज कीजिये किसी खास जगह पर बारिश हो जाये | अब उस जगह ही रहने वाले लोग
इसी बारिश का अलग अलग तरीके से बखान करते हैं | किसी के लिये ये केवल जमीन गीली
करने जैसा होता है तो किसी के लिये गली पनारा | कोई झमामम बताता है तो कोई बाढ़ की
सम्भावना तक जता देता है | बीते कुछ सालों में बातों को बढ़ा चढ़ा कर पेश करने की और तड़का
लगाने की इस कला को अच्छा प्लेटफॉर्म प्रदान किया है सोशल मीडिया ने |
हाल ही में
हरियाणा में जाट आरक्षण आन्दोलन के दौरान भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला | सोशल
मीडिया में फैलाये गये संदेशों के जरिये ये आन्दोलन इतना वृहद रूप ले गया कि उसने
देश के एक हिस्से को ही बंधक बना लिया | कुछ अराजक तत्व सोशल मीडिया का प्रयोग
जनता की भावनाओं को भड़काने के लिये करते रहे | यहाँ सबसे पहले सवाल उठता है
प्रशासन पर | आखिर ऐसे नाजुक व संवेदनशील मौकों पर सोशल मीडिया पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं
लगाया जा सकता | आम मौकों पर भी इस पर नजर बनाये रखना अत्यंत जरूरी हो गया है | सोशल
मीडिया की सनक लोगों में इस कदर सवार है कि कई बार लोग फ़र्जी वीडियो तक बना डालते
हैं | डिस्कवरी चैनल पर हाल ही में एक प्रोग्राम में ऐसे ही तमाम वायरल हुए वीडियो
की जाँच हुई जिसमें से अधिकतर फ़र्जी पाए गये | देश में सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग
के मद्देनजर हमें अपना साइबर सेल और अधिक विकसित व सक्रिय करने की सख्त जरूरत है |
यह जग जाहिर है कि इन्टरनेट पर तमाम ऐसे सॉफ्टवेयर और ऐप मौजूद हैं जिनकी मदद से किसी
भी ऑडियो, वीडियो या इमेज के साथ आसानी से छेड़छाड़ की जा सकती है | लेकिन इसके
प्रयोग पर कोई तो पाबन्दी होनी चाहिए |
सोशल
मीडिया अपने विचारों को अभिव्यक्त करने का बेहतरीन माध्यम तो है ही साथ ही दूसरों
के विचारों से सहमति या असहमति जताने का भी जरिया है | लेकिन असहमति जताने के लिये
प्रयोग किये जाने वाले शब्दों पर लोगों का नियंत्रण नहीं रह गया है | यह जानते हुए
भी कि यहाँ पोस्ट की गयी सामग्री सर्वसुलभ हैं, लोग तमाम आपत्तिजनक टिप्पणियां
करने में नहीं हिचकते | कई बार तो लोग तमाम संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिये
गाली गलौज वाली भाषा भी प्रयोग कर डालते हैं | तमाम अन्य पब्लिक फिगर भी ऐसे लोगों
का शिकार गाहे बगाहे होते रहते हैं | हाल ही में जेएनयू कांड में प्रख्यात पत्रकार
बरखा दत्त के लिये बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग किया गया |
सोशल
मीडिया ने हमारे दिमाग को पंगु बना दिया है | हम अक्सर ये सोचते रहते हैं कि हमारे
फलां पोस्ट को कितने लोगों ने शेयर किया, कितनों ने लाइक किया | सोशल मीडिया में
अपना दायरा बढ़ाने के चक्कर में हमारी दिमाग की सीमाएं कुंद होती जा रही हैं | नये
वीडियो, फोटोज के लिये हम कई बार अपनी जान जोख़िम में भी डालने से गुरेज नहीं करते
| एक चिड़ियाघर में बाड़े में बंद शेर की फ़ोटो मोबाइल से खींचने के चक्कर में एक
युवक बाड़े के अन्दर जा गिरा था | इसके बाद जो हुआ वो हम सबने टीवी पर देखा | हाल
ही में एक युवती जो चलती ट्रेन के दरवाजे पर लटक कर अपने मोबाइल से वीडियो शूट कर
रही थी | अचानक उसका मोबाइल हाथ से छूटा और मोबाइल पकड़ने के चक्कर में युवती भी
ट्रेन से नीचे जा गिरी जिससे उसकी दर्दनाक मौत हो गयी |
इसके साथ
ही सोशल मीडिया ने हमें बहुत हद तक संवेदनहीन भी बना दिया है | हम हर उस चीज का
वीडियो या फोटो बना लेना चाहते हैं जो सोशल मीडिया पर वायरल हो सकता हो | इसी
हफ्ते एक न्यूज़ चैनल में आ रही खबर के मुताबिक एक सड़क दुर्घटना में घायल युवक की
मदद करने के बजाय वहां खड़े लोग अपने अपने मोबाइल से उसका वीडियो बनाते रहे | समय
से मदद न मिलने के कारण उस व्यक्ति की मौत हो गयी | ऐसी घटनाओं का वीडियो बनाने का
मकसद आखिर क्या हो सकता है ? सिर्फ ये कि जल्दी से उसे सोशल मीडिया में अपलोड कर
दिया जाये और अपने सर्किल में चर्चित हो जाया जाये |
इसके अलावा
आजकल सोशल मीडिया अश्लीलता फ़ैलाने का जरिया भी बन गया है जो खास तौर बच्चों व किशोरों
के दिमाग पर बड़ा गलत असर डाल सकता है | कुछ खास एप इसी मकसद के लिये तैयार किये
गये हैं | वाट्स एप जैसा ही एक एप युवा वर्ग में खूब पसन्द व प्रयोग किया जा रहा
है | इसकी खासियत यह है कि मैसेज पढ़ लेने के कुछ सेकंड बाद ही वह मैसेज अपने आप ही
डिलीट हो जाता है | यानि यूजर्स किस प्रकार के मैसेजेस का आदान प्रदान कर रहे हैं
यह पता लगाना लगभग नामुमकिन है | इस एप की
लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका जैसे देश में युवा
वाट्स एप से ज्यादा इस एप का प्रयोग कर रहे हैं |
किस्सागोई
के लिये प्रख्यात नीलेश मिसरा की हाल ही में अपने फेसबुक वाल पर पोस्ट की गयी
तस्वीर काफी कुछ कहती है (देखें फोटो-
ऊपर) | इसमें कोई दोराय नहीं की सोशल
मीडिया अभिव्यक्ति का बेहतरीन माध्यम है लेकिन यह अच्छा है या बुरा, यह इसके
प्रयोग के ऊपर निर्भर करता है | लेकिन क्या हमें इसे पूरी तरह यूजर्स के हाथ में
छोड़ देना चाहिये या फिर इसकी भी मॉनिटरिंग करने की जरूरत है | हर व्यक्ति को अपने
विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार है लेकिन ऐसा करते समय किसी की भावनाओं, संवेदनाओं
को आहत करने या भड़काने का अधिकार भी किसी को नहीं दिया जा सकता | इसके लिये न केवल
प्रशासन को सतर्क रहना होगा बल्कि हमें भी
अपनी सीमाओं को स्वयं ही निर्धारित करना होगा |
Khayali Pulao By :
Nitendra Verma
Date:
Feb 27, 2016 Saturday
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http://nitendra-speaks.blogspot.com
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