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Tuesday, May 12, 2015

लघुकथा - "सन्डे"

सन्डे


काम ख़त्म करके नीरज ऑफिस से बाहर निकला तो वो बहुत खुश था | उसके चेहरे से सुकून और ख़ुशी टपक रही थी | ख़ुशी हो भी क्यूँ ना आखिर हफ्ते भर के इन्तजार के बाद कल सन्डे जो आने वाला था | वो ऑफिस से बाहर निकला और घर की ओर जाने वाली टेम्पो में बैठ गया | वो मन ही मन कल की प्लानिंग करने लगा | कल वो सारा दिन अपनी बीवी बच्चों के साथ गुजारेगा | बच्चों के लिए कुछ शॉपिंग भी करेगा | अरे हां पड़ोस वाले शर्मा जी के बच्चे के बर्थडे में भी जाना है | बाबू जी को कान के डॉक्टर को भी दिखाना है | बीवी से सिर कि मालिश भी करवाएगा बहुत दिन हो गए मालिश करवाए | इसी बहाने हफ्ते भर की थकान भी दूर हो जाएगी | नीरज ये सारी बातें सोच ही रहा था कि उसके फोन की घंटी बज उठी | बॉस का फोन था | जी सर – नीरज बोला | कहाँ हो – बॉस बोले | “ बस घर पहुँचने वाला हूँ” नीरज ने ख़ुशी से बताया | “तुम्हे अभी ऑफिस आना होगा” बॉस बोले | “लेकिन सर मैं तो घर पहुँचने ही वाला हूँ” नीरज ने कुछ उदास लहजे में जवाब दिया | “काम जरुरी है तुरंत आ जाओ | और हां मैं जरा जरुरी काम से बाहर जा रहा हूँ इसलिये तुम्हे कल भी आना पड़ेगा |” बॉस ने हुक्म देने के अंदाज में कहा | “लेकिन सर कल तो सन्डे है?” नीरज मिमियाते हुए बोला | वो कुछ आगे  बोलता इससे पहले ही फोन कट चुका था | उसके चेहरे की ख़ुशी और सुकून की जगह अब बेबसी , उदासी और गुस्से ने ले ली थी | उसे जितना अपने बॉस पर गुस्सा आ रहा था उतना ही अपनी बेचारगी पे रोना |
टेम्पो अपने आखिरी स्टॉप पर पहुच चुका था | वो टेम्पो से उतरा और वापिस अपने ऑफिस जाने वाली टेम्पो में बैठ गया | अब उसे इन्तजार था अगले सन्डे का |

                                    Short Story by: Nitendra Kumar
                                                                          


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