कमरा – एक खोज
रहने के
लिये किराये के कमरे की खोज भी किसी चुनौती से कम नहीं होता | जब यह किसी
नये और छोटे शहर का मामला हो तब बात कुछ ज्यादा ही गंभीर हो जाती है | इस खोज में
कुछ बड़े मजेदार लोगों से मुलाकात भी होती है जो खोज को रोमांचक बना देते हैं |
मुझे भी किराये के लिये नये कमरे की खोज थी | औरैया जैसे छोटे शहर में ठीक ठाक
कमरा मिलना आसान काम नहीं | अव्वल तो मिलता नहीं और बहुत खोजने से मिल भी गया तो
उसका किराया किसी मेट्रो सिटी को भी मात देता नजर आता है | खोज के दौरान मेरा भी
पाला कुछ मजेदार लोगों से पड़ा ----
कमरा नं 1 – एक पहचान के दुकानदार से कमरे के लिये बोला था तो उसने दो दिन बाद एक रूम के
बारे में बताया | मैं वहां गया तो मेरी बाइक देखकर ही मकान मालिक ठिठक गया | बोला
- अरे आपके पास तो बाइक है !!! गोया बाइक न हुई हवाई जहाज हो गया | बोला हमारे
यहाँ तो बाइक खड़ी करने की जगह नहीं है | फिर बोला आइये आपको दूसरा घर दिखाते हैं |
मैं पीछे –पीछे गया | वो मुझे एक बड़े से मकान में ले गया | वहां एक बुड्ढा –
बुढ़िया थे | बुढ़िया देखते ही उससे बोली ‘कौन लोग हैं?’ तेज दिख रही बुढ़िया आश्वस्त
होने पर बोली ‘हाँ खाली तो हैं दो कमरे लेकिन किचन नहीं है’ | हम सोच रहे हैं कि
कोई किरायेदार मिल जाये जो इकट्ठा पैसा दे दे तो हम उसी से किचन बनवा दें | बाद
में किराये से कटता रहेगा |’ मन में आया
कि बुढ़िया कहो तो दो चार एफडी तुम्हारे पास ही खुलवा लें | मैंने कहा चलिए कमरे
देख लेते हैं | वो मुझे कमरे दिखाने ले गयी | कमरे ऊपर थे | बिना प्लास्टर किये
कमरे, बिना रेलिंग की छत, बाथरूम का अधलटका दरवाजा सब अपना गुड़गान स्वयं कर रहे थे | लेकिन बुढ़िया फिर भी
बखान करने में लगी थी | बोली- देखो, लम्बी चौड़ी खुली छत है , बाथरूम , लैट्रिन अलग
है, सप्लाई का पानी भी आता है | छत तो वाकई खुली थी इतनी खुली कि रेलिंग भी नहीं
थी | मैंने कहा किसी दिन सप्लाई का पानी नहीं आया तो ? बुढ़िया बोली एक बड़ा ड्रम रख
लेना उसी में पानी भर लिया करना | काफी समय इन बेहतरीन कमरों को देखने में लगा
दिया था इसलिए बिना समय गंवाए मैंने किराया पूछा | बुढ़िया चहकते हुए बोली लाइट जोड़
के बताये या बिना लाइट के ? मैंने कहा अब बता रही हैं तो लाइट जोड़ के ही बता
दीजिये | कुटिल मुस्कान लिये बुढ़िया बोली – चौबीस – पच्चीस सौ दे देना | मैंने
बिना एक पल गंवाये वहां से निकल लेने में ही भलाई समझी |
कमरा नं 2 – एक रविवार को मैं फिर कमरे की खोज में निकला | बस स्टैंड वाले चौराहे से
थोड़ा आगे कानपुर रोड पर मैंने एक डेरी वाले से पूछा | उसने सामने ही एक कमरा बताया
| वह सज्जन अपने साथ मुझे कमरा दिखाने ले गये | नीचे का फ्लोर था | दो बड़े कमरे ,
बड़ा हाल , किचेन , बाथरूम , टॉयलेट, मार्बल की फ़र्श | मकान मालिक ऊपर रहते हैं |
उन सज्जन ने कई बार आवाज लगाई लेकिन पंडित जी पूजा में व्यस्त थे | तब तक सज्जन ने
ही मुझे पूरा फ्लोर दिखा दिया | थोड़ी देर में पंडित जी नीचे आये | मेरा पूरा
बायोडाटा ले लेने के बाद दोनों फालतू की राजनीतिक , सामाजिक चर्चा में मशगूल हो
गये | करीब बीस मिनट बाद मैंने पूछा किराया कितना है? खींसे निपोरते पंडित जी बोले
‘किराया क्या है ! आप बस आ जाइये |’ मन में तो आया कि बोल दूं ‘ठीक है पंडित जी
फिर आज ही मैं शिफ्ट करता हूँ |’ थोड़ी देर तक फिर इधर उधर की बातें मारते रहे |
मैंने कहा कि कुछ तो बता दीजिये | तो बोले जितना पुराने वाले किरायेदार देते थे
उतना ही दे दीजियेगा | कितना देते थे ये कभी अख़बार में छपा नहीं तो मुझे मालूम भी
नहीं था | मैंने पूछा कितना? तब पंडित बोले आप पांच हजार और लाइट का अलग से दे
दीजियेगा | पंडित जी तो पांच ही मिनट में ‘किराया क्या है’ से पांच हजार में आ गये
| बिना कुछ कहे मैं वहां से खिसक लिया |
कमरा नं 3 – वही सज्जन मुझे थोड़ी दूरी पर एक और कमरा दिखाने ले गये | जिस शख्स के पास ले
गये उसने एक नया मकान बनवाया था कानपुर – इटावा हाईवे किनारे | उस मकान में नीचे
ढेर सारी दुकानें थीं | ऊपर कमरे थे | था तो सब कुछ वेल फर्निश्ड लेकिन फैमिली के
लायक नहीं था | देख कर मैं उस दिन खाली हाथ वापिस लौट आया |
कमरा नं 4 – एक शाम को ऑफिस से लौटते समय जेसीस चौराहे के पास मैं दुकान में खड़ा दुकानदार
से रूम के बारे में चर्चा कर रहा था तभी वहां खड़े एक व्यक्ति ने पूछा ‘क्या आपको
रूम चाहिए?’ मैंने कहा हां | बोले एक घर है उनके भाईसाहब का नया बना है देख लीजिये
चलकर | मैं उनके साथ गया | नया एरिया था | बाहर बाइक खड़ी करते ही उस व्यक्ति ने एक
बाबा जैसे दिख रहे सफ़ेद दाढ़ी धारी से हुक्म देने के अंदाज में वहीँ गेट पर रहने और
गाड़ी देखने को कहा | शायद यहाँ बाहर गाड़ी कड़ी करना भी सेफ नहीं होगा | मकान भी
इतनी ऊँचाई पर था कि गाड़ी चढ़ाना कम से कम मेरे लिये तो लगभग असंभव ही था | अन्दर
जाते ही एक रूम था जो उनके अनुसार इन बाबा जी का है | क्या कमाल है ? हमें इसी रूम
से होकर आना जाना पड़ेगा | आगे दो रूम थे | जिसके ठीक सामने तमाम बिल्डिंग मटिरिअल
जमा पड़ा था | उनके अनुसार तो वह रूम अभी अभी खाली हुआ था | लेकिन हालत तो कुछ और
ही बयां कर रहे थे | उस मकान से जुड़ा कोई भी मकान नहीं बना था | वो बाबा जी तो
डराने के लिये काफी थे ही | मुझे वो जगह एकदम सेफ नहीं लगी | फिर भी औपचारिकता वश
किराया पूछ ही लिया | तीन हजार पांच सौ रु ऐसी सन्नाटे वाली जगह में बहुत ज्यादा
हैं | कुल मिलकर नतीजा सिफ़र |
कमरा नं 5 – कुछ दिन बाद मैं फिर निकला | जेसीस चौराहे के दायीं तरफ एक दुकान में पूछा तो
उसने बगल का मकान बताया | गेट में लगी प्लेट देखकर पता चला कि ये तो मेरे ही विभाग
के हैं | मुझे लगा आज मेरी खोज पूरी हो ही जायेगी | मैंने पूरी उम्मीद और विश्वास
से उनका गेट खटखटाया | घर काफी बड़ा था | गेट तक आने में उनको बड़ा समय लगा | मैंने
उनको बताया तो बोले अभी तो वो सारे रूम खाली करा रहे हैं | दिसंबर में बेटी की
शादी है | इसलिए जनवरी से फिर उठाएंगे | उन्होंने मुझे सलाह दी कि मैं जनवरी में
आऊं | मैं खाली हाथ लौट आया |
कमरा नं 6,7 – मैंने अपने एक मित्र, जो औरैया में ही रहते हैं , से भी इस बारे में बताया था
| एक शाम उनका फोन आया तो बोले कि ‘एक रूम आपके हिसाब का मिला है | मैं मोबाइल
नंबर दे दूंगा बात कर लेना |’ मैंने कहा ठीक है | अगले दिन उन्होंने मुझे उसका नं
दिया | शाम को ऑफिस आकर मैंने उसे फोन मिलाया तो वो बोले कि वो रूम तो किसी और ने
ले लिया है , मेरी नजर में दो और कमरे हैं मैं वहां देखता हूँ फिर आपको बताता हूँ
| मुझे लगा कि ये महाशय मेरा काम बना देंगे | सन्डे को उसने मुझे दो जगह कमरे
दिखाए भी | ये और बात है कि मुझे दोनों ही पसंद नहीं आये | पता नहीं क्यों मुझे वो
एजेंट टाइप लगा | लगा कि वो कमीशन के चक्कर में है |
कमरा नं 8 – एक दिन मैंने जेसीस चौराहे के पास रूम का पता किया तो वहां मुझे पास ही रहने
वाले हनी कटियार के बारे में पता चला | शायद उनका मकान खाली था | अगले दिन मैं
वहां गया | हनी जी से मुलाकात हुई | अच्छे व्यक्ति लगे | लेकिन उनका ऊपर का फ्लोर
पिछले हफ्ते ही उठ चूका था जो एक साल से खाली था | फिर मैंने उनसे उस गली में और
किसी मकान के बारे में पूछा | तब उन सज्जन ने मुझे एक और मकान दिखलाया | यह बिलकुल
वैसा ही था जैसा मैं ढूंढ रहा था | हां सब एकदम परफेक्ट तो नहीं ही था लेकिन थोड़ा
एडजस्ट तो करना ही पड़ता है |
तो इस तरह पिछले दो – तीन महीने से चल रही
मेरी कमरे की खोज यहाँ आकर समाप्त हुई | मैंने इस तरह पहली बार कमरा खोजा |
वाकई नया, रोचक व मजेदार अनुभव रहा |
Khayali Pulao By : Nitendra Verma
Date: Nov 18, 2015 Wednesday
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ReplyDeleteNyc one sir
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