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Wednesday, May 24, 2017

कविता - "यादें"



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शैलेन्द्र मुहाले 
प्रस्तुत है शैलेन्द्र मुहाले की लिखी कविता "यादें"..पढ़ें...पसंद आये तो कमेंट व शेयर जरुर करें...










कविता - "यादें"

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तस्वीर ऑखो में बसाता क्यों हैं
बताना ही हैं तो छिपाता क्यों है
आदत है उसे भूल जाने कुछ
बातों को बार बार दोहराता क्यों है 
बेफ़िक्र है लोग यहाँ अपने आप से 
इन्हे वो सब याद दिलाता क्यों है
कहीं तो होंगी कदमों की मंजिल 
नई राहों को फिर आजमाता क्यों है 
मचल उठे आज कुछ जज्बात फिर
यादों को बार बार बुलाता क्यों है



-- शैलेन्द्र मुहाले, अधिकारी Scale I(बैंक –सार्वजनिक क्षेत्र) 
इंद्रा कालोनी, मेन रोड, बनपुरा, मध्य प्रदेश    

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