समाज
के ठेकेदार
हल्की बूंदाबांदी हो रही थी | अधेड़
उम्र की महिला बिना इधर उधर देखे सड़क पार कर रही थी | एक ऑटो ने अचानक से बीच सड़क
पर आयी इस महिला को बचाने के लिये वाहन को मोड़ा, ब्रेक लगाये लेकिन ऑटो का बाहरी
कोना महिला के लग ही गया | महिला घूम कर सड़क पर औंधे मुंह गिर पड़ी | ड्राईवर हड़बड़ा
कर बाहर निकल आया |
महिला के सिर से खून निकल रहा था | खासी भीड़ इकट्ठा हो
चुकी थी | चार छः लोग तुरंत आगे आये और महिला को उठा कर पीछे खाली आ रहे ऑटो में
बैठाने लगे | इतने में सड़क किनारे की
दुकान का मालिक दुकान के अन्दर से ही बुलंद आवाज में चिल्लाया ‘अरे बेवकूफों,
पागलों...समाज के पढ़े लिखे ठेकेदारों इसे उसी ऑटो में ले जाओ |’ लोगों ने तुरंत
उसे ऑटो से उतार कर उसी ऑटो में बैठा दिया जिसने उसे टक्कर मारी थी | उस दुकानदार
का चिल्लाना अभी भी जारी था | ड्राईवर को घूरते हुए चिल्लाया ‘आंखे बंद कर गाड़ी
चलाते हो | बहुत हवा से बातें करते हो | सड़क पर चलते आदमी औरतें दिखाई नहीं पड़ते |
अभी पुलिस बुलाऊंगा सारी रफ़्तार निकल जाएगी तुम्हारी...’
अचानक उस महिला ने कहीं जाने से मना कर दिया | ड्राईवर
के इलाज के लिये पैसे देने की पेशकश के बाद भी महिला ने उसे बिना कुछ कहे जाने
दिया | दुकानदार ने ऑटो वाले को क्षेत्र से बाहर न जाने की हिदायत के साथ जाने
दिया | भीड़ छँट चुकी थी | महिला उसी दुकानदार की दुकान के बाहर बैठ गयी | थोड़ी देर
बाद बोली ‘भैया जरा घर में फ़ोन मिला देंगे ?’ दुकानदार ने उसकी ओर बिना देखे ही
जवाब दिया ‘मिला तो देता लेकिन एक तो मेरे फ़ोन में बैलेंस नहीं है और दूसरा मौसम
ख़राब होने से नेटवर्क भी नहीं आ रहा...’ महिला लड़खड़ाते क़दमों से चुपचाप अंदर गली
में चली गयी |
Short Story by: Nitendra Verma
Date: July 17, 2016 Sunday
seedha waar! behtareen.
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