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Saturday, December 24, 2016

लघुकथा - स्पर्श

nitendra,speaks,stories
शैलेन्द्र राठौर 
ग़ज़ल, शायरी, कविता व कहानी लेखन में बराबर हुनरमंद शैलेन्द्र राठौर | वह इस ब्लॉग पर पहले भी अपनी लेखनी का जादू बिखेर चुके हैं | इस बार पेश है शैलेन्द्र राठौर की लिखी नयी लघुकथा - स्पर्श 
   स्पर्श

प्रीती अपने कमरे की खिड़की से अँधेरी रात में जागते हुए तारों को देख रही थी |टिमटिम करते तारों और ठंडी हवा के झोकों में प्रीती बहुत दूर कहीं खो गयी थी |शायद कुछ ख़ूबसूरत ख्याल या गुजरे हुए कल का दर्द |

तभी उसकी व्हील चेयर को किसी ने पीछे से छुआ | प्रीती एकदम सहम सी गयी | अपनी व्हील चेयर को पलटा के उसने जब देखा तो उसकी सहेली संध्या थी | संध्या ने पूछा ‘प्रीती तुम्हारी व्हील चेयर को मैंने सिर्फ हाथ लगाया और तुम्हे एकदम से कैसे पता चल गया कि किसी ने छुआ है ?’ ‘जब भी कोई मेरी व्हील चेयर को पीछे से छूता है तो बस साहिल की याद आ जाती है ’ कहते ही प्रीती के चेहरे पर उदासी छा गयी | संध्या ने प्रीती के पास बैठते हुए कहा ‘सात साल हो गये तू उसे भूल क्यों नहीं जाती ?’

‘क्या करूंगी उसे भूलकर ? उसके साथ बिताये पल ही तो मेरी जिन्दगी के सबसे ख़ूबसूरत पल हैं | उन्ही को मैंने अपने पास समेट कर रखा है | बाकी तो जिन्दगी में कुछ है ही नही...’ उदास स्वर में प्रीती बोली थी | ‘जिन्दगी हमारे हिसाब से नहीं चलती प्रीती | वो हमेशा अपनी ही मनमानी करती है |’ संध्या ने प्रीती को समझाते हुए कहा था |

प्रीती यादों में खो गई ‘मुझे अच्छे से याद है कैसे वह कॉलेज में पूरे तीन साल मेरे साथ साए की तरह रहा | कैसे वह मुझे कार से उतारकर व्हील चेयर पर बिठाकर कॉलेज के क्लास रूम में ले जाता | खूब मस्ती मजाक करता | फिर मुझे कैंटीन ले जाता, मेरी पसंद का पूरा ख्याल रखता | मेरे लिये हमेशा स्पेशल समोसे आर्डर करता | फिर शाम को मुझे व्हीलचेयर के साथ मेरी कार तक छोड़ता...’

‘कॉलेज के एनुअल फंक्शन में मैंने कभी भाग नहीं लिया लेकिन फिर भी वो मुझे अपने साथ रखता था | मुझे अच्छे से याद है जब सभी साथ में कॉलेज की ओर से जयपुर घूमने जा रहे थे और मैंने मना कर दिया था कि मुझसे नहीं हो पायेगा तो कैसे उसने मुझे मनाया था | याद है मुझे बारिश के वो दिन आज भी जब वो मुझे तेज बारिश में लॉन्ग ड्राइव पर ले गया था और देर तक बारिश में मेरे साथ भीगता रहा था सिर्फ इसलिये कि मुझे बारिश में भीगना पसंद था | याद है तुम्हे जब एक दिन तुम, मैं, साहिल और कुछ दोस्त पिकनिक पर गये थे और मैं दूर से व्हीलचेयर पर बैठ कर झरने को देख रही थी तो कैसे साहिल ने मुझे अपनी गोद में बिठाकर झरने के पास ले गया था | उसका वह स्पर्श मेरी रूह को छू गया था | तीन साल तक वह मेरे साथ रहा लेकिन और लड़कों की तरह नहीं था वह, हमेशा अपनी जद में ही रहा |’

‘मुझे याद है कॉलेज का वह आखिरी दिन जब उसने मुझसे हाथ मिलाकर बाये कहा था और बोला था कि तुम भी मेरे साथ आगे की पढ़ाई के लिये अमेरिका चलो या तुम कहो तो मैं यहीं पढ़ाई करूं | साथ ही रहेंगे आगे भी...’
तभी संध्या बोल पड़ी ‘तो चली जाती न उसके साथ...’

प्रीती – अगर चली जाती तो वहां भी वह मेरा ख्याल रखने में ही रह जाता...

संध्या – तो फिर उसे यहीं रोक लेती | उसे रोका क्यों नहीं हमेशा के लिये ? क्यों उसे अपने से दूर जाने दिया ?

प्रीती – वो मुझसे दूर कभी गया ही नहीं | वो मुझमें ही है | जब भी कोई मेरी व्हील चेयर को पीछे से छूता है तो बरबस साहिल की याद आ जाती है | और वैसे भी प्यार कभी पूरा नहीं हो सकता है क्योंकि उसका पहला अक्षर ही अधूरा है | और मेरी भी कभी हिम्मत नहीं हुई यह जताने कि की मैं उसकी जिन्दगी में शामिल होना चाहती हूँ | फिर ऊपरवाला भी तो कभी कभी रिश्ते की तकदीर दर्द की स्याही से लिखा देता है...

कहते कहते प्रीती की आँखों में आँसू आ गये और वह फिर से अपनी व्हीलचेयर को देखने लगी...


short story by---- Shailendra Rathore
      

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