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Monday, November 30, 2020

टैलेंट शोज़ और जज

 एक जमाना वो था जब गाने पैसे ले के गाये जाते थे

एक जमाना ये है जब गाने पैसे दे के गाये जाते हैं

एक जमाना वो था जब फिल्मों में कलाकार पैसे ले के काम करते थे

एक जमाना ये है जब फिल्मों में कलाकार पैसे दे के काम  करते हैं 


टैलेंट शोज़ और जज-----


इतने टैलेंट शोज़ हैं

टैलेंट है चहुँओर भरा पड़ा

वाहवाही लूट रहे जजों की

मनवा रहे अपनी काबिलियत  का लोहा

इनके टैलेंट को कोई जज कर रहा नमन 

तो है कोई पैरों पे गिरा पड़ा

दर्शक दाब रहे दांतों तले उँगलियाँ

सोचते इसके आगे तो फेल है स्टार बड़े से बड़ा

जब तक चलता शो तब तक होता इनका जलवा

फिर मुंह फेर लेते यही जज 

जो कल तक कहते थे 

लिख के ले लो तेरे आगे न हो पायेगा कोई खड़ा

अपनी पहचान बनाने को आतुर

ये करते लाखों जतन

कहीं जोड़ते हाथ तो कहीं करते दण्डवत नमन

पैसे लेने की बात क्या

काम के बदले दाम देने को भी तैयार

पर ये मायानगरी है इसको कोई समझ न पाया

टैलेंट ही सब कुछ नहीं यहां

गर दाँव पेंच नहीं आते 

तो हाथों में आएगी सिर्फ रेत

और जीवन में अँधियारा

हो सकता है कुछ गर 

टैलेंट और दाँव पेंच का कर संगम

जिद पे रह जाये तू अड़ा

बातों के जाल में ना फंस तू

ये तो भरमाया है

जब न थे ये शोज़ और ये जज

तब भी तो कितनों ने अपना लोहा मनवाया था


-- नितेन्द्र वर्मा

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