निराशाजनक प्रेम रतन धन
सूरज बड़जात्या की बहुप्रतिक्षित फिल्म ‘प्रेम रतन धन पायो’ निराश करती
है | ‘मैंने प्यार किया’ या ‘हम आपके हैं कौन’ जैसी उम्मीद लगा कर सिनेमा हाल गये
दर्शक ऐसी सतही फिल्म देख कर ठगा महसूस करते हैं | उनकी पुरानी फिल्मों की चिर
परिचित सादगी, मनमोहक संगीत सब नदारद है | मैंने दिवाली की छुट्टी में अपने 6
पुराने दोस्तों के साथ इस फिल्म का दूसरा शो देखा |
सबसे पहले बात करते हैं फिल्म की कहानी की | फिल्म में एक राजघराने की
कहानी है | राजघराना भी आज के ज़माने का है | इसके सदस्य बड़े बड़े टेबलेट का तो
इस्तेमाल करते हैं लेकिन सफ़र आज भी बग्घी से ही करते हैं | इसी राजघराने के राजा
साहब यानि सलमान खान की मंगनी दूसरे राजघराने की राजकुमारी यानि सोनम कपूर से तय
हो चुकी है | राजा साहब का परिवार बुरी तरह बिखरा हुआ है | जहाँ एक ओर उनकी बहन उनसे
नफ़रत करती है वहीँ दूसरी ओर उनका भाई कुछ लोगों के साथ मिलकर उनको रास्ते से हटाने
की साजिशें रचता रहता है | एक दिन राजा साहब इन्ही लोगों की साजिश में फँस हादसे
का शिकार हो जाते है | लेकिन हिंदी फिल्मों में हीरो मरते नहीं भले ही पहाड़ी से
हजारों फीट नीचे क्यों न गिर जाएँ | घराने के वफादार कर्मी यानि अनुपम खेर उन्हें
बचा लेते हैं और एक गुप्त जगह पर रखते हैं | तभी फिल्म में एंट्री होती है राजा
साहब के हमशक्ल प्रेम दिलवाले की | सोनम मिलने के लिये आती हैं राजकुमार से | ऐसे
में घराने के लोग सोनम को मिलाते हैं इसी प्रेम दिलवाले से | हकीकत से अनजान सोनम
को राजा साहब के गंभीर ,सख्त और बेरुखे स्वाभाव के बजाय इस खिलंदड , खुशमिजाज और
मस्तमौला प्रेम बेहद पसंद आता है | राजा साहब का बिखरा घर कैसे जुड़ता है, दुश्मनों
का सफाया कैसे होता है, ये जानने के लिये आपको फिल्म देखनी होगी |
फिल्म की कहानी बेहद सामान्य है | शायद राजघराने को चुनकर बडजात्या ने
गलती कर दी | सामान्य घर की कहानी देखने की उम्मीद लिये दर्शक इससे जुड़ ही नहीं
सके | फिल्म में सब कुछ उम्मीद के मुताबिक होता है | कुछ भी नया नहीं है | जो कुछ
भी दिखाया है वो हम सब तमाम फिल्मों में कई कई बार देख चुके हैं | चाहे रूठी बहन
को मनाने के जतन हों या पारिवारिक विवाद की जड़, सब देखा सुना है |
कलाकारों में सलमान अपने चिर परिचित प्रेम के अवतार में हैं | हालाँकि
अब उनमें वो पुराने प्रेम वाली सादगी, सौम्यता, निर्दोषपन नहीं ही दिखता | फिर भी
वो अपने किरदार को निभा ले गये हैं | फिल्म की कमजोर कड़ी हैं सोनम | राजकुमारी
वाली बात उनके अभिनय में नहीं झलकी | उनके हाव भाव से वो राजकुमारी नहीं लगतीं | उनके
एक्सप्रेशंस बदलते नहीं | अनुपम खेर अपने किरदार को जी गये हैं | वहीँ बाकी कलाकार
सामान्य रहे | हां सलमान की बहन के किरदार में स्वरा भास्कर ने कमाल किया है | वो
उम्मीदें जगाती हैं | फिल्म में बाबूजी यानी आलोक नाथ की कमी खलती है |
संगीत के पहलू में फिल्म बुरी तरह मुंह की खाती है | इस फिल्म का
संगीत राजश्री की पुरानी फिल्मों के आस पास भी ठहरता | राजश्री के घरेलू संगीतकार राम
लछमण की जगह ले ली है हिमेश रेशमिया ने | चलताऊ किस्म का संगीत देने वाले हिमेश को
इस फिल्म में संगीत की जिम्मेदारी देना कहाँ तक उचित था ये तो सूरज ही जाने |
फिल्म के गाने सुने सुनाये लगते हैं | बैकग्राउंड में लगातार बजता संगीत फिल्म
रामलीला के ‘देखो रे देखो रे’ ट्यून की याद दिलाती है |
फिल्म में अच्छे सेट्स हैं | राजमहल व बनाये गये शीशमहल के सेट्स बेहद
खूबसूरत बन पड़े हैं | कैमरे का अच्छा प्रयाग किया गया है | फिल्म बेहद साफ़ सुथरी
है जो पूरे परिवार के साथ देखी जा सकती है | ऐसी फिल्म लम्बे अंतराल के बाद आई है
| इन खूबियों के चलते पारिवारिक फिल्मों के शौक़ीन लोगों को एक बार तो ये फिल्म
देखनी ही चाहिए |
Raiting- **/5 Film
Samixa By : Nitendra Verma Date: Nov 22, Sunday
*Note: All above are my
own feelings as audience not as an
expert.
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